सवाल:नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति का आज दिल्ली में कर्तव्यपथ पर अनावरण होने वाला है. आप इसका एहसास कैसे करती हैं ?
जवाब: जिस शख्स ने आज़ादी के लिए नारा दिया था ‘दिल्ली चलो’, उसकी मूर्ति दिल्ली में लगाने में भारत सरकार को 75 साल लग गए. कम से कम इस सरकार ने ये काम तो किया ही. इस सरकार ने नेताजी को एक शीर्ष स्थान पर बिठा दिया है, उस जगह जहां कभी ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम की मूर्ति लगाई गई थी. भारत सरकार ने आज ये भी साबित कर दिया कि सुभाष चंद्र बोस एक राष्ट्रनायक थे. सरकार इसके लिए बधाई की पात्र है.
सवाल:आपको पिछली सरकारों से शिकायत है कि नेताजी को भारत के इतिहास में वो जगह नहीं मिली, जिसके वो सच्चे हकदार थे ?
जवाब:शिकायत तो बहुत कुछ है, लेकिन फिलहाल हमारी उम्मीद है कि नेताजी के जीवन से जुड़ी दुनिया भर में जितनी भी फाइलें हैं, उन्हें मंगवाया जाय और भारत की आज़ादी में उनके योगदान को स्कूलों के सिलेबस में जोड़ा जाय. उनके शौर्य और पराक्रम को इतिहास में सही जगह भी मिलनी चाहिए. इसके लिए रूस, जापान, वियतनाम, अमेरिका, मोज़ाम्बिक, इंग्लैंड, जर्मनी फ्रांस, इटली, मंगोलिया, ताइवान, बांग्लादेश सभी से बात करके नेताजी से जुड़ी फाइलें भारत सरकार को मंगवानी चाहिए.
सवाल:कई राजनीतिक दल आरोप लगाते रहे हैं कि नेताजी की मूर्ति लगाकर केंद्र सरकार 'बंगाली सेंटीमेंट्स' का फायदा उठा रही है.
जवाब:नेताजी अखंड भारत के राष्ट्रप्रधान थे. उन्हें बंगाली कह कर लोग उन्हें सीमित करने की कोशिश करते रहे हैं. ये गलत है. अगर गांधी जी गुजरात में जन्म लेकर सिर्फ गुजराती नहीं है, बल्कि राष्ट्रपिता हैं, तो नेताजी का तो जन्म भी बंगाल में नहीं हुआ था. वे तो ओडिशा के कटक में पैदा हुए थे. हां उनकी मातृभाषा बंगाली थी. तो वो राष्ट्रनायक क्यों नहीं हो सकते ? उनकी मूर्ति को लेकर ‘बंगाली सेंटीमेंट्स’ की बात करना बड़े छोटे दिल की बात करने जैसी हो गई.
सवाल: ममता बनर्जी का कहना है कि वे इस प्रोग्राम में नहीं आएंगी क्योंकि केंद्र सरकार की ओर से किसी अंडर सेक्रेटरी ने आमंत्रण भेजा है, जो प्रोटोकॉल के मुताबिक ठीक नहीं है.
जवाब: देखिए ममता बनर्जी को आमंत्रण देने का मतलब नही है क्योंकि सेलीब्रेशन कमेटी में ममता बनर्जी भी एक सदस्य हैं और ये कार्यक्रम सेलीब्रेशन कमेटी की तरफ से ही हो रहा है. ममता बनर्जी किसी भी अच्छे काम का विरोध करने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ़ती रहती हैं. खुद तो कोई अच्छा काम उनको करना नहीं है. नेताजी की मूर्ति का अनावरण हो रहा है, तो अगर कोई छोटी-मोटी शिकायत हो भी तो उसे नज़रअंदाज कर इस मिशन की तारीफ करनी चाहिए, सरकार का साथ देना चाहिए. नेताजी की मूर्ति अगर इधर-उधर किसी पार्क में लगा दी जाती तो वो शायद उतना महत्वपूर्ण नहीं होता, लेकिन ये मूर्ति उस जगह लगाई गई है, जहां ब्रिटेन के राजा सम्राट जॉर्ज पंचम की मूर्ति अंग्रेजों ने लगवाई थी. मतलब ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंका और ब्रिटिश सम्राट की जगह हमारे दिलों के सम्राट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित कर दी. ये बहुत बड़ी बात है।
सवाल:आपने कुछ साल पहले ग्वालियर में नाथूराम गोडसे की मूर्ति की पूजा भी की थी, काफी विवाद हुआ था उस मामले में.
जवाब: ज़रूर किया था, क्योंकि उस समय हमारे पूर्वज विभाजन नहीं चाहते थे. गांधी जी के रहते विभाजन हुआ. गांधी जी न सिर्फ चुप रहे बल्कि ये भी कहा कि पाकिस्तान जो-जो मांग रहा है, दे दो. भारत सरकार पर इसके लिए उन्होंने दबाव भी डाला. बंगाल और पंजाब की औरतों के साथ हुए अत्याचारों की कहानी गांधी जी तक नहीं पहुंची. इससे नाराज़ होकर गोडसे ने उन्हें गोली मारी. कोई उन्हें अस्पताल तक लेकर नहीं गया. हालांकि उस गोली से उनकी मौत नहीं हुई. मेरा आरोप है कि उन्हें पीछे से किसी ने गोली मारी जो गोडसे की रिवॉल्वर से नहीं निकली थी. तो किसकी रिवॉल्वर से निकली थी वो तीसरी गोली. ये पता करना उस समय की नेहरू सरकार की ज़िम्मेदारी थी.
पढ़ें- तेलंगाना ग्रेनाइट से बनी नेताजी की प्रतिमा, मूर्तिकारों को लगे 26000 घंटे
पढ़ें- दिल्ली में कार्यक्रम के न्यौते पर CM ममता बोलीं, क्या मैं उनकी बंधुआ मजदूर हूं