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Tokyo Olympic 2021 : स्पेशल है ओलंपिक का ब्रॉन्ज मेडल, अब फिर शुरू होगा हॉकी का गोल्डन पीरियड

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक गेम्स में मेडल जीता है. इसके साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि अब एक बार फिर भारतीय हॉकी का स्वर्णिम दौर शुरू होगा. लोग इस खेल में इंट्रेस्ट लेंगे और आयोजनों को स्पॉनसरशिप मिलेगी. इस एक जीत के कई मायने हैं और इस जीत से पहले अर्श से फर्श की दास्तान भी लंबी है. ओलंपिक की इस जीत ने पुरानी असफलताओं को भी धो दिया है. जानें हॉकी इंडिया के बारे में.

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Published : Aug 5, 2021, 3:51 PM IST

Indian men's hockey team win gold in Tokyo Olympic 2021
Indian men's hockey team win gold in Tokyo Olympic 2021

हैदराबाद :टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल कब्जाने वाली टीम के साथ भारत जश्न मना रहा है. गुरुवार को भारतीय पुरुष हॉकी टीम ( Indian men's hocky team) ने टोक्यो के ओआई स्टेडियम में जर्मनी को 5-4 से शिकस्त दी है. ओलंपिक में 41 साल बाद इंडियन हॉकी टीम ने मेडल जीता है.

अब बात टोक्यो ओलंपिक की. दो दिन पुरानी कहानी है. भारतीय पुरुष हॉकी टीम सेमीफाइनल में बेल्जियम से 2-5 के स्कोर से हार गई. टीम के खिलाड़ी निराश हो गए. मनप्रीत सिंह (Manpreet Singh) ने खिलाड़ियों से कहा कि रोने-धोने से काम नहीं चलेगा. ब्रॉन्ज मेडल के लिए अभी से कमर कस लें. नतीजा सामने है. भारतीय पुरुष हॉकी टीम मेडल विनर है. इस जीत के साथ ही भारतीय टीम वर्ल्ड रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गई है.

भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै चार ओलंपिक में खेल चुके हैं

इस जीत के जश्न के बाद हार का पुराना किस्सा भी बताते हैं. 2000 में सिडनी में ओलंपिक गेम्स हुए थे. धनराज पिल्लै (Dhanraj Pillai) के नेतृत्व में भी टीम क्वॉर्टर फाइनल पहुंची थी. पौलेंड के खिलाफ मैच में टक्कर बराबरी का था मगर आखिरी मिनट में पौलेंड ने गोल दाग दिया और भारतीय टीम हार गई. एक इंटरव्यू में धनराज पिल्लै ने बताया था कि मैच के बाद वह सिडनी के मैदान मे खून रोए. इसके बाद भारतीय टीम ने रैंकिंग के लिए मैच खेले और सातवें पायदान पर रही.

टोक्यो ओलंपिक में जीत का जश्न मनाते भारतीय खिलाड़ी

ये दो कहानियां बताती हैं कि 21 साल में भारतीय हॉकी का मिजाज कैसे बदल रहा है. एक्सपर्ट का मानना है कि मनप्रीत सिंह (Manpreet Singh) के नेतृत्व में टीम काफी संतुलित रही. ग्राहम रीड (Graham Reid) की कोचिंग ने आखिरी क्षण में स्पीड कम होने की कमजोरी को दूर कर दिया. सिडनी में धनराज की टीम ने आखिरी 106 सेकंड में मैच गंवाया था.

टोक्यो ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी में तीन पड़ाव थे. अब चार पड़ाव होंगे. पहले पड़ाव में 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक का जिक्र होता है. जब मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में भारतीय टीम ने ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सिलसिला शुरू किया, जो 1956 तक जारी रहा. इसके बाद टीम सिल्वर और ब्रॉन्ज जीतती रही. फिर आया दूसरा पड़ाव 1976 का मॉन्ट्रियल ओलंपिक का, जब भारत 7वें स्थान पर पहुंच गया. तीसरा पड़ाव है मास्को ओलंपिक का, जब भारत ने आखिरी बार कोई मेडल जीता. वह गोल्ड मेडल था. चौथा पड़ाव टोक्यो ओलंपिक होगा.

मेजर ध्यानचंद ने 1936 ओलंपिक के फाइनल में आखिरी मैच खेला था.

1980 के मॉस्को ओलंपिक के बाद भारत से सफलता रूठ गई थी. ओलंपिक में 8 स्वर्ण पदक की जीत अतीत का शानदार किस्सा हो गया. जब भी हॉकी में स्टेटस की बात होती तो हम भी दादा ध्यानचंद की कहानी दोहरा लेते थे. इसके बाद रियो तक 9 ओलंपिक हुए और भारतीय पुरुष हॉकी टीम सेमीफाइनल तक भी नहीं पहुंची. एथेंस 2004 में भारत कोई छाप नहीं छोड़ सका और 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई भी नहीं कर सका था. 2012 के लंदन ओलंपिक में इंडियन टीम सबसे अंतिम 12वें पायदान तक खिसक गई थी. 2016 में भी टीम क्वार्टर फाइनल में बेल्जियम से हार गई थी.

ओलंपिक में इंडियन हॉकी टीम का सफर

हॉकी में भारत की इस हालत को लेकर बेचैनी थी, क्योंकि इस खेल पर उसकी कभी बादशाहत भी थी. टोक्यो ओलंपिक से पहले के 121 साल के इतिहास में भारत ने कुल 28 पदक जीते थे. हॉकी में भारतीय टीम के नाम 11 पदक थे.( अब यह संख्या 12 हो गई है).

ओलंपिक में भारत से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे
  • लॉस एंजेलिस ओलंपिक (1932) फाइनल में जापान को 11-0 से हराया था. यूएस के खिलाफ मैच में ध्यानचंद के भाई रूपचंद ने 10 गोल किए थे.
  • बर्लिन ओलंपिक (1936) में ध्यानचंद और उनके भाई रूपचंद की बदौलत भारत ने शानदार प्रदर्शन किया. फाइनल में जर्मनी को 8-1 से हराया. हिटलर के कहने पर ध्यानचंद की स्टिक बदली गई थी.
  • बर्लिन ओलंपिक में कुल 49 राष्ट्रों ने भाग लिया था, जो 1932 में 37 से अधिक था. पांच देशों ने अफगानिस्तान, बरमूडा, बोलीविया, कोस्टा रिका और लिकटेंस्टीन इन खेलों में अपना पहला आधिकारिक ओलंपिक प्रदर्शन किया था.
  • दूसरे वर्ल्डवॉर के कारण साल 1940 और 1944 में ओलंपिक खेल नहीं हो पाए थे
  • 1948 लंदन ओलंपिक में भारत ने फाइनल में इंग्लैंड को 4-0 से हराया. बलवीर सिंह सीनियर ने दो गोल किए थे. यह आजादी के बाद भारत का पहला गोल्ड था
  • 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में महान खिलाड़ी ने के डी बाबू सिंह का आखिरी मैच, फाइनल में नीदरलैंड को 6-1 से हराया. मैच में बलवीर सिंह सीनियर ने 5 गोल दागे थे.
  • 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में पहली बार पाकिस्तान से फाइनल में आमना-सामना हुआ. फाइनल में पाकिस्तान को 1-0 से हराया
  • 1960 में हुए रोम ओलंपिक में भारत पाकिस्तान से हार गया और सिल्वर मेडलिस्ट बना.
  • 1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारत ने पाकिस्तान से बदला ले लिया. फाइनल में पाकिस्तान को 1-0 से हराया
  • 1968 के मैक्सिको ओलंपिक और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत तीसरे पायदान रहा
  • टोक्यो से पहले आखिरी बार 1980 के मास्को ओलंपिक में भारत ने रूस को हराकर गोल्ड जीता था.
  • मास्को ओलंपिक में 80 देशों ने शिरकत की थी. अफगानिस्तान में सोवियत युद्ध के कारण अमेरिका समेत 65 देशों ने खेल का बहिष्कार किया था.
टोक्यो ओलंपिक में जीत के बाद भारतीय हॉकी टीम अपने कोच ग्राहम रीड के साथ

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) की विनर टीम

कप्तान मनप्रीत सिंह सहित पंजाब के आठ खिलाड़ी भारतीय पुरुष हॉकी टीम के सदस्य हैं. पंजाब के अन्य खिलाड़ी हरमनप्रीत सिंह, रूपिंदर पाल सिंह, हार्दिक सिंह, शमशेर सिंह, दिलप्रीत सिंह, गुरजंत सिंह और मनदीप सिंह हैं.जालंधर पंजाब के मनप्रीत सिंह अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ यानी एफआईएच के प्लेयर ऑफ द ईयर बनने वाले पहले भारतीय हॉकी खिलाड़ी हैं. परगट सिंह को आदर्श मानने वाले ने 2019 में ही एफआईएच अवॉर्ड के दौरान टोक्यो से मेडल लाने का वादा किया था. वह 2012 और 2016 ओलंपिक में भी पार्टिसिपेट कर चुके हैं. मई 2017 में वह भारतीय टीम के कैप्टन बने. केरल के पी. आर. श्रीजेश इस टीम के गोलकीपर हैं. आखिरी समय में उन्होंने जर्मनी को मिली पेनाल्टी कॉर्नर को बखूबी रोका. इनके अलावा कई अन्य खिलाड़ियों ने टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाया. सुरेंदर कुमार, अमित रोहिदास, विवेक प्रसाद सिंह, बीरेद्र लाकड़ा, नीलकांत शर्मा और सुमित वाल्मीकि इस विनिंग स्क्वॉड का हिस्सा हैं.

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