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Holi Festival 2023: हरियाणा की मशहूर डाट होली, दो गुटों में होती है जोर-आजमाइश, 1288 से चली आ रही परंपरा

होली का त्योहार आते ही हरियाणा के पानीपत के डाहर गांव की होली का जिक्र होना लाजमी है. आखिर सैकड़ों साल से यहां होली की परंपरा चली आ रही है. आज भी इस गांव के लोग इस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं. आखिर इस गोवी की होली क्यों मशहूर और इस इस होली को डाट होली का नाम क्यों दिया गया है, जानने के लिए पढ़े पूरी खबर...(history of panipat dat holi)

Traditional Holi of Haryana
पानीपत के डाहर गांव की मशहूर डाट होली

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Published : Mar 7, 2023, 6:20 PM IST

पानीपत के डाहर गांव की मशहूर डाट होली

पानीपत: होली का त्योहार देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. देश के अलग-अलग इलाकों में होली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कहीं लट्ठमार होली, कहीं फूलों की होली तो कहीं कोड़ा मार होली मनाई जाती है. हरियाणा की पारंपरिक डाट होली का इतिहास सदियों पुराना है. वहीं, आज हम आपको ऐसे अलग तरह की होली मनाने की परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पूरा गांव एक जगह पर इकट्ठा होकर डाट होली मनाता है.

क्या है डाट होली?: डाट का हरयाणवी भाषा में मतलब है सामने से रोकना. डाट होली में 36 बिरादरी के लोग इकट्ठा होते हैं. होली की इस परंपरा में गांव के सभी पुरुष दो भागों में बट जाते हैं और आमने सामने से टकराते हुए एक दूसरे को क्रॉस करने की कोशिश करते हैं जो क्रॉस कर जाता है उसे जीता हुआ मान लिया जाता है. जब इन दोनों ग्रुप का आपस में टकराव होता है तो इनके ऊपर कई दिनों से गांव में ही तैयार किया हुआ रंग बरसाया जाता है. महिला बच्चे सभी इस होली को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं.

1288 से शुरू हुई थी परंपरा: पानीपत के बाहर गांव की होली की यह परंपरा 1288 में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान हुई थी. इस गांव के सभी युवा इकट्ठा होकर एकजुटता का प्रमाण देने के लिए होली मनाते थे अंग्रेजों द्वारा इस होली के त्योहार पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन ग्रामीणों के विरोध के बाद 1 साल में ही इस डाट होली को दोबारा से मनाया गया और आज तक यह परंपरा इसी तरह चलती आ रही है.

डाट होली में नहीं होते झगड़े:सालों से चले आ रहे इस त्योहार में आज तक कोई भी झगड़ा नहीं हुआ सैकड़ों युवा एक के साथ एक चिपक कर चलते हैं लेकिन इस गांव का रिकॉर्ड है कि होली के दिन इस गांव में किसी का किसी के साथ भी झगड़ा नहीं होता न ही किसी जाति धर्म को इस दिन माना जाता है. सभी एक जगह एकत्रित होकर इस होली को मनाते हैं.

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गांव में मौत होने के बाद भी मनाते हैं होली: कई सौ सालों से चली आ रही यह परंपरा चलती रहे इसके लिए गांव के बड़े बुजुर्ग भी सहयोग देते हैं. अगर गांव में होली के दिन या होली से 1 दिन पहले किसी कारण वंश किसी की मौत भी हो जाए तो होली को बंद नहीं किया जाता. बुजुर्ग बताते हैं कि होली वाले दिन या होली से पहले किसी के परिवार में किसी सदस्य की अगर मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार का ही एक सदस्य गांव में आकर रंग छिड़क कर होली मनाने की इजाजत देता है और उसी उत्साह के साथ फिर से डाट होली को मनाया जाता है.

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