दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

कैसे रखा जाता है चक्रवात का नाम, जानें इसका इतिहास

जब तूफानी हवाओं की गति 74 एमफीएच और इससे अधिक होती है तो इसे साइक्लोन, हरीके और टायफून माना जाता है. तूफानी हवाओं की इस गति के आधार पर उसे चक्रवात का नाम दिया जाता है.

By

Published : May 17, 2021, 10:44 PM IST

चक्रवात
चक्रवात

हैदराबाद :इन दिनों'तौकते चक्रवात' भारत के कई तटीय क्षेत्रों में तबाही मचा चुका है. 18 मई (मंगलवार) को गुजरात के तटीय इलाकों में इसके टकराने की आशंका जताई जा रही है. म्यांमार ने इस तूफान को 'तौकते' नाम दिया है, जिसको बर्मी भाषा में छिपकली कहा जाता है.

बता दें, हर चक्रवाती तूफान को एक नाम जरूर दिया जाता है. तूफानों के अजीबोगरीब नाम लोगों में यह जिज्ञासा पैदा करते हैं कि आखिर कौन रखता है इन तूफानों के नाम? नामों को निर्धारित करने की प्रक्रिया क्या होती है और क्या इनको नाम देना जरूरी है? क्या तूफानों के नाम कोई भी रख सकता है? आइए जानते हैं इस सब सवालों के बारे में.

चक्रवातों का नाम कब रखा जाता है?

जब तूफानी हवाओं की गति 74 एमफीएच (मील प्रति घंटा) और इससे अधिक होती है तो इसे साइक्लोन, हरीकेन और टायफून माना जाता है. तूफानी हवाओं की इस गति के आधार पर उसे चक्रवात का नाम दिया जाता है.

चक्रवातों के नाम कैसे रखे जाते हैं?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हाल ही में भविष्य के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 169 नामों की एक सूची जारी की है, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होंगे.

दुनिया भर के हर महासागरीय बेसिन में बनने वाले चक्रवातों का नाम क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों (RSMCs) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों (TCWCs) द्वारा रखा जाता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और पांच टीसीडब्ल्यूसी समेत दुनिया में छह आरएसएमसी केंद्र हैं.

आईएमडी ने एक मानक प्रक्रिया का पालन करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर समेत उत्तर हिंद महासागर में विकसित होने वाले चक्रवातों को नाम दिया. आईएमडी को चक्रवात और तूफान के विकसित होने पर 12 अन्य देशों को सलाह जारी करने का भी अधिकार है.

ये भी पढ़ें : दक्षिणी राज्यों से टकराए यह प्रमुख चक्रवात, बरपाया कहर

चक्रवातों के नामकरण का इतिहास

तूफानों के नामकरण का इतिहास 19वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब लोग तूफानों का नामकरण उन स्थानों के नाम पर करते थे, जहां वे टकराते हैं, उन संतों के नाम पर जिनके दिनों में तूफान आता था और घटना के वर्ष के आधार पर भी तूफानों का नामकरण किया जाता था.

माना जाता है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामकरण की प्रथा की शुरुआत प्रसिद्ध मौसम विज्ञानी क्लेमेंट रैग ने 19वीं शताब्दी के अंत में की थी.

शुरुआत में, तूफानों को मनमाने नाम दिए जाते थे. उदाहरण के लिए, 1842 में अंटलांटिक में आए तूफान को 'एंटजे 'तूफान का नाम दिया गया था क्योंकि, इसने एंटजे नामक नाव को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था.

20वीं शताब्दी के मध्य में, पश्चिमी मौसम वैज्ञानिकों ने कुछ सामान्य महिला नामों का इस्तेमाल कर चक्रवातों का नामकरण करना शुरू कर दिया, ताकि किसी विशेष महासागर बेसिन पर तूफानों की कई श्रृंखला होने पर इस आसानी से पहचाना जा सके.

सौभाग्य से, यह लिंग पक्षपातपूर्ण प्रणाली कई विरोधों के बाद 2000 तक समाप्त हो गई. साल 1997 में हॉन्गकॉन्ग ने क्षेत्रीय तूफानों को यूरोपियन और अमेरिकन नाम देने की बजाय स्थानीय नामों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा.

साल 2000 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन महासागर बेसिन के आसपास के देशों द्वारा सुझाए गए नामों की सूची का इस्तेमाल करके उत्तर हिंद महासागर में चक्रवातों के लिए नाम निर्दिष्ट शुरू करने पर सहमत हो गया.

शुरुआत में, भारत ने चक्रवातों के नामकरण पर आपत्ति व्यक्त की और चार वर्षों के निरंतर विचार-विमर्श के बाद आईएमडी ने साल 2004 में पहली बार उष्णकटिबंधीय चक्रवात को 'ओनिल' (Onil) नाम दिया.

ये भी पढे़ं : चक्रवात आने से पहले क्या करें और क्या न करें, एक नजर

चक्रवातों के नामकरण की प्रक्रिया

नई दिल्ली स्थित आईएमडी का आरएसएमसी उन सेंटर में से एक है, जो उत्तर हिंद महासागर बेसिन में 13 देशों बांग्लादेश, भारत, ईरान, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन को सलाह देता है. आरएसएमसी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर पर चक्रवातों के नामकरण का भी अधिकार रखता है.

डब्ल्यूएमओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, इस क्षेत्र के आठ देशों के सुझाए गए नामों का इस्तेमाल करके 2004 में 64 नामों की एक सूची तैयार की गई थी. पुरानी लिस्ट में सूचीबद्ध होने वाला चक्रवात 'अम्फान' आखिरी चक्रवात था.

2020 में आईएमडी ने डब्ल्यूएमओ दिशानिर्देशों का पालन करते हुए चक्रवात के नामों की एक नई सूची जारी की थी. नई सूची में 13 सदस्य देशों के लिए प्रत्येक चक्रवात के 13 नाम शामिल थे, जिनकी कुल संख्या 169 है. भारत द्वारा सुझाए गए चक्रवातों के नामों में गति, तेज, मुरासु, आग, व्योम, झार, प्रोबाहो, नीर, प्रभंजन, घुरनी, अंबुद, जलाधी और वेगा शामिल हैं.

चक्रवातों के नाम रखना क्यों जरूरी है?

चक्रवातों का नाम रखना इसलिए जरूरी है ताकि लोगों को इसका नाम आसानी से याद हो जाए. आम जनता के अलावा, यह वैज्ञानिक समुदाय, मीडिया और आपदा प्रबंधकों के लिए भी सुगम होता है. हरेक नाम की अपनी विशेषता होती है. इसके आधार पर लोग अनुमान लगा लेते हैं कि कितनी तैयारी करनी है. उसकी भयावहता के प्रति वे सचेत हो जाते हैं. अगर एक ही क्षेत्र में कई चक्रवात आते हैं, तो वहां पर इसकी तैयारी करना आसान हो जाता है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 'उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को नाम देने की प्रथा चेतावनी संदेशों में तूफानों की त्वरित पहचान में मदद करने के लिए शुरू हुई, क्योंकि संख्या और तकनीकी शब्दों की तुलना में नामों को याद रखना आसान है.'

चक्रवात के लिए नाम सुझाने के लिए क्या दिशा निर्देश हैं?

आईएमडी के अनुसार सदस्य देशों द्वारा चक्रवातों के नाम सुझाने के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाना चाहिए.

1. (अ) राजनीति और राजनीतिक हस्तियों (ब) धार्मिक मान्यताओं, (स) संस्कृतियों और (द) लिंग के प्रति तटस्थ होना चाहिए.

2. नाम इस तरह से चुना जाना चाहिए कि यह दुनिया भर में आबादी के किसी भी समूह की भावनाओं को चोट न पहुंचाए.

3. बहुत कठोर और क्रूर नहीं होना चाहिए.

4. यह छोटा होना चाहिए, उच्चारण करना आसान होना चाहिए और किसी भी सदस्य के लिए आक्रामक नहीं होना चाहिए.

5. नाम की अधिकतम लंबाई आठ अक्षर होनी चाहिए.

6. प्रस्तावित नाम को इसके उच्चारण और आवाज के साथ प्रदान किया जाना चाहिए.

7. पैनल किसी भी नाम को अस्वीकार करने का अधिकार सुरक्षित रखता है, यदि उपरोक्त मानदंडों में से कोई भी संतुष्ट नहीं है. किसी भी सदस्य द्वारा कोई उचित आपत्ति उठाए जाने की स्थिति में उस पर दोबारा विचार किया जा सकता है.

9. उत्तर हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामों को दोहराया नहीं जाएगा. एक बार उपयोग करने के बाद, यह फिर से उपयोग करने के लिए बंद हो जाएगा.

ये भी पढे़ : जानिए क्यों आते हैं चक्रवात, कौन सा राज्य होता है सबसे ज्यादा प्रभावित

ABOUT THE AUTHOR

...view details