देहरादून: बीते दिनों चारधाम यात्रा में घोड़े खच्चरों की मौत का मामला सामने आने से शासन-प्रशासन में हड़कंप मच गया था. साथ ही नैनीताल हाईकोर्ट ने भी इस मामले को काफी गंभीरता से लिया था और सरकार से जवाब तलब किया था. लेकिन केदारनाथ यात्रा (Uttarakhand Kedarnath Yatra) में बेजुबान जानवर मरते रहे और अपने मालिकों की जेब भर गए. केदारनाथ यात्रा में 46 दिनों में ही घोड़ा-खच्चरों (Kedarnath horse mules died) के मालिकों को 56 करोड़ रुपये की आमदनी हो चुकी है. इसके बावजूद इन बेजुबानों की तकलीफ दूर करने वाला कोई नहीं है. जानवरों पर अमानवीय तरीके से यात्रियों और सामान को ढोया जाता है. यही कारण है कि अभी तक 175 जानवरों की मौत हो चुकी है.
इस साल गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए 8,516 घोड़ा-खच्चरों का पंजीकरण हुआ था. बड़ी संख्या में तीर्थयात्री 16 किलोमीटर की इस दुर्गम दूरी को घोड़े और खच्चरों पर बैठकर तय करते हैं. अब तक 2,68,858 यात्री घोड़े-खच्चरों से केदारनाथ पहुंचे और दर्शन कर लौटे. इस दौरान 56 करोड़ का कारोबार हुआ और जिला पंचायत को पंजीकरण शुल्क के रूप में करीब 29 लाख रुपये मिले.
इसके बावजूद इन बेजुबान जानवरों के लिए पैदल मार्ग पर कोई सुविधा नहीं है. मार्ग पर न गर्म पानी की सुविधा है और न कहीं जानवरों के लिए पड़ाव बनाया गया है. घोड़े-खच्चरों से केदारनाथ का एक ही चक्कर लगवाना चाहिए, लेकिन ज्यादा कमाई की होड़ में संचालक दो से तीन चक्कर लगवा रहे थे. साथ ही जानवरों को पर्याप्त खाना और आराम भी नहीं मिल रहा था.
यात्रा के पहले ही दिन ही तीन जानवरों की मौत हो गई थी. इसके बाद शुरुआती एक महीने तक रोज जानवरों की मौत के मामले सामने आते रहे. मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. आशीष रावत ने बताया कि अभी तक 175 घोड़ा-खच्चरों की मौत हो चुकी है. पैदल मार्ग पर दो जानवरों की करंट लगने से भी मौत हुई थी. इसके बाद विभाग ने निगरानी के लिए विशेष जांच टीमें गठित की थीं. इस दौरान 1930 संचालकों और हॉकर के चालान किए गए.
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