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Supreme Court News : न्यायपालिका पर टिप्पणी को लेकर उपराष्ट्रपति, रीजीजू के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

याचिका में कहा गया था कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका, विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी की. बीएलए ने कुछ कार्यक्रमों में उपराष्ट्रपति और मंत्री के दिए गए बयानों का हवाला दिया.

Supreme Court News
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Published : May 15, 2023, 8:09 AM IST

Updated : May 15, 2023, 12:41 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायपालिका और कॉलेजियम प्रणाली पर उनकी टिप्पणियों के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ जनहित याचिका खारिज करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (बीएलए) की याचिका पर सोमवार को सुनवाई करेगा.

वकीलों के संगठन ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है, जिसमें उसकी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं था.

शीर्ष अदालत की वेबसाइट के अनुसार, बीएलए की अपील न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. बीएलए ने दावा किया था कि रीजीजू और धनखड़ ने अपनी टिप्पणियों और आचरण से संविधान में विश्वास की कमी दिखाई है. बीएलए ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति के रूप में और रीजीजू को केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री के रूप में कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए आदेश देने का अनुरोध किया था.

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एक अपील में, वकीलों के संगठन ने कहा कि उपराष्ट्रपति और मंत्री द्वारा न केवल न्यायपालिका बल्कि संविधान पर 'हमले' ने सार्वजनिक रूप से उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को घटाया है. रीजीजू ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली 'अस्पष्ट और अपारदर्शी' है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती केस के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था, जिसने बुनियादी ढांचे का सिद्धांत दिया था.

धनखड़ ने कहा था कि फैसले ने एक बुरी मिसाल कायम की है और अगर कोई प्राधिकार संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाता है, तो यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने बंबई उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी जिसमें प्रतिवादी नंबर 1 और 2 को सार्वजनिक रूप से उनके कथन और आचरण के लिए क्रमशः उपराष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री पद के लिए अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया गया.

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याचिका में कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 1 और 2 के आचरण ने उच्चतम न्यायालय और संविधान में जनता के विश्वास को हिला दिया है. याचिका में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्री ने शपथ ली है कि वे संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेंगे. याचिका में कहा गया कि हालांकि, उनके आचरण ने भारत के संविधान में विश्वास की कमी को दिखाया है. उच्च न्यायालय ने नौ फरवरी को जनहित याचिका को खारिज कर दिया था.

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(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : May 15, 2023, 12:41 PM IST

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