देहरादून : उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court ) ने चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी है. कोर्ट भक्तों की आस्था को देखते हुए दर्शन लाइव करवाने के आदेश दिए हैं.
हाईकोर्ट ने सीमित संख्या में तीर्थयात्रियों के साथ चार धाम यात्रा की अनुमति देने वाले राज्य मंत्रिमंडल के फैसले पर रोक लगा दी है. इस मामले पर अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी. कोर्ट ने सचिव पर्यटन और सचिव स्वास्थ्य को पुनः जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
दरअसल, उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे कोरोना मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. याचिका पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई हुई. इससे पहले गत 25 जून की कैबिनेट में राज्य सरकार ने प्रदेश के तीन जिलों के लिए सीमित रूप में चारधाम यात्रा शुरू करने का निर्णय लिया था. नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने 28 जून को हुई सुनवाई में चारधाम यात्रा शुरू करने के उत्तराखंड कैबिनेट के निर्णय पर रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने चारधाम में होने वाली पूजा का लाइव टेलीकास्ट किये जाने के निर्देश भी दिए हैं.
हाईकोर्ट आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है उत्तराखंड सरकार
हाईकोर्ट आदेश को उत्तराखंड सरकार (uttarakhand government) सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में चुनौती दे सकती है. उत्तराखंड सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल (subodh uniyal) ने कहा कि चारधाम यात्रा (chardham yatra) को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसकी लिखित कॉपी अभी उन्हें नहीं मिली है. लिखित आदेश आने के बाद उसको देखा जाएगा. उसके बाद अगर जरूरत पड़ी तो उत्तराखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी.
शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने साफ कहा कि नैनीताल हाईकोर्ट के लिखित आदेश का परीक्षण करने के बाद और सारे हालत देखने के बाद ही उत्तराखंड सरकार जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट जाएगी. उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर चारोंधामों में 750 यात्री ही दर्शन कर सकते थे.
उन्होंने कहा कि चारोंधामों में तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित की गई है. इसके अलवा एक-एक अधिकारी को हर धाम में देवस्थानम् बोर्ड और जिला प्रशासन के साथ बैठकर उनके साथ यात्रा की तैयारियों और उसकी मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी के साथ भेजने का निर्णय लिया था. ऐसी परिस्थिति में भी उच्च न्यायालय ने चारधाम यात्रा पर जो स्टे किया है, उस पर आदेश की कॉपी मिलने के बाद उसका परीक्षण किया जाएगा. जरूरत पड़ेगी तो आगे का निर्णय लेते हुए उच्चतम न्यायालय जाएंगे.
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