नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें यहां जीवन के लिए खतरे वाली स्थितियों को छोड़कर इंटरसेक्स (मध्यलिंगी) शिशुओं और बच्चों पर चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया है.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार और डीसीपीसीआर को नोटिस जारी कर उन्हें याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. पीठ इस मामले में अब अक्टूबर में आगे सुनवाई करेगी.
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सृष्टि मदुरै एजुकेशनल रिसर्च फाउंडेशन द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया है कि डीसीपीसीआर ने एक सुविचारित राय दी कि दिल्ली सरकार और उसके स्वास्थ्य विभाग को जीवन के लिए खतरा वाले मामलों को छोड़कर इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक, लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करनी चाहिए लेकिन आज तक राय पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
अधिवक्ताओं रॉबिन राजू, यश प्रकाश और दीपा जोसेफ के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया है कि लिंग-चयनात्मक सर्जरी या चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक सामान्य सर्जरी के मुद्दे का इंटरसेक्स लोगों के दिमाग पर लंबे समय तक भारी मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है.
याचिकाकर्ता ने डीसीपीसीआर की राय को लागू करने के लिए सरकार को निर्देश देने और एक विस्तृत नीति या दिशानिर्देश तैयार करने का अनुरोध किया, जिनमें यह बताया जाये कि किन परिस्थितियों में इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर चिकित्सा सर्जरी की जा सकती है.
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यह याचिका सृष्टि मदुरै एजुकेशनल रिसर्च फाउंडेशन ने अधिवक्ता रॉबिन राजू, यश प्रकाश और दीपा जोसेफ के माध्यम से दायर की थी. इसमें याचिकाकर्ता ने कहा कि जनवरी 2021 में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने एक राय दी थी कि प्रतिवादी दिल्ली सरकार और उसके राज्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक, लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध की घोषणा करनी चाहिए.