इलाहाबाद :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जिला न्यायाधीश पर 21 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जिन्होंने कोर्ट के एक क्लर्क का इस्तीफा मंजूर करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि क्लर्क ने इस्तीफा देने के बाद तीन महीने का नोटिस पीरियड पूरा नहीं किया.
साथ ही क्लर्क पर सरकारी सेवा नियम, 2000 के नियम 4 के तहत तीन महीने का नोटिस देने में विफल रहने के कारण अनुशासनात्मक जांच करने के आदेश भी दिए गए. न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि क्लर्क के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच करना मानसिक उत्पीड़न के समान होगा. न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने जालौन के जिला न्यायाधीश पर जुर्माना लगाया और उन्हें कर्मचारी के इस्तीफे को स्वीकार करने का भी निर्देश दिया.
क्या है मामला
याचिकाकर्ता, खूब सिंह वर्ष 2015 में उरई में जालौन के जजशिप में क्लर्क के रूप में कार्यरत थे. इसके बाद, स्टेनोग्राफर (रेलवे भर्ती बोर्ड) के पद के लिए चुने जाने पर उन्होंने 17 जुलाई 2020 को अपना इस्तीफा दे दिया. इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि चूंकि उनका रेलवे में स्टेनोग्राफर (हिंदी) के पद पर चयन हो गया है, उन्हें उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण करने के लिए कोर्ट क्लर्क के पद से मुक्त किया जाए.
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त्याग पत्र देने के बाद याचिकाकर्ता ने इस धारणा पर कि उनका इस्तीफा 1 अप्रैल 2020 से स्वीकार कर लिया गया होगा, उन्होंने 14 अगस्त 2020 को रेलवे की नौकरी ज्वॉइन कर ली. हालांकि, जिला न्यायाधीश ने 20 अगस्त, 2020 को आक्षेपित आदेश पारित किया, यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश सरकार सेवा नियम, 2000 के नियम (4) के तहत, चूंकि याचिकाकर्ता ने तीन महीने के नोटिस पर सेवा से अपना इस्तीफा नहीं दिया था, परिणामस्वरूप, उनका इस्तीफा खारिज कर दिया गया.