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मणिपुर हिंसा को रोकने में सरकार की नाकामी प्रधानमंत्री की 'घोर उदासीनता' दिखाती है: INDIA - India visit to Manipur

विपक्ष के भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (इंडिया) के 21 सदस्यीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने रविवार को मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को 'राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा' करार दिया और कहा कि प्रधानमंत्री की चुप्पी इस मुद्दे पर उनकी निर्लज्ज उदासीनता को दर्शाती है. विपक्षी गठबंधन का संसदीय प्रतिनिधिमंडल शनिवार को मणिपुर के दो दिवसीय दौरे पर आया था. सांसदों ने पहले दिन चुराचांदपुर, बिष्णुपुर और इम्‍फाल पश्चिम जिलों में राहत शिविरों का दौरा किया और प्रभावित लोगों से बातचीत की. साथ ही मणिपुर मुद्दे को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा.

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Published : Jul 30, 2023, 6:51 PM IST

इंफाल : विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' ने मणिपुर के हालात के प्रति 'घोर उदासीनता' दिखाने और 'चुप्पी' साधने का आरोप लगाते हुए रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की. उन्होंने कहा कि सरकारी तंत्र पूर्वोत्तर राज्य में करीब तीन महीनों से चल रहे जातीय संघर्ष पर काबू पाने में पूरी तरह नाकाम रहा है. विपक्षी गठबंधन 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस' (इंडिया) के 21 सांसदों ने मणिपुर में शांति तथा सौहार्द लाने के लिए प्रभावित लोगों के तत्काल पुनर्वास की मांग करते हुए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और इसे राज्यपाल अनसुइया उइके को सौंपा. ज्ञापन में कहा गया है, "पिछले कुछ दिनों में लगातार गोलीबारी और मकानों में आगजनी की खबरों से इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि सरकारी तंत्र पिछले तकरीबन तीन महीने के लिए स्थिति पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह नाकाम रहा है."

प्रभावी लोगों का पुनर्वास जरूरी : विपक्षी दलों के सांसदों ने कहा कि पिछले तीन महीने से लगातार इंटरनेट पाबंदी निराधार अफवाहों को बल दे रही है जिससे समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है. उन्होंने ज्ञापन में कहा, "माननीय प्रधानमंत्री की चुप्पी मणिपुर में हिंसा के प्रति उनकी घोर उदासीनता दिखाती है." विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि समुदायों में गुस्सा तथा अलगाव की भावना है तथा इसे बिना किसी विलंब के निपटाया जाना चाहिए. सांसदों ने राज्यपाल से कहा, "हम आपसे अनुरोध करते हैं कि सभी प्रभावी कदम उठाते हुए शांति एवं सौहार्द बहाल किया जाए तथा इन कदमों में न्याय की आधारशिला होनी चाहिए. शांति एवं सौहार्द स्थापित करने के लिए प्रभावी लोगों का पुनर्वास सबसे जरूरी है." उन्होंने कहा, "आपसे केंद्र सरकार को पिछले 89 दिनों से मणिपुर में कानून एवं व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाने से अवगत कराने का भी अनुरोध किया जाता है ताकि वे शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए मणिपुर के अनिश्चित हालात में हस्तक्षेप कर सकें."

ज्ञापन में यह भी कहा गया कि कि दो समुदायों के लोगों की जान और संपत्तियों की सुरक्षा करने में 'केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों की नाकामी', 140 से अधिक मौतों (आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार 160 से अधिक मौत), 500 से अधिक घायलों, 5,000 से अधिक मकान जलाए जाने और 60,000 से अधिक लोगों के आंतरिक विस्थापन के आंकड़ों से दिखती है. विपक्ष का प्रतिनिधिमंडल जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए शनिवार को मणिपुर पहुंचा था तथा हिंसा के पीड़ितों से मुलाकात की थी. दो-दिवसीय दौरे के पहले दिन प्रतिनिधिमंडल इंफाल के अलावा बिष्णुपुर जिले के मोइरांग और चुराचांदपुर में कई राहत शिविरों में गया तथा जातीय संघर्ष से प्रभावित लोगों से मुलाकात की.

राहत शिविर में स्थिति दयनीय : मणिपुर के दौरे के बारे में सांसदों ने ज्ञापन में कहा कि उन्होंने चुराचांदपुर, मोइरांग और इंफाल में राहत शिविरों का दौरा किया तथा वहां शरण ले रहे पीड़ितों से बातचीत की. उन्होंने कहा, "हम संघर्ष शुरू होने के बाद से ही दोनों पक्षों की अप्रत्याशित हिंसा से पीड़ित लोगों की परेशानी, अनिश्चितता, पीड़ा तथा दुख की कहानियां सुनकर निश्चित तौर पर बहुत स्तब्ध तथा दुखी हैं." ज्ञापन में कहा गया कि राहत शिविर में स्थिति बहुत दयनीय है और बच्चों की प्राथमिकता के आधार पर विशेष देखभाल करने की आवश्यकता है. इसमें कहा गया, "विभिन्न वर्गों के छात्रों का भविष्य अधर में है जो कि राज्य तथा केंद्र सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए."

राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के बाद प्रतिनिधिमंडल के सदस्य रविवार दोपहर दिल्ली के लिए रवाना हो गए. विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और गौरव गोगोई के अलावा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सुष्मिता देव, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की महुआ माजी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की कनिमोई, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के पीपी मोहम्मद फैजल, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के जयंत चौधरी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन और वीसीके से टी. तिरुमावलावन एवं डी रविकुमार भी शामिल रहे. जनता दल (यूनाइटेड) के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह एवं अनिल प्रसाद हेगड़े, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के संदोश कुमार, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के ए ए रहीम, सपा के जावेद अली खान, आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर, आम आदमी पार्टी के सुशील गुप्ता और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के अरविंद सांवत भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

पीएम को मणिपुर दौरा करना चाहिए- गोगोई : मणिपुर से लौटने के बाद कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा, "लोगों ने वहां (मणिपुर) हमारा स्वागत किया. एनडीए गठबंधन और प्रधानमंत्री मोदी को भी मणिपुर का दौरा करना चाहिए." उन्होंने कहा, "वहां लोगों के साथ जो हुआ उससे हम निराश हैं. राज्यपाल से मुलाकात में हमने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक अखिल भारतीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल यहां आये, हम पहले दिन से यही सुझाव दे रहे हैं लेकिन पीएम गायब हैं. उनके मंत्री दिल्ली में बैठकर बयान दे रहे हैं. उन्हें वहां की जमीनी हकीकत देखने के लिए मणिपुर का दौरा करना चाहिए." वहीं, राजद सांसद मनोज झा ने कहा, "हम चाहते हैं कि मणिपुर में शांति बहाल हो. हमारी एकमात्र मांग है कि दोनों समुदाय सद्भाव से रहें. मणिपुर में स्थिति खौफनाक, दर्दनाक और पीड़ादायक है. संसद में पहले ही चर्चा हो चुकी है कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को मणिपुर का दौरा करना चाहिए." टीएमसी सांसद सुष्मिता देव ने कहा, हमने मणिपुर की राज्यपाल से कहा कि हम एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल चाहते थे लेकिन सरकार सहमत नहीं थी. इसीलिए I.N.D.I.A गठबंधन ने दौरा किया. जब PM मोदी संसद में आएंगे तब हम अपनी बात रखेंगे."

दोनों सरकारों ने आंखें मुंद ली- अधीर रंजन : कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही मणिपुर के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही हैं. दिल्ली और देश के बाहर भी बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं. लोगों के घरों में खाना और दवाइयां नहीं हैं, बच्चों के पास पढ़ने के लिए कोई सुविधा नहीं है, कॉलेज के छात्र कॉलेज नहीं जा सकते. दो समुदायों के बीच लड़ाई को खत्म करने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अपनी आंखें बंद ली हैं." जदयू सांसद राजीव रंजन (ललन) सिंह ने कहा, "दोनों समुदायों में असुरक्षा की भावना और विश्वास की कमी है, उन्होंने राज्य सरकार पर विश्वास की कमी व्यक्त की. उनका कहना है 3 मई के बाद से घटनाएं हुईं लेकिन राज्य सरकार ने इसे नियंत्रित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए." उन्होंने कहा, "राज्यपाल ने कहा कि वह सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन हम जानते हैं कि राज्यपाल के पास सीमित शक्तियां हैं और राज्य को चलाने की शक्ति राज्य सरकार के हाथों में है."

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मणिपुर शांति वार्ता, एकमात्र रास्ता- डीएमके सांसद : डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, "हमने राज्यपाल को अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं, वह भी चिंतित हैं और चाहती हैं कि हम केंद्र सरकार को बताएं कि हमने क्या देखा है...हम बहस के लिए कहेंगे और हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हमने क्या देखा है और लोग भी चाहते हैं सभी दलों के नेता वहां (मणिपुर) जाएं और देखें कि क्या हो रहा है...वहां शांति वार्ता होनी चाहिए, यही एकमात्र रास्ता है." एनसीपी (शरद पवार गुट) सांसद पी.पी. मोहम्मद फैजल ने कहा, "हमने जो कुछ भी देखा और सुना है वह हमारी उम्मीदों से परे है. उन लोगों को हुई पीड़ा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. अगर सरकार ने शुरू में कार्रवाई की होती तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था, सरकार मूकदर्शक बनी रही और ठीक से कार्रवाई नहीं की. हमने राज्यपाल से मुलाकात कर उनसे अनुरोध किया है कि वे एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लाने और इन समुदायों के नेताओं को बुलाकर एक साथ बैठाने के लिए सरकार से बात करें." झामुमो सांसद महुआ माजी ने कहा, "वहां दोनों समुदाय के लोग परेशान हैं। हिंसा अभी भी जारी है. राज्यपाल ने हमसे पहल करने और समाधान निकालने को कहा. वह खुद को असहाय महसूस कर रही हैं. कल संसद में हमारी बैठक होगी जिसके बाद हम आगे की कार्रवाई तय करेंगे."

बाद में, ज्ञापन की एक प्रति ट्विटर पर साझा करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की और दावा किया कि मणिपुर के लोगों के गुस्से, चिंता, पीड़ा तथा दुख से उन्हें ‘‘कोई फर्क नहीं पड़ता है." रमेश ने कहा, "वह अपनी आवाज सुनने और करोड़ों भारतीयों को अपनी ‘मन की बात’ सुनाने के लिए विवश करने में व्यस्त हैं जबकि टीम इंडिया के 21 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल मणिपुर की राज्यपाल के साथ ‘मणिपुर की बात’ कर रहा है."

बता दें कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. पूर्वोत्तर राज्य की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासियों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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