पटना: बिहार में हाल ही में जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गयी. इसके अनुसार बिहार में हिंदुओं मेंसवर्णों में सबसे अधिक पलायन है. बिहार के हिंदू सवर्ण वर्गों में पलायन दर 9.98% है. वहीं ओबीसी का 5.39% और ईबीसी का 3.9% है. यह पलायन 1990 की दौड़ से तेज हुआ है और पलायन करने वालों की मानें तो बिहार में प्रतिभा के अनुरूप उनके पास अवसर नहीं है.
बिहार से पलायन के सबसे बड़े कारण: प्रवासी बिहारियों का कहना है कि अवसर नहीं होने के कारण उसकी तलाश में दूसरे प्रदेशों में और विदेशों में जाना पड़ता है. वहीं एक्सपर्ट की मानें तो उनका कहना है कि इसका कारण पूल फैक्टर है यानी कि संपन्न लोग रोजगार के बेहतर अवसर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर शिक्षा की व्यवस्था बेहतर कानून व्यवस्था के लिए उन जगहों पर पलायन करते हैं जहां यह उपलब्ध है.
'स्कॉटलैंड में रहना मजबूरी':ऐसे ही कुछ सवर्णों से जो बिहार छोड़कर दूसरे देश में जाकर बस गए हैं, ईटीवी भारत ने बात की है. उन्हीं में से एक हैं पटना के रहने वाले वेदांत वर्मा जो छठ में घर आए हुए हैं. उनके पिताजी बिहार सरकार में अधिकारी पद से रिटायर हुए हैं. मास्टर्स डिग्री के लिए वह स्कॉटलैंड गए और वहीं उन्हें अच्छे पैकेज की नौकरी मिल गई. वेदांत ने बताया कि वहां उनकी सैलरी करोड़ के पैकेज में है और यह पैकेज बिहार में नहीं मिल सकता.
"मैंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार में कोशिश की थी लेकिन यहां इंडस्ट्री नहीं है और ना ही इस प्रकार माहौल है. स्कॉटलैंड में सोशल मीडिया स्ट्रेटजिस्ट के तौर पर काम करता हूं. माता-पिता के साथ रहना अच्छा लगता है लेकिन मेरे अनुरूप यहां जॉब ही नहीं है, जिस कारण स्कॉटलैंड में जॉब करते हैं. अकेलापन जरूर खलता है. यहां अच्छी सैलरी में मेरे लायक काम मिले तो जरूर शिफ्ट कर जाएंगे."- वेदांत वर्मा, प्रवासी बिहारी
रेडियो जॉकी चंदा झा ने भी साझा किया अपना दर्द: लंदन से छठ मनाने बिहार पहुंचीं रेडियो जॉकी में काम करने वाली चंदा झा ने बताया कि बिहार में जातीय जनगणना के बेस पर देखा जाए तो तो यहां पर रहना मुश्किल है. आरक्षण के कारण नौकरी खोजने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. टैलेंट और क्वालिफिकेशन अगर ना हो तो बिहार में उच्च जाति के लोगों को नौकरी मिलना मुश्किल है.
"टैलेंट और क्वालिफिकेशन होने के बावजूद भी उच्च जाति के लोग नौकरी से वंचित रह जाते हैं. आरक्षण इतना हावी है कि टैलेंट और क्वालिफिकेशन कहीं काम नहीं आता. जातीय जनगणना के हिसाब से अगर बिहार में रहती तो शायद यह मुकाम हासिल नहीं कर पाती. क्योंकि आरक्षण पूरी तरह से हावी है और आरक्षण के हिसाब से मुझे नौकरी नहीं मिलती."- चंदा झा, रेडियो जॉकी
'आरक्षण नहीं टैलेंट आएगा काम' -चंदा झा:चंदा झा ने बताया कि वह मैथिल ब्राह्मण हैं. उनका बेटा लंदन के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ता है. उन्होंने बताया कि हमारे बच्चे सिर्फ इतना जानते हैं कि हम उच्च जाति में मैथिल ब्राह्मण हैं. लेकिन अगर कुछ करना है, कोई मुकाम हासिल करना है तो सिर्फ मेरी पढ़ाई, मेरा टैलेंट एजुकेशन ही काम आएगा. इसलिए मैं अपने बच्चों के पढ़ाई और एजुकेशन पर ज्यादा ध्यान देती हूं. मुझे बिहार की याद हमेशा आती है. खासकर जब भी कोई त्योहार आता है तो बिहार की याद आती है.
सही सैलरी और काम नहीं मिलता: वहीं पटना के अनीसाबाद के रहने वाले प्रणव राज ने भी अपने पलायन की पीड़ा को बताया. पटना में प्रतिभा के अनुरूप रोजगार और उसका वाजिब मूल्य नहीं मिल पाने के कारण नोएडा पलायन कर गए हैं. छठ मनाने घर आए और अब वापस लौट रहे हैं.
"मैं प्राइवेट सेक्टर बैंकिंग में हूं. बिहार में अगर मुझे नौकरी मिलती और वाजिब वेतन मिलता तो बिहार में शिफ्ट कर जाता. पटना में घर पर माताजी अकेले रहती हैं और पिताजी नहीं हैं. मैं घर का इकलौता बेटा हूं."- प्रणव राज, प्रवासी बिहारी