अहमदाबाद/गांधीनगर : गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 (Gujarat Assembly Election 2022) के दूसरे चरण में 93 सीटों के लिए शाम पांच बजे तक करीब 61.21 फीसदी मतदान हुआ. हालांकि इन आंकड़ों को अंतिम नहीं कहा जा सकता, इनमें बदलाव हो सकता है. 2017 से तुलना करें तो यह काफी कम है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण के मतदान में 69.77 फीसदी वोट डाले गए थे.
साबरकांठा में सबसे ज्यादा,अहमदाबाद में सबसे कम मतदान : शुरुआती आंकड़ों के अनुसार सभी 14 जिलों में से साबरकांठा में 65.84 प्रतिशत के साथ सबसे बड़ी मतदाता भागीदारी रही, उसके बाद बनासकांठा में 65.65 फीसदी मतदान हुआ. कुल 21 सीटों के लिए औसतन 53.84 प्रतिशत मतदान के साथ अहमदाबाद शहर और जिले में सबसे कम मतदान हुआ. अहमदाबाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में 65.55 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार इसमें काफी गिरावट रही.
मोदी के रोड शो का चुनाव पर असर नहीं : एक दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में 51 किलोमीटर के रोड शो में 13 निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया था. 2 दिसंबर को फॉलोअप रोड शो भी किया गया, जिसमें 3 विधानसभा सीटों को कवर किया गया. इस तरह अहमदाबाद की 16 सीटों के लिए रोड शो किया गया. सरसपुर में पीएम मोदी ने जनसभा भी की. बावजूद इसके 53.84 प्रतिशत मतदाता भागीदारी के साथ अहमदाबाद शहर और जिले में सबसे कम मतदान हुआ.
पीएम की अपील का नहीं हुआ असर : गुजरात के लोगों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिकॉर्ड संख्या में मतदान में भाग लेने और अपने परिवारों के साथ मतदान करने का आग्रह किया था. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने भी कहा था कि गुजरात इस बार वोट और सीट जीतने के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा. बावजूद इसके मतदाता मताधिकार का इस्तेमाल करने में उदासीन रहे.
दूसरे चरण के मतदान में काफी गिरावट देखने को मिली. इस बार के चुनाव में पहले चरण में 89 सीटों पर कुल 63.31 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले चरण में कुल 67.2 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानी पहले चरण में दक्षिण गुजरात और कच्छ-सौराष्ट्र के वोटर ने रुचि नहीं दिखाई. 2022 में दूसरे चरण में कुल 61.21 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2017 में 69.77 प्रतिशत मतदान हुआ था. नतीजतन दूसरे चरण में भी मतदान में भारी गिरावट देखी गई.
दोनों चरणों में मतदान घटा : इस हिसाब से अगर दोनों चरणों में हुए कुल मतदान की तुलना करें तो 2022 में औसत मतदान 61.21 प्रतिशत रहा, जबकि 2017 में यह 69.01 प्रतिशत था. नतीजतन कुल मिलाकर कम लोगों ने मतदान किया है.
वादे और गारंटी मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सके : इस बार गुजरात में कोई बड़ा मुद्दा नहीं था. बीजेपी ने सिर्फ विकास की बात की. कांग्रेस ने विकास के झूठे वादे करने के लिए आलोचना की. राहुल गांधी ने कुछ मुफ्त में देने का वादा किया. वहीं, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जब राजस्थान मॉडल लागू करने की बात कही तो गुजरात के मतदाताओं ने विश्वास नहीं किया. दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली-पंजाब मॉडल पेश करने की बात की और मुफ्त बिजली, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल और मुफ्त शिक्षा का वादा किया. हालांकि, गुजरातियों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
कमेटी वोटरों को बूथ तक लाने में नाकाम रहीं : भाजपा पेज कमेटी के सदस्य मतदाताओं को मतदान स्थल तक नहीं ला सके. सभाओं में भले ही भीड़ उमड़ी लेकिन उस हिसाब से मतदाता वोट डालने बूथ तक नहीं पहुंचे. मतदाताओं का मानना है कि बेरोजगारी और महंगाई की समस्या बनी रहेगी. इससे पता चलता है कि अधिकांश मतदाताओं ने मतदान नहीं करने का विकल्प चुना.
शादी के सीजन का भी पड़ा असर : इस समय शादी का सीजन चल रहा है, जिसका असर भी चुनाव पर पड़ा. मतदाताओं ने चुनाव में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. वहीं, सोने और चांदी की कीमतों के साथ-साथ किराने का सामान भी महंगा हो गया है. सब्जियों के महंगे होने की वजह से अब मिडिल क्लास और वर्किंग क्लास के लिए शादी भी महंगी हो गई है. यही वजह है कि मतदाता बेफिक्र रहे.
त्रिकोणीय मुकाबला : इस चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की टक्कर से वोट बंटेगा. एआईएमआईएम के 13 उम्मीदवार मुस्लिम क्षेत्रों में चुनाव लड़ रहे हैं. नतीजतन, 13 सीटों के लिए चार दलों का मतपत्र में प्रतिनिधित्व किया जाएगा. इसी वजह से मतदाता किसके पक्ष में वोट करें ये तय नहीं कर सके. हालांकि हर चुनाव जातिगत आंकड़ों से प्रभावित होता है.
टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष : टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों में अनबन थी. खासकर सत्ता में आई बीजेपी ने नए चेहरों को मौका दिया. चार सीटों पर विद्रोह हुआ और आखिरकार भाजपा का एक नेता निर्दलीय खड़ा हुआ. इसी तरह पूर्व विधायक उस सीट को लेकर भी नाराज थे, जहां से पिछले दावेदार को बाहर कर दिया गया था. यह समझ में आता है कि उनके कार्यकर्ता भी निराश महसूस करेंगे. पूर्व सीएम विजय रूपाणी, पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल, पूर्व शिक्षा मंत्री भूपेंद्र पटेल, पूर्व गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा और पूर्व कृषि मंत्री आरसी फलदू सहित वरिष्ठ राजनेताओं को टिकट नहीं दिया गया. उनकी सीट पर मौजूद कार्यकर्ता अफवाहों से परेशान हैं कि उन्हें हटाया जा सकता है. नतीजतन, मतदान की संभावना में मौजूदा गिरावट आई है.
चुनावी माहौल नहीं बना सके दल :गुजरात में विधानसभा चुनाव ने जोर तब पकड़ा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम या रोड शो में शामिल होने पहुंचे. कांग्रेस की ओर से केंद्रीय नेतृत्व उदासीन रहा. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में भी गुजरात का रूट शामिल नहीं था. वहीं, सोनिया और प्रियंका गांधी ने भी चुनाव प्रचार से किनारा कर लिया. पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचारकों ने काफी मशक्कत की है. हालांकि यहां उनके लिए आसान नहीं था.
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