भोपाल :मध्य प्रदेश के जबलपुर में इन दिनों सबसे बड़ी समस्या कोरोना वायरस का संक्रमण बना हुआ है. यदि किसी को यह संक्रमण होता है तो वह सीधे अस्पताल के लिए दौड़ लगा देता है और अस्पताल में स्थितियां ऐसी हैं कि ना तो आईसीयू में बेड हैं, ना ऑक्सीजन है और ना ही सुविधाएं हैं. बल्कि ऑक्सीजन का माहौल भी लोगों को बीमार कर रहा है. ऐसे में जबलपुर के रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश का प्रयोग यदि लोग दोहराएं तो उन्हें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि अस्पताल उनके घर आ जाएगा.
कैसे बनाएं घर पर आईसीयू
इंटेंसिव केयर यूनिट (intensive care unit) में एक बिस्तर होता है, ऑक्सीजन की व्यवस्था होती है, वेंटिलेटर होता है, पल्स नापने के लिए पल्स मीटर होता है. ऑक्सीमीटर होता है, ब्लड प्रेशर नापने के लिए एक मशीन होती है. इसके अलावा इन पूरे उपकरणों को समझने वाला एक आदमी होता है, यदि यह पूरे उपकरण आपके घर में हो जाएं तो आपको अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है और छोटे से अभ्यास से आप इन मशीनों को चला सकते हैं. जबलपुर के ऑर्डनेंस फैक्ट्री (Ordnance factory) के रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश (Retired Engineer Gyan Prakash) ने ऐसा करके दिखाया है कि उनके घर में एक इंटेंसिव केयर यूनिट है, जो उन्होंने खुद ही डिजाइन कर बनाई है.
वेंटिलेटर
रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश के पास अलग-अलग क्षमता के तीन वेंटिलेटर मशीन हैं. एक वेंटीलेटर की कीमत लगभग सवा लाख रुपया है. यह पूरी तरह से ऑटोमेटिक है. इससे पैड मशीन कहा जाता है, यह शरीर में फोर्स खुली हवा भेजता है. इससे ऑक्सीजन की सप्लाई शरीर के अंदर तक की जाती है, जब फेफड़े खुद सांस लेने में सक्षम नहीं होते हैं. रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश का कहना है कि इसमें डॉक्टर की सलाह के अनुसार दबाव तय किया जाता है, इससे फेफड़े क्षतिग्रस्त ना हो और ऑक्सीजन मरीज के शरीर तक पहुंचती रहे.
सीपैड वेंटिलेटर
यह भी एक वेंटिलेटर ही है, रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश के पास यह मशीन भी उपलब्ध है. हालांकि यह मशीन बाय पैड मशीन जितनी सक्षम नहीं है लेकिन यह मात्र 25000 में बाजार में मिल जाती है और इसका काम भी लगभग वैसा ही है जैसा महंगे वेंटिलेटर करते हैं. यह वातावरण की हवा को शरीर के अंदर दबाव के साथ भेजता है. इससे भी फेफड़े कमजोर होने की स्थिति में मरीज को ऑक्सीजन सप्लाई दी जा सकती है.
एंबू बैग
जब वेंटिलेटर नहीं हुआ करते थे, तब एम्बू बैग नाम का एक उपकरण हुआ करता था. जिसके जरिए मरीज को हाथ से ही दवाओं के साथ हवा उपलब्ध करवाई जाती थी. इस एम्बू बैग की कीमत 800 से 1000 रुपया है. इमरजेंसी के हालात में एम्बू बैग एक जीवन रक्षक उपकरण है. एक मिनट में यदि से 20 बार दवा कर मुंह और नाक के जरिए शरीर में हवा भेजी जाती है तो यह छोटा सा उपकरण एक वेंटिलेटर का काम करता है. अस्पतालों के बाहर तड़प रहे लोगों के लिए एम्बू बैग महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 50000 से लेकर 1 लाख तक मिल जाते हैं. यह मशीन अपने वातावरण से ही ऑक्सीजन को कंसंट्रेट कर के मरीज तक पहुंचा देती है. हमारे वातावरण में 20% ऑक्सीजन होती है. मशीन के जरिए इसकी सांद्रता बढ़ जाती है और यह लगातार मरीज को ऑक्सीजन सप्लाई करती रहती है, जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन की मात्रा को कम या ज्यादा किया जा सकता है. ज्ञान प्रकाश के घर के आईसीयू में एक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भी है.
ऑक्सीजन सिलेंडर
ज्ञान प्रकाश ने तो अपने घर में अपनी बीमार पत्नी के लिए ऑक्सीजन की पाइप लाइन डाल रखी है. उनकी पत्नी जहां भी जाती हैं उन्हें ऑक्सीजन का नोजल मिल जाता है. लेकिन ज्ञान प्रकाश का कहना है कि यदि आम आदमी इतना खर्च करना नहीं चाहता तो कम से कम एक ऑक्सीजन सिलेंडर जरूर घर पर रखें, ताकि विषम परिस्थितियों में परिवार के बीमार सदस्य को ऑक्सीजन दी जा सके.
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एंबुलेंस
ज्ञान प्रकाश ने अपनी सामान्य कार को एंबुलेंस में बदल दिया है. इसमें पीछे सेफ्टी बेल्ट के पॉइंट पर कुछ ऐसे क्लैंप लगवाए हैं. जिसमें ऑक्सीजन सिलेंडर फंस जाता है और यहां चलती कार में मरीज को ऑक्सीजन मिल जाती है, सामने वाली सीट को पूरी तरह फैला कर सामान्य कार को भी एंबुलेंस की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. घर में ही आईसीयू बनाने का विचार ज्ञान प्रकाश को इसलिए आया क्योंकि उनकी पत्नी के फेफड़े कमजोर हो गए थे. अस्पताल जाने पर उन्हें इंफेक्शन हो जाता था. इसलिए ज्ञान प्रकाश ने अपने घर में ही एक अस्पताल की तमाम जरूरी चीजें इकट्ठा की और एक नर्स को अपने घर में ही रहने के लिए राजी करवा लिया ज्ञान प्रकाश की इस कोशिश की वजह से ही बीते लगभग डेढ़ साल से इन्हें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ी और जिस सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं. यदि उसका किराया अस्पताल के हिसाब से लगाया जाए तो ज्ञान प्रकाश को लाखों रुपया अस्पताल को देने होते हैं.
हवादार कमरे को आईसीयू में कैसे बदले
आईसीयू को बनाने में रिटायर्ड इंजीनियर ज्ञान प्रकाश को लगभग ढाई से 3 लाख रुपये का खर्च करना पड़ा लेकिन यदि आम आदमी एक सुविधाजनक आईसीयू बनाना चाहता है. लगभग एक लाख की लागत में अपने घर के किसी भी हवादार कमरे को आईसीयू में बदला जा सकता है, जो किसी भी बड़े अस्पताल का मात्र एक दिन का बिल है. फिलहाल ऐसा लग रहा है कि कोरोना वायरस एक स्थाई समस्या है, इसलिए इसका स्थाई समाधान घर के एक कमरे को अस्पताल बनाकर ही किया जा सकता है. क्योंकि सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाएं नहीं हैं और निजी अस्पताल बहुत महंगे हैं यदि फोन पर भी डॉक्टर आपको सलाह देता रहता है तो मात्र 1 लाख के उपकरण आप की जान बचा सकते हैं, जो पूरे परिवार की जान बचाने के लिए बहुत कम राशि है.