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राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कर्नाटक में एससी एसटी आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को रविवार को अपनी मंजूरी दे दी. अध्यादेश के पारित होने के साथ, जो न्यायमूर्ति नागमोहन दास समिति की रिपोर्ट के अनुसार था.

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कर्नाटक में एससी एसटी आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कर्नाटक में एससी एसटी आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी

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Published : Oct 24, 2022, 12:51 PM IST

बेंगलुरु:कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को रविवार को अपनी मंजूरी दे दी. अध्यादेश के पारित होने के साथ, जो न्यायमूर्ति नागमोहन दास समिति की रिपोर्ट के अनुसार था, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौजूदा तीन प्रतिशत से बढ़कर सात प्रतिशत हो जाएगी.

राज्य कैबिनेट ने कुछ दिन पहले अध्यादेश को मंजूरी दी थी. रविवार को आखिरकार इसे राज्यपाल की मंजूरी मिल गई. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि अध्यादेश को कर्नाटक विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा ताकि इसे मंजूरी मिल सके. बोम्मई ने कहा कि हमारी सरकार आरक्षण बढ़ाने की प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ी. यह हमारी सरकार की ओर से एससी/एसटी को तोहफा है.

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अध्यादेश का उद्देश्य कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में सीटों के आरक्षण और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का प्रावधान करना है. गजट अधिसूचना में कहा गया है कि कुछ और समुदायों को शामिल करने के बाद जातियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. इसमें कहा गया है कि राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की कुल आबादी में तेजी से वृद्धि हुई है.

अधिसूचना में आगे कहा गया है कि 1976 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधिनियम 108) के अनुसार, जातियों से जुड़ी भौगोलिक सीमाओं को हटा दिया गया जिससे राज्य में एसटी और अनुसूचित जाति की जनसंख्या में असाधारण वृद्धि हुई. इस कदम को कर्नाटक में भाजपा सरकार के विधानसभा चुनाव से पहले एससी/एसटी समुदायों को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जो लगभग छह महीने दूर हैं.

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