नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा किए गए विरोध के हिस्से के रूप में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सड़क नाकाबंदी को अस्वीकार करते हुए सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है.
अदालत ने कहा कि अदालत द्वारा निर्धारित कानून को लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल द्वारा सड़क-अवरोध के कारण दैनिक आवागमन में देरी की शिकायत करते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सख्त टिपण्णी की है.
कोर्ट ने कहा कि निवारण न्यायिक मंच आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह एक स्थायी समस्या नहीं हो सकती. जस्टिस कौल ने केद्र सरकार, हरियाणा, यूपी और दिल्ली सरकारों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कानून बना चुका है और इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि समस्याओं का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है, लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह हमेशा के लिए हो रहा है. इसका अंत कहां हो रहा है?
मामले की सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है. इसके बाद नटराज ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एक बैठक की और इसकी जानकारी शपथपत्र में दी गई है. पीठ ने कहा कि हम कानून बना सकते हैं, लेकिन कानून को लागू करना आपका काम हैय न्यायालय इसे लागू नहीं कर सकता. कार्यपालिका को ही इसे लागू करना होगा.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. पीठ ने कहा, 'जब हम कानून बनाते हैं, तो आप कहेंगे कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है. इसके अपने परिणाम हो सकते हैं, लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनसे निपटे जाने की आवश्यकता है. यह स्थायी समस्या नहीं बन सकती.'
मेहता ने कहा कि जब न्यायालय से आग्रह किया जाता है, तो यह अतिक्रमण नहीं होगा. उन्होंने कहा कि शिकायतों का निपटारा करने के लिए उच्चतम स्तर पर तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया था, लेकिन इसके लिए आमंत्रित किसानों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लेने से इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा कि न्यायालय को याचिका में किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने की याचिकाकर्ता को अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि बाद में वे यह न कहें कि उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनया गया.
पीठ ने मेहता से कहा कि किसानों के प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए उन्हें ही अर्जी दायर करनी चाहिए, क्योंकि याचिककर्ता को संभवत: उन नेताओं के बारे में जानकारी नहीं होगी.
न्यायालय ने कहा, 'यदि आपको लगता है कि किसी को पक्षकार बनाया जाना चाहिए, तो आपको अनुरोध करना होगा. आप उनकी शिकायतों को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए औपचारिक अर्जी दायर करें और आप यह बताएं कि किसानों के प्रतिनिधियों का पक्ष विवाद के समाधान में कैसे मदद करेगा.'