नई दिल्ली : इजराइल और फिलिस्तीन के बीच फिलिस्तीन इलाके को समझना बहुत जरूरी है. फिलिस्तीन के एक इलाके पर हमास का कब्जा है, जबकि दूसरे इलाके पर फतह का कब्जा है. फतह का वेस्ट बैंक पर नियंत्रण है, जबकि गाजा इलाके पर हमास का. हमास और फतह की नीति, विचार और प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. दोनों का काम करने का तरीका भी अलग है.
फतह अपने आप को एक सेक्युलर राष्ट्रवादी संगठन बताता है. उसका लक्ष्य फिलिस्तीनियों के लिए एक देश का सपना है. वह इजराइल के साथ समझौते का पक्षधर रहा है. इसके ठीक विपरीत हमास एक इस्लामिक संस्था है. वह हिंसा का सहारा लेता रहा है. वह इजराइल के अस्तित्व को अस्वीकार करता है. वह पूरे इलाके को फिलिस्तीन देश के रूप में घोषित करने का सपना रखता है.
फतह का पुराना नाम पीएनएलएम था. यानी फिलिस्तीनी नेशनल लिबरेशन मूवमेंट. कॉन्फेडरेशन ऑफ फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) का यह सबसे बड़ा घटक है. फिलिस्तीनी लेजिस्लेटिव काउंसल में फतह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. फतह के चेयरमैन महमूद अब्बास हैं.
फतह मूवमेंट की शुरुआत 1959 में हुई थी. इसकी नींव फिलिस्तीनी डायस्पोरा के सदस्यों ने रखी थी. इनमें से अधिकांश व्यक्तियों की शिक्षा खाड़ी देशों में हुई थी. जैसे किसी ने कायरो, तो किसी ने बेरूट, किसी ने दूसरे देशों में पढ़ाई-लिखाई की थी. ये सभी गाजा में बतौर शरणार्थी रह रहे थे. इसका नेतृत्व यासिर अराफात कर रहे थे. अराफात कायरो यूनिवर्सिटी के जनरल यूनियन ऑफ फिलिस्तीनी छात्रों के प्रतिनिधि थे. अन्य नेताओं में सालाह खलफ, खलिल अल वाजिर और खालिद याशुर्ति शामिल थे. इन लोगों ने फिलिस्तीनी नेशनलिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाया.
हमास की स्थापना 1987 में की गई थी. पहली बार फिलिस्तीनी अपराइजिंग के बाद इसे स्थापित किया गया था. इसे प्रथम इंतिफाडा भी कहते हैं. इसने इजिप्ट के मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रेरणा ली थी. बल्कि हमास को उसका ही एक अंग कह सकते हैं. यह मूल रूप से सुन्नी इस्लामिक फिलिस्तीनी संगठन था. अमेरिका, यूरोप, इजराइल समेत कई देशों ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है.
हालांकि, कुछ रिपोर्ट बताते हैं कि हमास को इजराइल ने ही बढ़ावा दिया था. फतह का काउंटर करने के लिए इजराइल ने हमास को आगे किया था. न्यूयॉर्क बेस्ड पत्रकार मेहदी हसन ने 2018 में एक लेख में इस तथ्य का खुलकर उल्लेख किया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि यह कोई षडयंत्रकारी सिद्धान्त नहीं है. इजराइल के पूर्व सैन्य अधिकारी याजिक सेगेव ने न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर को बताया था कि उन्होंने हमास की आर्थिक मदद की थी. वह फतह पार्टी का विरोध करने के लिए हमास को बढ़ावा दे रहे थे. फतह मूल रूप से वामपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता था. फतह के नेता यासिर अराफात ने खुद भी एक इंटरव्यू में हमास को इजराइल का क्रिएचर बताया था.
हमास और फतह के बीच 2005 के बाद स्थिति बिगड़ने लगी. नवंबर 2004 में यासिर अराफात की मौत हो गई और उसके बाद से यह तनाव बढ़ता ही चला गया. 26 जनवरी 2006 को हुए चुनाव में हमास को जीत हासिल हुई थी. लेकिन उसे सत्ता नहीं सौंपी गई. कुछ गुटों के आपसी विरोध की वजह से स्थिति और भी जटिल हो गई. पार्टियों के बीच कोई भी समझौता नहीं हो सका. लिहाजा 2007 में हमास ने गाजा पर कब्जा कर लिया. इस घटना से ठीक पहले 2005 में इजराइल के प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन ने 9480 यहूदियों को गाजा के 21 सेटलमेंट और वेस्ट बैंक के चार सेटलमेंट से बाहर निकाल दिया था.
इस समय फतह का फिलिस्तीनी ऑथरिटी पर कब्जा है. यह वेस्ट बैंक को नियंत्रित करता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता भी मिली हुई है. गाजा का शासन हमास के पास है. इस मामले के जानकार ईटीवी भारत को बताते हैं कि 2007 में गाजा में हमास के सत्ता में आते ही इजराइल का एक लक्ष्य पूरा हो चुका था, लेकिन उन्होंने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि उन्होंने अपने पड़ोस में एक कट्टर विचाधारा वाले दुश्मन को पनाह दे दी.