कोलकाता :कलकत्ता हाईकोर्ट में एक मामला पिछले 150 सालों से चला आ रहा है. शायद आप भी चौंक गए होंगे, लेकिन यह हकीकत है. सबसे बड़ी बात ये है कि कलकत्ता हाईकोर्ट भी उतना ही पुराना है, जितना पुराना यह मामला. यह मामला दक्षिणेश्वर काली मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा है. मंदिर ट्रस्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. मार्च 2021 में जस्टिस शेखर बॉबी शराफ ने मंदिर बोर्ड के ट्रस्टियों के चुनाव का आदेश दिया था, ताकि मंदिर का प्रबंधन ठीक से चलता रहे. ट्रस्ट में राज्य के मंत्री भी हैं. अब, यह चुनाव ही नई समस्या की जड़ है. वर्तमान सेवायात कौशल चौधरी और उनके साथियों पर चुनाव में बाधा उत्पन्न करने का आरोप लग रहा है.
कोर्ट सूत्रों के अनुसार रानी रासोमणि ने अपनी मृत्यु से ठीक एक दिन पहले 18 फरवरी 1831 को अपने आठ पोतों (ग्रैंड सन्स) को मंदिर की जवाबदेही सौंपी थी. इनके नाम हैं- गणेश दास, बलराम दास, द्वारका विश्वास, त्रिलोकिया बिस्वास, सीताराम दास, जादूनाथ चौधरी, भूपलचंद्र बिस्वास और ठाकुरदास बिस्वास. रानी की मौत के करीब 10 साल बाद मंदिर के कामकाज को लेकर आपसी खींचातानी शुरू हो गई थी. उसके बाद इस विवाद को निपटाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.
1872 में बलराम दास और गुरुचरण बिस्वास ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की. याचिका के अनुसार रानी ने यह नहीं लिखा था कि मंदिर को किस तरह से चलाना है. इसके बाद 1912 में हाईकोर्ट ने मंदिर प्रबंधन के लिए एक दिशा निर्देश जारी किया. इसके तहत एक ट्रस्ट का गठन कर दिया गया. लेकिन आने वाले समय में जैसे-जैसे सेवायतों की संख्या बढ़ती गई, समस्याएं और जटिल होती चली गईं. आज की तारीख में यहां पर सेवायतों की संख्या 600 से अधिक हो गई है.