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सरकार ने पुलिस बलों में दिव्यांगों का 4% कोटा हटाया, एक्टिविस्ट बोले- यह अन्याय है

केंद्र ने भारतीय पुलिस सेवा (IPS), रेलवे सुरक्षा बल (RPF), दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेल और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के सभी लड़ाकू पदों के लिए पुलिस बल के तहत दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) को दिए जाने वाले अनिवार्य 4% आरक्षण को हटा दिया है.

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Published : Aug 22, 2021, 12:48 AM IST

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नई दिल्ली :सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJ&E) द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि सुरक्षा बलों में लड़ाकू और गैर-लड़ाकू भूमिकाओं के बीच अंतर किया गया है. अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार ने सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल और असम राइफल्स में सभी लड़ाकू चौकियों को आरपीडी एक्ट से छूट दी है.

दिव्यांग लोगों के लिए रोजगार संवर्धन के राष्ट्रीय केंद्र (एनसीपीईडीपी) के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि दिव्यांग लोगों के लिए आईपीएस और पुलिस बलों की नौकरी से छूट न देना एक गंभीर अन्याय है और यह आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के प्रावधान के खिलाफ है. कहा कि मुझे लगता है यह दिव्यांग लोगों के लिए एक गलत मिसाल कायम करेगा.

उन्होंने कहा कि लाखों दिव्यांग लोग बेरोजगारी का सामना करते हैं जो उनके लिए चिंता का विषय है. जब सरकार यह आदेश जारी करती है तो सभी दिव्यांग लोगों के लिए झटका है. उन्होंने कहा कि पुलिस या अर्धसैनिक बलों में अन्य भूमिकाएं भी हैं जो साइबर सुरक्षा, उस मामले के लिए फोरेंसिक जैसी डेस्क जॉब भी हैं. ऐसी नौकरियों में दिव्यांग लोगों को समायोजित किया जा सकता है. अरमान अली ने कहा कि दिव्यांग लोगों को महामारी के दौरान गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है. महामारी के बीच नौकरी का नुकसान गंभीर चिंता है. जो दिव्यांगों को लंबे समय तक झेलना पड़ेगा.

एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक ने दावा किया कि सरकार का यह निर्णय उन लोगों को भी प्रभावित कर सकता है जो पुलिस बल में हैं और सेवा के दौरान दिव्यांग हो जाते हैं. ऐसे मामलों में उनकी रक्षा का अधिकार छिन जाएगा. नौकरी के दौरान दिव्यांग होने पर वे अपने अधिकारों, सेवा की रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे.

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दिव्यांगों के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मंच के महासचिव वी. मुरलीधरन ने कहा कि हम पहली अधिसूचना को वापस लेने की मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि यह खेदजनक है कि एक विभाग जो कि दिव्यांगों के के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए बना है, वह ठीक इसके विपरीत कार्य कर रहा है.

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