Chhattisgarh Naxal News: गुडसा उसेंडी, रमन्ना, गणेश सिर्फ नाम, पद या फिर नक्सली !
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों से कई नाम हमेशा सुनने को मिलते हैं. गुडसा उसेंडी, विकल्प, रमन्ना और गणपति, ये कुछ ऐसे नाम हैं जो हमेशा खबरों में बने रहते हैं. नक्सली उनके नाम से बयान और विज्ञप्ति जारी करते हैं. हाल ही में सीएम भूपेश बघेल ने भी इन नामों के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाए थे. जिस पर नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि माओवादी पार्टी में कोई फिक्स नाम नहीं होता. नक्सली जैसे ही अपनी जगह बदलते हैं उसके हिसाब से वे नाम भी बदल लेते हैं.Naxalites in chhattisgarh
गणपति और रमन्ना
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Published : May 28, 2023, 1:50 PM IST
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Updated : May 28, 2023, 2:20 PM IST
रायपुर:25 मई झीरम हमले की 10वीं बरसी पर एक बार फिर नक्सली हमले के दोषियों को सजा की मांग उठी. NIA की जांच पर सवाल उठाते हुए भूपेश बघेल ने FIR से गणपति और रमन्ना का नाम हटाने का ठीकरा भाजपा पर फोड़ा. भूपेश बघेल ने भाजपा से गणपति और रमन्ना को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए.
भूपेश बघेल का भाजपा से सवाल:भूपेश बघले ने कहा- गणपति और गुडसा उसेंडी नक्सलियों की पोस्ट है, नाम नहीं. क्या गणपति ने सरेंडर किया है? उस व्यक्ति का नाम क्या है? यदि किया है तो कहां सरेंडर किया है? क्या नक्सल नीति के तहत उसे लाभ दिया गया है या नहीं दिया गया है?
सीएम भूपेश के इस सवाल के बाद ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सचमुच में रमन्ना, गणपति या गुडसा उसेंडी नाम के नक्सली है या सिर्फ नाम है. इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए ETV भारत ने नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी से बात की. उन्होंने बताया कि -
समाज में जब कोई व्यक्ति गृहस्थ जीवन से संन्यास जीवन लेता है तो संन्यास लेने के बाद उसका नाम बदल जाता है, ठीक उसी तरह माओवादी पार्टी में जाना एक प्रकार से संन्यास लेने जैसा है. यहां शामिल होने के बाद लोगों के वास्तविक नाम बदल जाते हैं. -नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी
प्रेस नोट जारी करने के दौरान अक्सर कुछ ही नामों का इस्तेमाल:नक्सल एक्सपर्ट की इस बात को और अच्छे से समझते हैं. नक्सलियों में एक परंपरा लंबे समय से चल रही है जिनमें वे किसी भी प्रेस नोट को जारी करने के दौरान नामों का इस्तमाल करते हैं. अब तक छत्तीसगढ़ में ज्यादातर नक्सली वारदातों के दौरान गुडसा उसेंडी के नाम से प्रेस नोट जारी हुआ करता था. माओवादी की ओर से जारी किए गए प्रेस नोट में ज्यादातर नाम गुडसा उसेंडी के हुआ करते थे, लेकिन अब नक्सलियों द्वारा गुडसा उसेंडी के नाम की जगह विकल्प का नाम इस्तेमाल किया जा रहा है. हाल ही में माओवादी की ओर से जारी प्रेस नोट में "विकल्प" का नाम देखने को मिल रहा है.
नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी बताते हैं कि गुडसा उसेंडी एक व्यक्ति नहीं वह एक नाम है. जो माओवादियों का प्रवक्ता हुआ करता था. वे व्यक्तिगत तौर पर तीन गुडसा उसेंडी को जानते हैं. तीनों अलग अलग है. लेकिन वे गुडसा उसेंडी के नाम से प्रेस नोट जारी करते थे. वर्तमान में जो प्रेसनोट भेजा जाता है उसमें गुडसा उसेंडी का नाम नहीं आता है. अभी विकल्प के नाम से प्रेस नोट जारी किया जाता है, जो व्यक्ति पहले गुडसा उसेंडी के नाम से प्रेस नोट भेजा करता था, वह विकल्प के नाम से प्रेस नोट भेजता है. माओवादियों की केंद्रीय समिति जो मुख्य डिसीजन मेकिंग बॉडी होती है उनका प्रेस नोट अभय के नाम से आता है. अभय का वास्तविक नाम अभय नहीं है उनका नाम वेणुगोपाल है."
बदलता रहता है नक्सलियों का नाम: माओवादी पार्टी एक सीक्रेटिव पार्टी है. जैसे ही उसमें कोई जुड़ता है उनका वास्तविक नाम बदल दिया जाता है. गणपति का वास्तविक नाम गणपति नहीं है, उसका वास्तविक नाम मुकपाला लक्ष्मण राव है. कहा जाता है कि जब मुकपाला लक्ष्मण राव 1990 -1991 कांकेर आए और उन्होंने तय किया कि वे कांकेर से क्रांति करेंगे तो उस दौरान एक माओवादी मारा गया था और उसका नाम गणपति था. मुकपाला लक्ष्मण राव ने गणपति का नाम ले लिया. जब मुकपाला लक्ष्मण राव मारा जायगा तो गणपति का नाम कोई और माओवादी ले लेगा.
नक्सलियों का नहीं होता असली नाम
वर्क एरिया और पुलिस से बचने बदलते है नाम:माओवादी पार्टी में एक व्यक्ति का नाम बदलता रहता है. किसी पद को लेकर ऐसा कोई फिक्स नाम नहीं होता है. किसी एक नाम को रखने का भी कोई नियम नहीं होता है. नक्सली जैसे ही अपनी जगह बदलते हैं उसके हिसाब से वे नाम भी बदलते हैं. इसके साथ ही किसी नक्सली की मौत हो जाती है तो उसका नाम दूसरे नक्सली रख लेते हैं. रमन्ना के नाम से कई नक्सली मिल जाएंगे. जबकि नक्सली लीडर रम्नना की मौत हो चुकी है.
नक्सलियों के नाम बदलने का एक कारण ये भी है कि वे उनके पीछे सुरक्षा बल और पुलिस लगी रहती है. ऐसे माओवादी जिनका मूववेंट ज्यादा होता है वह पुलिस से बचने के लिए अपना नाम बदलता रहता है.
नक्सली बदलते है अपना नाम
रायपुर में एक नक्सली थे जिन्हें हम विजय के नाम से जानते थे. वे जब दूसरी जगह गए तो उनका नाम राजू हो गया. किसी और जगह कुछ और नाम जबकि उनका वास्तविक नाम रामचंद्र रेड्डी हैं.- नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी
संन्यास लेने के जैसा है नक्सलवाद से जुड़ना
छत्तीसगढ़ के ये जिले नक्सल प्रभावित:केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार छत्तीसगढ़ के 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं. इनमें बस्तर, बीजापुर, बलरामपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, राजनांदगांव, मुंगेली और कबीरधाम जिले शामिल है. भारत सरकार के गृह मंत्रालय के मुताबिक देश के 10 प्रदेशों के 70 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं. देश के 10 नक्सल प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर आता है.