हमारे देश में होली का त्योहार काफी हर्ष और उल्लास के साथ हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य समुदाय के लोगों के द्वारा भी मनाया जाता है. हमारे हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. यह हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अलग-अलग देशों में भी हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है. पारंपरिक तौर पर यह पर्व 2 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन रंग और गुलाल की होली खेली जाती है. भारत के साथ-साथ इस पर्व को नेपाल में भी काफी प्रमुखता से साथ मनाया जाता है. साथ ही साथ आसपास के कई अन्य देशों में अल्पसंख्यक हिंदू लोग भी इस त्योहार को मनाया करते हैं.
होली को रंज और गम भुला कर आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ाने वाला त्यौहार कहा जाता है. इस पर्व को मनाने के दौरान लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर और गुलाल खेलते हैं तथा गीत और संगीत के माहौल में पूरा देश सराबोर हो जाता है. होली का त्योहार एक ऐसा त्योहार है, जो प्राचीन काल से ही मनाया जाता है.
इतिहासकारों का मानना है कि इस पर्व का प्रचलन प्राचीन काल से ही है. इसका उल्लेख पुरानी धार्मिक पुस्तकों और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों और हस्तलिखित लिपियों में होली के पर्व का उल्लेख है. अगर प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य को देखें तो वहां भी इसका वर्णन मिलता है. श्रीमद्भागवत पुराण रसों के समूह को रास कहा गया हैं और रास में रंग का खास महत्व है.
संस्कृत साहित्य में होली
इसके अलावा कालिदास के ग्रंथ कुमारसंभवम् और मालविकाग्निमित्रम् में भी इसका वर्णन है. साथ ही साथ कालिदास रचित ऋतुसंहार में एक पूरा सर्ग ही बसंत ऋतु को समर्पित किया गया है. चंद्रवरदाई के द्वारा रचा गया हिंदी का पहला महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में भी होली का भव्य वर्णन है. इतना ही नहीं अगर भक्ति काल में और रीतिकाल के कवियों के साहित्य को देखेंगे तो वहां भी होली का वर्णन दिखाई देता है. आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तकालीन कवि सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, मीराबाई व कबीर के साथ-साथ रीतिकालीन कवियों में शामिल बिहारी, केशव व घनानंद इत्यादि के साहित्यों में होली के कई रंग दिखायी देते हैं.