मुंबई :बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2010 के पुणे के हिंजेवाड़ी दुष्कर्म मामले में दोषियों की सजा कम करने से साफ इनकार कर दिया. साथ ही निचली अदालत में सुनवाई के दौरान जिस तरह से बचाव पक्ष के वकील ने पीड़िता को ग्राफिक डिटेल दिखाकर जिस तरह से बहस की उस पर भी नाराजगी जताई.
उच्च न्यायालय ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराध बढ़ रहे हैं और अदालतों को दंड देने की नीति अपनानी चाहिए. बॉम्बे हाईकोर्ट ने बचाव पक्ष द्वारा पीड़िता को दिए गए ग्राफिक और विस्तृत सुझावों को भी अस्वीकार कर दिया. जस्टिस एसएस जाधव और जस्टिस एसवी कोतवाल की खंडपीठ ने कहा कि 'पीड़िता से पूछे गए सवालों में दुष्कर्म के विवरण के संबंध में दिए जा रहे सुझाव शामिल थे. इन सुझावों को शायद ही उचित जिरह कहा जा सकता है.'
अदालत ने आगे कहा, 'सुझाव देने की आड़ में, अधिनियम का ग्राफिक विवरण गवाह को दिया गया था.' पीठ ने इस तरह के सवालों की अनुमति देने वाले न्यायाधीश के 'निष्क्रिय दृष्टिकोण' पर भी निराशा व्यक्त की.
पीठ ने कहा कि 'पीड़िता जिरह के दौरान रो रही थी तो ट्रायल जज को पूछताछ रोकनी चाहिए थी. इन सवालों की अनुमति देने में विद्वान न्यायाधीश द्वारा अपनाए गए निष्क्रिय दृष्टिकोण के कारण हमें अधिक पीड़ा होती है.' पीठ ने कहा, इन सुझावों ने बुनियादी गरिमा की सभी सीमाओं को पार कर दिया. अदालत ने सुझावों पर आपत्ति न करने के लिए विशेष लोक अभियोजक की निष्क्रियता पर भी नाराजगी व्यक्त की.