नई दिल्ली :काशी में विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद अब अदालत में पहुंच गया है. हालांकि इस बार यह मामला श्रृंगार गौरी की पूजा को लेकर अदालत पहुंचा है. मगर श्रृंगार गौरी की पूजा ज्ञानवापी परिसर से जुड़ी है, इसलिए यह कुल मिलाकर मंदिर और मस्जिद का विवाद बनता दिख रहा है. वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत के आदेश के तहत ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफिक सर्वे का काम पूरा हो चुका है. 19 मई को टीम अदालत में रिपोर्ट पेश करेगी. इस बीच अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने सर्वे के खिलाफ याचिका पर लगाई थी, जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि वाराणसी सिविल मामले का निपटारा करे. सुप्रीम अदालत ने यह साफ किया कि इस दौरान नमाज की इजाजत दी जाए.
दावा, आदिकाल से काशी में है विश्वनाथ मंदिर
12 ज्योतिर्लिंगों के नाम शिव पुराण अनुसार (शतरुद्र संहिता, अध्याय 42/2-4) हैं. शिव पुराण में रचित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के मंत्र में '.. वारणस्यां तु विश्वेशं' का जिक्र भी आता है. पुराणों के मुताबिक, आदिकाल से ही काशी में अविमुक्तेशवर का ज्योतिर्लिंग है, जिसे विश्वेश्वर और भगवाव विश्वनाथ के नाम भी जाना जाता है. हिंदू धर्म के उपनिषद और महाभारत में काशी विश्वनाथ का उल्लेख सृष्टि के प्रथम शिवलिंग के तौर पर है.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भारत में आक्रांताओं के हमले के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर के स्वरूप में कई बदलाव हुए. चूंकि काशी सनातन काल से धर्म, शिक्षा और संस्कृति का गढ़ रहा है, इसलिए यहां के मंदिरों और शिक्षण संस्थान विदेशी आक्रमणकारी का निशाना बनते रहे. इतिहासकारों के मुताबिक आस्था के इस केंद्र पर सबसे पहले मोहम्मद गोरी ने 1194 ने हमला किया. 1447 में शर्की सुल्तान महमूद शाह ने काशी विश्वनाथ मंदिर को दोबारा तोड़ दिया.
डॉ एएस भट्ट की किताब 'दान हारावली' में बताया गया है कि 1585 में अकबर के दरबारी टोडरमल ने मंदिर को बनवाया. शाहजहां के शासन के दौर पर में इस पर हमले हुए और इससे जुड़े 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया गया. ऐतिहासिक साक्ष्यों में यह सामने आया है कि 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई. औरंगजेब की ओर से जारी किया गया विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी मौजूद है.साकी मुस्तइद खां की किताब मासीदे आलमगिरी में भी मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाने का जिक्र किया गया है. 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के गुंबद पर सोने की परत लगवाई.
इन्ही तथ्यों के आधार पर 1991 में वाराणसी के सिविल कोर्ट में याचिका लगाई गई थी. ऐसा नहीं है कि हिंदू समुदाय ने 1991 में ज्ञानवापी मस्जिद पर पहली बार अपना दावा पेश किया था. 18वीं सदी से ही हिंदू पक्ष ज्ञानवापी परिसर को हिंदुओं को सौंपने की मांग करते रहे हैं. 1771-72 में मराठा महादजी शिंदे की सेना ने जब दिल्ली पर कब्जा किया. इस दौरान शाह आलम से काशी विश्वनाथ मंदिर की क्षतिपूर्ति का हासिल भी किया मगर तब तक काशी में ईस्ट इंडिया कंपनी हावी हो चुकी थी. 1803 में मराठा और अंग्रेजों के बीच दिल्ली में लड़ाई हुई, जिसमें मराठों की हार हुई. इसके बाद 1809 और 1810 के बीच ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदुओं का कब्जा था. उस समय बनारस के जिलाधिकारी रहे डीएम मि. वाटसन ने ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने के लिए कहा, मगर तब दंगों के कारण लागू नहीं हो पाया. 1883 में सरकारी दस्तावेज में विवादित स्थल को ज्ञानवापी के नाम पर दर्ज किया गया.
ज्ञानवापी का विवाद क्या है: ज्ञानवापी मस्जिद और नए विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है. ज्ञानवापी का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान का कुआं. हिंदू मान्यता और जनश्रुति के अनुसार, भगवान शिव स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के तौर पर काशी में अवतरित हुए थे. स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से कुएं का निर्माण किया था .कुएं के पास ही भगवान शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इसे ज्ञानवापी कहा जाने लगा. हिंदू पक्ष दावा है कि विवादित ढांचे के नीचे स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है. इसके अलावा मंदिर के देवी देवताओं के विग्रह भी परिसर में मौजूद है. विशाल नंदी का मुख भी मस्जिद की ओर है. मंदिर में नंदी का मुख हमेशा शिवलिंग के सामने होता है. इससे इस विश्वास को मान्यता मिली कि पौराणिक शिवलिंग ज्ञानवापी परिसर में ही है. इसके अलावा हिंदू पक्ष मस्जिद के ढांचे में हिंदू मंदिर के प्रतीक चिह्न होने का दावा भी करता है, जिसे मुस्लिम पक्ष खारिज करता है.