लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 'आदिपुरुष' फिल्म के विरुद्ध दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, टिप्पणी की है कि 'हिन्दू सहिष्णु है और हर बार उसके सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है, वे सभ्य हैं तो उन्हें दबाना सही है क्या?' मौखिक टिप्पणी करते हुए, न्यायालय ने कहा कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान विवाद एक ऐसे धर्म के बारे में है जिसे मानने वालों ने कहीं पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब नहीं किया, हमें उनका आभारी होना चाहिए, कुछ लोग सिनेमा हॉल बंद कराने गए थे, लेकिन उन्होंने भी सिर्फ हॉल बंद करवाया, वे और भी कुछ कर सकते थे.
इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने फिल्म के डायलॉग लेखक मनोज मुंतशिर उर्फ मनोज शुक्ला को मामले में प्रतिवादी संख्या 15 बनाए जाने सम्बंधी प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए, उन्हें नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने मामले को बुधवार को पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश देते हुए, डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को केंद्र सरकार व सेंसर बोर्ड से निर्देश प्राप्त कर यह अवगत कराने को कहा है कि मामले में वे क्या कार्रवाई कर सकते हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान व न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की अवकाशकालीन खंडपीठ ने कुलदीप तिवारी व नवीन धवन की याचिकाओं पर पारित किया.
कुलदीप तिवारी की याचिका में फिल्म के तमाम आपत्तिजनक दृश्यों व संवादों का हवाला देते हुए, प्रदर्शन पर रोक की मांग की गई है, जबकि नवीन धवन की ओर से प्रदर्शन पर रोक के साथ फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण पत्र निरस्त किए जाने की मांग की गई है. बहस के दौरान याचियों के अधिवक्ताओं की दलील थी कि सिनेमेटोग्राफ एक्ट के प्रावधानों तथा उक्त कानून के तहत बनाई गईं गाइडलाइंस का कोई पालन सेंसर बोर्ड द्वारा नहीं किया गया. कहा गया कि उक्त फिल्म में दिखाए गए गलत तथ्यों के कारण नेपाल ने न सिर्फ इस फिल्म पर बल्कि सभी हिन्दी फिल्मों पर अपने यहां रोक लगा दी है. दलील दी गई कि फिल्म न सिर्फ हिंदुओं की भावनाएं आहत कर रही है बल्कि मित्र देशों से सम्बंध भी खराब कर रही है, वहीं जब फिल्म में दिखाए गए डिसक्लेमर पर न्यायालय ने टिप्पणी की कि आप भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण और लंका दिखाते हैं और डिसक्लेमर लगाते हैं कि यह रामायण नहीं है, क्या आपने देशवासियों को बेवकूफ समझा है.
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