देहरादून : डोईवाला क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम परिवारों ने भाईचारे की वो मिसाल पेश की है, जिसकी तारीफ आज हर कोई कर रहा है. यहां हिमालयन हॉस्पिटल के किडनी विभाग में हिंदू-मुस्लिम परिवार की महिलाओं ने एक-दूसरे के पति की जान बचाने के लिए अपनी-अपनी किडनी डोनेट की है.
बता दें, डोईवाला के तेलीवाला निवासी अशरफ अली और कोटद्वार के विकास उनियाल किडनी की समस्या को लेकर हिमालयन हॉस्पिटल में भर्ती थे. लेकिन दोनों को किडनी डोनर नहीं मिल पा रहे थे. ऐसे में अशरफ अली की पत्नी सुल्ताना ने कोटद्वार निवासी विकास उनियाल को अपनी किडनी दी. विकास उनियाल की पत्नी सुषमा ने अशरफ अली को अपनी किडनी डोनेट की है. किडनी ट्रांसप्लांट के बाद दोनों स्वस्थ हैं और दोनों परिवारों में खुशी का माहौल है.
सुषमा और सुल्ताना ने पेश की नई मिसाल डोईवाला के तेलीवाला निवासी अशरफ अली और उनका परिवार किडनी मिलने के बाद काफी खुश है. लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे अशरफ अली को सुषमा उनियाल ने अपनी किडनी देकर एक नई मिसाल कायम की है. अशरफ अली की फैमली ने भी दिखा दिया कि इंसानियत सभी धर्मों से ऊपर है और डोईवाला में हिंदू मुस्लिम परिवार ने एक-दूसरे को अंग दान करके मानवता का परिचय दिया है. जिसकी मिसाल हमेशा कायम रहेगी.
समान ब्लड ग्रुप का कोई करीबी रिश्तेदार नहीं था
डोईवाला निवासी अशरफ अली (51) की दोनों किडनियां खराब होने के बाद वह पिछले दो सालों से हेमडायलिसिस पर थे. उनकी पत्नी सुल्ताना खातून अपनी एक किडनी देने को तैयार थीं. लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था. परिवार में समान ब्लड ग्रुप का कोई करीबी रिश्तेदार भी नहीं था.
विकास के साथ भी ऐसी ही समस्या थी
इसी बीमारी से पीड़ित एक अन्य मरीज कोटद्वार निवासी विकास उनियाल (50) भी ऐसी ही परिस्थितियों से जूझते हुए दो साल से हेमडायलिसस पर थे. दोनों परिवार ऐसे डोनर की तलाश कर रहे थे, जिसका ब्लड ग्रुप मैच हो जाए. हिमालयन अस्पताल के इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. शादाब अहमद ने बताया कि किडनी डोनर के लिए प्रयासरत दोनों परिवारों को एक-दूसरे से मिलाया गया. ब्लड ग्रुप मैच कराया गया तो सुषमा का ब्लड ग्रुप अशरफ और सुल्ताना का ग्रुप विकास से मैच हो गया. इंसानियत और अपने पतियों की जान बचाने के लिए दोनों ने धर्म को आड़े नहीं आने दिया. सुषमा और सुल्ताना दोनों एक दूसरे के पति को किडनी देने को तैयार हो गईं. स्वैप ट्रांसप्लांट के लिए यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी की एक संयुक्त टीम बनाई गई. आखिर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक हो गया.
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