वाराणसी:ज्ञानवापी शृंगार गौरी प्रकरण को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर मंगलवार को जिला न्यायालय में जिला जज डॉ. एके विश्वेश ने दूसरे दिन भी सुनवाई की. सुनवाई के दूसरे दिन कोर्ट ने यह निर्धारित कर दिया कि पहले किस प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सबसे पहले मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर की गई 7/11 की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है. 7 नियम 11 वह विधान है, जो किसी दायर किए गए मुकदमे की पोषणीयता (Maintainable) को स्पष्ट करता है. इस प्रकरण में कोर्ट 26 मई से सुनवाई शुरू करेगा.
4 दिन हुई थी कमीशन कार्रवाईःदरअसल इस पूरे मामले में 14 से 16 मई तक कमीशन की कार्यवाही होने के बाद इसकी रिपोर्ट न्यायालय में सबमिट की गई थी. जिसके बाद मामले की सुनवाई कर रहे सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर मामले को आगे बढ़ाते इसके पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 24 घंटे की रोक लगाते हुए 20 मई को पूरा मामला जिला जज वाराणसी के न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश दे दिया.सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा थाः सुप्रीम कोर्ट ने उस समय स्पष्ट किया था कि पहले तो इस मामले की पोषणीयता पर सुनवाई होनी चाहिए. जिसकी मांग लोकल कोर्ट के अलावा सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने की थी. इसकी सुनवाई सोमवार से वाराणसी के जिला न्यायालय में शुरू हुई तो कोर्ट ने मंगलवार को पूरे मामले की रूपरेखा निर्धारित करते हुए पहले किस मामले पर सुनवाई होगी. इसे स्पष्ट करने के लिए मंगलवार 24 मई की तिथि मुकर्रर की थी. इसके बाद मंगलवार को कोर्ट में 2:00 बजे जब सुनवाई शुरू की तो 20 सेकेंड के अंदर ही कोर्ट ने यह निर्धारित कर दिया कि मामले की सुनवाई सबसे पहले मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर की गई याचिका पोषणीयता यानी 7/11 के प्रश्न पर शुरू की जाएगी.
जानिए क्या है यह 7 नियम 11: मुस्लिम पक्ष के वकील रईस अहमद अंसारी का कहना है कि 'हमने यह मांग माननीय कोर्ट के आगे रखी थी और कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए सबसे पहले इस प्रकरण पर ही सुनवाई करने के आदेश दिए हैं. यह बेहद आवश्यक है, क्योंकि कोर्ट पहले यह देखेगा कि जो प्रकरण संज्ञान में आया है क्या उस प्रकरण को कोई और पुराना आदेश या नियम कार्ड तो नहीं रहा है. यदि कोई भी मुकदमे में किसी पुराने नियम की वजह से कोई दिक्कत होती है तो उस मुकदमे को खारिज किया जा सकता है. यही वजह है कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से यह मांग रखी गई थी. क्योंकि 1991 के वरशिप एक्ट के तहत निर्धारित कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से किसी पूजा स्थल की वास्तविक स्थिति जो थी, उसी अनुसार उसे रहने का आदेश है और उसी पूजा का अधिकार है, जिसका स्थल वह है. इस आधार पर 7/11 के तहत मामले में सुनवाई की मांग की गई थी. फिलहाल कोर्ट में से स्वीकार कर लिया है. 26 मई से यह देखना होगा कि कोर्ट आदेश पर क्या लेना है लेता है जैसा निर्णय होगा उस आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाएगी.'
हिंदू पक्ष ने ये कहाः हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव विष्णु जैन समेत सुभाष नंदन चतुर्वेदी का कहना है कि कोर्ट ने पहले मुस्लिम पक्ष को सुनने का आदेश दिया है, जो उनकी मांग थी. फिलहाल वाद से पूरी तरह मजबूत और हमारा पूरा प्रकरण स्वीकार किया जाएगा, यह हमें पूरा विश्वास है. कोर्ट ने हमारे उस याचिका को भी स्वीकार कर लिया है, जिसमें कमीशन की रिपोर्ट की कॉपी सीडी में उपलब्ध करवाने की मांग की थी. इसके अतिरिक्त कोर्ट ने दायर की गई रिपोर्ट पर 1 सप्ताह के अंदर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने के आदेश दिए हैं.