नई दिल्ली: नई दिल्ली : समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं की सुनवाई अब गुरुवार को होगी. बुधवार को समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वह अपनी पूर्ण शक्ति, 'प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार' का इस्तेमाल कर समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे, ताकि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह 'सम्मानजनक' जीवन जी पाएं. एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए.
इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं. रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र किया और कहा कि समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन 'कानून ने तत्परता से काम किया' और अंतत: इसे सामाजिक स्वीकृति मिली. उन्होंने पीठ से कहा कि यहां, इस अदालत को समाज को समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है. इस अदालत के पास, संविधान के अनुच्छेद-142 (जो उच्चतम न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है) के तहत प्रदत्त अधिकारों के अलावा, नैतिक अधिकार भी है.
इसे जनता का भरोसा भी हासिल है. हम यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर हैं कि हमें हमारा हक मिले. रोहतगी ने कहा कि राज्य को आगे आकर समलैंगिक शादियों को मान्यता प्रदान करनी चाहिए... इससे हमें विषमलैंगिकों की तरह ही समान जीवन व्यतीत करने में मदद मिलेगी. मामले में दूसरे दिन की सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक नयी याचिका दाखिल कर शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए.
उच्चतम न्यायालय में दायर एक नए हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इन याचिकाओं में उठाए गए 'मौलिक मुद्दों' पर उनकी टिप्पणियां और राय आमंत्रित की है. हलफनामे में कहा गया है कि इसलिए, विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मौजूदा कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए, उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए तथा भारत संघ को राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया को समाप्त करने, उनके विचार/आशंकाएं प्राप्त करने, उन्हें संकलित करने तथा इस अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाए, और उसके बाद ही वर्तमान मुद्दे पर कोई निर्णय लिया जाए.
हलफनामे में कहा गया है कि यह सूचित किया जाता है कि भारत संघ ने 18 अप्रैल 2023 को सभी राज्यों को पत्र जारी कर याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां और विचार आमंत्रित किए हैं. सरकार की ओर से दायर नयी याचिका का विरोध करते हुए रोहतगी ने कहा कि याचिकाओं में केंद्रीय कानून, विशेष विवाह अधिनियम को चुनौती दी गई है और सिर्फ इसलिए कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आपको इस स्तर पर मेहनत करने की जरूरत नहीं है.