नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार को केंद्र के यह कहने के बाद अगस्त तक के लिए टाल दी कि औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान की समीक्षा पर सरकार परामर्श के अग्रिम चरण में है. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की इस दलील पर गौर किया कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है. न्यायालय मामले पर अब अगस्त के दूसरे सप्ताह में सुनवाई करेगा.
याचिकाओं में दंडात्मक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. वेंकटरमणी ने कहा कि परामर्श की प्रक्रिया अग्रिम चरण में है और इसे संसद में भेजे जाने से पहले उन्हें दिखाया जाएगा. उन्होंने पीठ से आग्रह किया,'कृपया मामले को संसद के मानसून सत्र के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें.' शुरुआत में, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पीठ से मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ गठित करने का आग्रह किया.
पीठ ने कहा कि अगर मामला सात न्यायाधीशों के पास भी जाना है तो पहले इसे पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने रखना होगा. पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष अदालत ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि उचित सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता. इसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था.