दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

SC ने अनुच्छेद 370 पर कहा- राज्यों की स्वायत्तता संविधान के लिए मौलिक - Senior advocate Rajeev Dhavan

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने पर सुनवाई करते हुए कहा है कि राज्यों की स्वायत्तता संविधान के लिए मौलिक अधिकार है. बता दें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में पांच न्यायाधीश शामिल हैं. पढ़ें सुमित सक्सेना की रिपोर्ट...

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By

Published : Aug 16, 2023, 3:34 PM IST

Updated : Aug 16, 2023, 10:20 PM IST

नई दिल्ली : जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के मामले पर बुधवार को फिर सुनवाई हुई. इस दौरान जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्यों की स्वायत्तता संविधान के लिए मौलिक है और विविधता को संजोने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि एकरूपता की तलाश में इसे दूर नहीं किया जाना चाहिए, साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शक्तियां इसके तहत हैं.

धवन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ तर्क देते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन का उपयोग संविधान में संशोधन के लिए नहीं किया जा सकता है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत शामिल हैं. बता दें कि पीठ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही है, जिसमें पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष प्रावधान प्रदान किया था. धवन ने कहा कि स्वायत्तता हमारे संविधान के लिए मौलिक है और संविधान से अलग नहीं है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्यों को दी गई स्वायत्तता को रेखांकित करने वाले प्रावधानों के बिना भारत ध्वस्त हो गया होता.

उन्होंने कहा कि एकरूपता की तलाश संविधान के मूल में नहीं है. उन्होंने कहा कि कश्मीरी को संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, साथ ही उन्होंने सवाल किया कि अब कश्मीरी की स्थिति क्या है? क्या यह आठवीं अनुसूची से गायब हो गया है? संविधान के अनुच्छेद 239ए (कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्थानीय विधानसभाओं या मंत्रिपरिषद या दोनों के निर्माण की संसद की शक्ति) का हवाला देते हुए धवन ने कहा कि जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित करते समय इसका पालन नहीं किया गया था.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली के साथ जो किया गया, वह किया जाना चाहिए था. धवन ने इस बात पर जोर दिया कि एकरूपता की तलाश में विविधता को सहेजने की जरूरत है और पूर्वोत्तर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इन सभी स्वायत्तताओं के अभाव में भारत ध्वस्त हो गया होता. धवन ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत शक्तियों का बार-बार दुरुपयोग किया गया है और यह संविधान में संशोधन करने के लिए दी गई शक्ति नहीं है.

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर कोई मरा हुआ घोड़ा नहीं है जिसे कोड़े मारे जाएं और भारतीय संघवाद में स्वायत्तता को समझना बहुत महत्वपूर्ण है. मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि आम तौर पर जब विधायिका साधन और शामिल शब्द का उपयोग करती है, तो यह शक्ति के विस्तार का संकेत है. पीठ ने धवन से आगे सवाल किया, मान लीजिए कि राष्ट्रपति एक उद्घोषणा में संविधान के किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित कर देते हैं, तो क्या इसे इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह आकस्मिक या पूरक नहीं है? या क्या ये शब्द संविधान के अनुच्छेद 356(1)(बी) के पहले भाग के दायरे को बढ़ा रहे हैं?’ धवन ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 356(1)(सी) के तहत प्रयोग की गई शक्ति अनुच्छेद के तहत दिए गए अनिवार्य प्रावधान को कमजोर नहीं कर सकती है.

ये भी पढ़ें - महिलाओं के लिए लैंगिग संवेदनशीलता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने जारी की हैंडबुक

Last Updated : Aug 16, 2023, 10:20 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details