हैदराबाद :इन दिनों'तौकते चक्रवात' भारत के कई तटीय क्षेत्रों में तबाही मचा चुका है. 18 मई (मंगलवार) को गुजरात के तटीय इलाकों में इसके टकराने की आशंका जताई जा रही है. म्यांमार ने इस तूफान को 'तौकते' नाम दिया है, जिसको बर्मी भाषा में छिपकली कहा जाता है.
बता दें, हर चक्रवाती तूफान को एक नाम जरूर दिया जाता है. तूफानों के अजीबोगरीब नाम लोगों में यह जिज्ञासा पैदा करते हैं कि आखिर कौन रखता है इन तूफानों के नाम? नामों को निर्धारित करने की प्रक्रिया क्या होती है और क्या इनको नाम देना जरूरी है? क्या तूफानों के नाम कोई भी रख सकता है? आइए जानते हैं इस सब सवालों के बारे में.
चक्रवातों का नाम कब रखा जाता है?
जब तूफानी हवाओं की गति 74 एमफीएच (मील प्रति घंटा) और इससे अधिक होती है तो इसे साइक्लोन, हरीकेन और टायफून माना जाता है. तूफानी हवाओं की इस गति के आधार पर उसे चक्रवात का नाम दिया जाता है.
चक्रवातों के नाम कैसे रखे जाते हैं?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हाल ही में भविष्य के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 169 नामों की एक सूची जारी की है, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होंगे.
दुनिया भर के हर महासागरीय बेसिन में बनने वाले चक्रवातों का नाम क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों (RSMCs) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों (TCWCs) द्वारा रखा जाता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और पांच टीसीडब्ल्यूसी समेत दुनिया में छह आरएसएमसी केंद्र हैं.
आईएमडी ने एक मानक प्रक्रिया का पालन करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर समेत उत्तर हिंद महासागर में विकसित होने वाले चक्रवातों को नाम दिया. आईएमडी को चक्रवात और तूफान के विकसित होने पर 12 अन्य देशों को सलाह जारी करने का भी अधिकार है.
ये भी पढ़ें : दक्षिणी राज्यों से टकराए यह प्रमुख चक्रवात, बरपाया कहर
चक्रवातों के नामकरण का इतिहास
तूफानों के नामकरण का इतिहास 19वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब लोग तूफानों का नामकरण उन स्थानों के नाम पर करते थे, जहां वे टकराते हैं, उन संतों के नाम पर जिनके दिनों में तूफान आता था और घटना के वर्ष के आधार पर भी तूफानों का नामकरण किया जाता था.
माना जाता है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामकरण की प्रथा की शुरुआत प्रसिद्ध मौसम विज्ञानी क्लेमेंट रैग ने 19वीं शताब्दी के अंत में की थी.
शुरुआत में, तूफानों को मनमाने नाम दिए जाते थे. उदाहरण के लिए, 1842 में अंटलांटिक में आए तूफान को 'एंटजे 'तूफान का नाम दिया गया था क्योंकि, इसने एंटजे नामक नाव को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था.
20वीं शताब्दी के मध्य में, पश्चिमी मौसम वैज्ञानिकों ने कुछ सामान्य महिला नामों का इस्तेमाल कर चक्रवातों का नामकरण करना शुरू कर दिया, ताकि किसी विशेष महासागर बेसिन पर तूफानों की कई श्रृंखला होने पर इस आसानी से पहचाना जा सके.
सौभाग्य से, यह लिंग पक्षपातपूर्ण प्रणाली कई विरोधों के बाद 2000 तक समाप्त हो गई. साल 1997 में हॉन्गकॉन्ग ने क्षेत्रीय तूफानों को यूरोपियन और अमेरिकन नाम देने की बजाय स्थानीय नामों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा.
साल 2000 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन महासागर बेसिन के आसपास के देशों द्वारा सुझाए गए नामों की सूची का इस्तेमाल करके उत्तर हिंद महासागर में चक्रवातों के लिए नाम निर्दिष्ट शुरू करने पर सहमत हो गया.
शुरुआत में, भारत ने चक्रवातों के नामकरण पर आपत्ति व्यक्त की और चार वर्षों के निरंतर विचार-विमर्श के बाद आईएमडी ने साल 2004 में पहली बार उष्णकटिबंधीय चक्रवात को 'ओनिल' (Onil) नाम दिया.
ये भी पढे़ं : चक्रवात आने से पहले क्या करें और क्या न करें, एक नजर