नरक चतुर्दशी 2022 को कई जगहों पर छोटी दीपावली, नरक चौदस या नरक चतुर्दशी या नर्का पूजा व रूप चौदस या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इसके बारे में मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन कई धार्मिक व पौराणिक कारणों से खास तौर पर पूजा पाठ किया जाता है. इसको लेकर कई कहानियां व लोककथाएं प्रचलित हैं. जिनको ईटीवी भारत आपको बताने की कोशिश कर रहा है....
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध करते हुए 16 हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कराया था. साथ ही उन्हें सम्मान प्रदान करते हुए अपनी पटरानियों का दर्जा दिया था. इसी खुशी में दीयों की बारात सजायी जाती है.
पहली कथा
भौमासुर नाम का एक राक्षस था, जिसे नरकासुर के नाम से भी जाना जाता था. उसने एक बार कई राज्यों पर कब्जा कर लिया था. साथ ही उसको भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर रखा था कि वह केवल अपनी माता भूमि देवी (धरती माता) के हाथों ही मरेगा. साथ ही उसकी माता भूमि देवी ने भी भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त कर रखा था कि उनके पुत्र की मृत्यु तभी होगी, जब वह चाहेंगी. दोहरे वरदान से लैस और अभिमान के नशे में धुत नरकासुर ने एक अत्याचारी की तरह शासन करने लगा. वह बहुत दुष्ट किस्म का राजा बन गया. वह देवताओं के साथ साथ महिलाओं का भी अपमान करने लगा. उसने इंद्र को हराकर 16 हजार महिलाओं का अपहरण किया और उन्हें अपने महल में कैद कर लिया. इसके साथ साथ नरकासुर ने वरुण का छत्र (छतरी), देव-माता अदिति का कुंडल (कान) और मेरु पर्वत में स्थित देवताओं का मणिपर्वत भी छीन लिया. इसके बाद परेशान इंद्र भगवान कृष्ण के पास गए. कृष्ण अपनी प्यारी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार हुए और राक्षस की राजधानी प्रागज्योतिषपुर पहुंचे, जहां भगवान कृष्ण और नरकासुर के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ. इस दौरान भगवान कृष्ण बेहोश हो गए.
भगवान कृष्ण के बेहोश होते ही सत्यभामा क्रोधित हो गयीं और युद्ध को अपने हाथ में ले लिया. इस दौरान उन्होंने नरकासुर पर कई घातक बाण चलाए और अंत में उसे मार डाला. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने वास्तव में सत्यभामा को नरकासुर का वध करने के लिए बेहोश होने का नाटक किया था. इसके पीछे कारण यह था कि नरकासुर को केवल उसकी मां के हाथों मारा जा सकता था. इसीलिए भूमि देवी का अवतार होने के कारण सत्यभामा को नरकासुर का वध करने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद भगवान कृष्ण ने अदिति के कुंडल वापस किए. अपने पति के प्रति सत्यभामा के समर्पण से देवी अदिति प्रसन्न हुयीं और उन्होंने सत्यभामा को हमेशा युवा और सुंदर रहने का वरदान दिया. नरकासुर के वध के बाद भगवान ने सभी 16 हजार महिलाओं को कैद से कराया और उनको समाज में स्थान व सम्मान दिलाने के लिए सभी से विवाह कर अपनी पटरानी का दर्जा दिया.
इसे भी देखें :नरक चतुर्दशी 2022 पर कर लें तैयारी, दीपदान व रूप सज्जा का होता है खास महत्व
दूसरी कथा
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक और लोक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे. उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हो गए. यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया तो फिर आप लोग मुझे इस तरह लेने क्यों आ गए. राजा ने उनसे पूछा कि आखिर आप लोग मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक में ले जाना चाह रहे हैं. पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा कि- हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है.
दूतों की इस प्रकार की बात सुनकर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आप लोगों से विनती करता हूं कि मुझे एक वर्ष का समय दे दें. यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी. राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृतान्त विस्तार से समझाया. फिर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय भी पूछा. ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें, तभी आप इससे मुक्त हो सकते हैं. इसके बाद राजा ने वैसा ही किया. फिर राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ. उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी का व्रत प्रचलित है.