अडानी से क्यों हुआ हिमाचल के बागवानों का मोह भंग? रामपुर/शिमला : हिमाचल प्रदेश के बागवानों से सेब की खरीद करने वाली अडानी कंपनी से क्या सेब उत्पादकों का मोह भंग होता जा रहा है ? अगस्त और सितंबर महीने में सेब सीजन के दौरान ये सवाल उठ रहा है. हिमाचल में अडानी एग्री फ्रेश पिछले करीब 2 दशक से सेब खरीद रहा है. यहां कंपनी के 3 सीए स्टोर यानी Controlled atmosphere storage हैं और ये तीनों ही शिमला जिले में हैं. कंपनी कलर, साइज, क्वालिटी के आधार पर ग्रेडिंग करती है और उनके दाम तय करती है.
हिमाचल का सेब और अडानी- कंपनी हर साल लगभग 22 से 25 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदती है. लेकिन इस बार सितंबर महीने की शुरुआत तक सिर्फ 4500 टन की खरीद ही हो पाई है. कंपनी के इन स्टोर्स पर सेब बेचने वाले बागवानों की लाइन लगी रहती थी, कई बार तो बागवानों का नंबर आने में दो या तीन दिन भी लग जाते थे. लेकिन इस बार अडानी के स्टोर्स के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ है. बागवानों का मोह भंग होते देख कंपनी ने बीते दिनों ओपन मार्किट से सेब खरीदने का फैसला लिया है. ताकि खाली स्टोर्स को भरा जाए. जिस कंपनी के दरवाजे पर बागवान खुद आकर सेब देते थे, वो कंपनी अब मंडियों में जाकर सेब की बोली में शामिल होगी. कंपनी के प्रतिनिधि अब दूसरे राज्यों से आने वाले खरीदारों की तरह बोली लगाएगी.
हिमाचल प्रदेश में अडानी कंपनी के 3 सीए स्टोर आखिर ऐसा क्यों हुआ- शिमला जिले के रामपुर के बिथल स्टोर में सन्नाटा पसरा है. बागवानों के मुताबिक अडानी हर साल सेब खरीद से पहले अपने रेट फिक्स करता है. अडानी एग्री फ्रेश हर तरह का सेब खरीदती है और उनके दाम क्वालिटी के हिसाब से फिक्स किए जाते हैं. इस बार भी अडानी ने प्रीमियम क्वालिटी के सेब का दाम 95 रुपये फिक्स किया था, जबकि लोकल मंडियों में उसी सेब के बदले बागवानों को 125 रुपये से 135 रुपये प्रति किलो तक मिल रहे थे. ऐसे में अडानी के स्टोर्स में सेब की आवक कम हो गई, बागवानों ने इन कीमतों का विरोध भी किया, जिसके बाद अडानी ने सेब की कीमत में 10 रुपये की बढ़ोतरी की और इसे 95 रुपये से बढ़ाकर 105 रुपये कर दिया.
इस साल किलो के भाव बिक रहा हिमाचली सेब- दरअसल इस साल से हिमाचल सरकार ने सेब की खरीद किलो के हिसाब से करने के आदेश दिए हैं. जो बागवानों के लिए फायदे का सौदा है. इससे पहले पेटी के हिसाब से सेब की खरीद होती थी, जिसमें कई बार 20 से 24 किलो तक की पेटी में 30 किलो सेब भी आता था. जिसका बागवानों को नुकसान होता था. सरकार के फैसले के बाद बागवान खुश हैं और ये फैसला भी अडानी एग्री फ्रेश से बागवानों के मोह भंग होने की वजह है.
हिमाचल प्रदेश में सेबों की खेती कंपनी पर मनमानी का आरोप- रामपुर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष हरिश्चंद्र लकटू ने बताया कि अडानी एग्री फ्रेश सेब की कीमतों को लेकर मनमानी करता रहा है. ऊपरी इलाकों के सेब बागवानों के पास कम विकल्प होने का फायदा उठाया जाता रहा है, लेकिन इस बार बागवानों के पास विकल्प हैं. प्रदेश में कुछ और क्रेता भी बढ़े हैं, लोकल मंडियों से लेकर दूसरे राज्य की मंडियों तक सेब के अच्छे दाम मिल रहे हैं और विकल्प बढ़ने से बागवानों को फायदा हुआ है. जिससे अडानी स्टोर के बाहर सन्नाटा पसरा है.
संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान कंपनी पर मनमानी का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि अडानी द्वारा सेब सीजन में कम दामों की घोषणा करती है. जिससे मंडी से लेकर अन्य खरीदारों पर भी असर पड़ता है और मंडियों में सेब के भाव गिरने लगता है. कंपनी बागवानों से सस्ते दाम पर सेब खरीदती है और रिटेल स्टोर पर यही सेब 250 से 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचकर कंपनी मोटा मुनाफा कमाती है.
शिमला की बागवान मीरा बताती हैं कि वो हर साल अडानी को अपना सेब देती आ रही हैं. इस बार भी जब अडानी ने अपने सीए स्टोर खोले तो उन्होंने सेब की क्रेट्स भेजीं, जिसका भाव 900 रुपये प्रति क्रेट (20 किलो) लगाया गया. जबकि वही सेब उन्होंने जब मंडी में भेजना शुरू किया तो उनकी सेब की पेटी (30 किलो) 1900 रुपये से 2200 रुपये तक में बिकीं. इस तरह कंपनी ने जो सेब 45 से 50 रुपये प्रति किलो में खरीदा, वही सेब मंडी में 60 से 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिका था.
मंडियों में सेब लेकर पहुंच रहे बागवान बागवानों का विरोध- संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान और सह संयोजक संजय चौहान का कहना है कि अडानी की मनमानी को रोकने के लिए नियम तय करने जरूरी हैं. इसके लिए सरकार कमेटी गठित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बागवानों को भ्रमति करने वाली कंपनी के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा. बागवानों की नाराजगी को देखते हुए कंपनी ने सेब खरीद शुरू करने के 10 दिन के भीतर तीसरी बार दामों में बदलाव किया है. बागवानों के विरोध के चलते तीन दिन बाद ही 10 रुपये बढ़ोतरी कर इसे 105 रुपये कर दिया गया और अब 5 रुपये और बढ़ाकर सेब के प्रीमियम क्वालिटी के सेब के दाम 110 रुपए कर दिए हैं. वहीं कंपनी ने छोटे आकार के सेब का शुरुआती खरीद मूल्य 20 रुपये तय किया था, फिर 25 रुपये किया और अब इसे घटाकर 22 रुपये कर दिया है. जबकि इस बार ज्यादातर बागवानों का सेब इसी क्वालिटी का है.
वजहें और भी हैं- शिमला जिले के गोपालपुर के बागवान महेंद्र सिंह की मानें तो इस बार सेब की फसल पर मौसम की मार पड़ी है, जिसके कारण प्रोडक्शन, क्वालिटी और साइज पर असर पड़ा है. साथ ही लोकल मंडियों से लेकर दिल्ली तक की मंडियों में बागवानों को अच्छा भाव मिल रहा है. बागवान सुरेंद्र बताते हैं कि इस बार अडानी ने सेब के कम दाम लगाए जिसका बागवानों को नुकसान हुआ. जिसके बाद बागवानों ने अपना रुख मंडियों या अन्य खरीदारों की ओर मोड़ लिया है. एक अन्य बागवान के मुताबिक अडानी एग्री फ्रेश शुरुआत में कम रेट देता है. बागवानों से 40 से लेकर 80 रुपये तक में सेब खरीदा जाता है और फिर कुछ वक्त के बाद यही सेब 5,000 रुपये पेटी के हिसाब से बेचा जाता है.
कंपनी की क्या है दलील- नाम ना बताने की सूरत में अडानी एग्री फ्रेश के एक सीए स्टोर अधिकारी ने बताया कि इस बार रस्टिंग लगी है. साथ ही सेब का साइज भी काफी छोटा है. सेब का रंग भी ठीक नहीं है और कई बागवान हरा सेब लेकर पहुंच रहे हैं, लेकिन फिर भी वो बागवानों को अच्छे दाम दे रहे हैं. कंपनी अब ओपन मार्किट से सेब खरीदने में जुटी है. क्योंकि निचले इलाकों में सेब सीजन पूरी तरह से खत्म हो चुका है, अब सिर्फ ऊंचाई वाले इलाकों का सेब ही बचा है. कंपनी के प्रवक्ता ने बताया कि इस बार सेब का उत्पादन कम होने की वजह से ये फैसला लिया है. प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी के दाम मंडियों से बेहतर हैं और कंपनी किसानों को सेब लाने के लिए क्रेट भी उपलब्ध करवा रही है. उन्होंने कहा कि कंपनी सेब लाने के लिए बागवानों को क्रेट्स उपलब्ध करवाती हैं, इससे बागवानों के क्रेट, पेटी या पैकिंग मटीरियल का पैसा बचता है. साथ ही कंपनी बागवानों को सेब उत्पादन के प्रति शिक्षित और जागरुक करती है. कई बार बागवानों को ढुलाई में लगने वाले खर्च में भी छूट दी जाती है.
सेब बागवान कर रहे मंडियों का रुख 'अडानी जैसी कंपनियां जरूरी'-शिमला जिले के कोटगढ़ में सेब की सहकारी सभाओं के संयोजक और प्रगतिशील बागवान सतीश भलैक का मानना है कि सेब के भविष्य के लिए अडानी समेत अन्य कंपनियों का होना जरूरी है और ऐसी अन्य कंपनियों को भी ज्यादा से ज्यादा हिमाचल आना चाहिए. जितनी ज्यादा कंपनियां होंगी उतना ही फायदा होगा. ज्यादा खरीदार होने से मंडियों में सेब का फ्लो ज्यादा नहीं रहेगा, फिलहाल ज्यादातर सेब और बागवान मंडियों के ही भरोसे हैं. हमें लॉन्ग टर्म के फायदों को नजर में रखकर इन कंपनियों के बारे में सोचना चाहिए. सतीश भलैक ने बताया कि सरकार ने तो इस साल किलो के हिसाब से सेब खरीदने की शुरुआत की है, लेकिन सीए स्टोर वाली कंपनियां पहले से ही किलो के हिसाब से सेब खरीद कर रही हैं. जिसे पॉजिटिव नजरिये से देखना चाहिए.
प्रगतिशील बागवान और संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान भी मानते हैं कि सेब खरीदने वाली कंपनियां ज्यादा से ज्यादा हिमाचल आनी चाहिए, ये बागवानों के हित में है, लेकिन इन कंपनियों पर कंट्रोल होना जरूरी है. अपनी सहुलियत से सेब खरीदना और मनमाने रेट तय करना किसान-बागवानों का शोषण है. पहले बागवानों को लगता था कि कंपनियों के आने से फायदा होगा. क्योंकि मंडी में आढ़ती या कमीशन एजेंट शोषण करते थे, लेकिन अब कंपनी बागवानों के साथ वही कर रही है. हरीश चौहान सवाल उठाते हैं कि कंपनियों के रेट तय करने का कोई मानक नहीं है और विडंबना ये है कि सरकार ने इन कंपनियों के साथ कोई एमओयू नहीं किया है, जिससे किसानों के हित संरक्षित किए जा सकें. ऐसे में इन कंपनियों पर कंट्रोल के लिए नियम कायदे तय होने चाहिए. हरीश चौहान इसके लिए कमेटी बनाने की मांग करते हैं, जिसमें सरकार के साथ किसान या बागवानों के प्रतिनिधि, मार्केटिंग बोर्ड, मापतोल विभाग के प्रतिनिधि हों. ये कमेटी मानक तय करे, तभी बागवानों का शोषण रुकेगा.
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