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खतरे में हैं हरिद्वार की रक्षक मां चंडी और मनसा देवी की पहाड़ियां, बड़ी आबादी होगी प्रभावित, भू वैज्ञानिक चिंतित

Landslide on hill of Maa Chandi Devi temple उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में स्थित माता के दो बड़े धामों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जिससे न सिर्फ स्थानीय प्रशासन चिंतित है, बल्कि हरिद्वार की बड़ी आबादी भी उससे प्रभावित हो सकती है. हम बात कर रहे हैं, हरिद्वार में मनसा देवी और चंडी देवी मंदिरों की पहाड़ी पर लगातार हो रहे भूस्खलन की.

मां चंडी
मां चंडी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 26, 2023, 5:03 PM IST

Updated : Aug 26, 2023, 6:12 PM IST

देहरादून: धर्मनगरी हरिद्वार पहुंचने वाले सभी श्रद्धालु हर की पैड़ी पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के बाद शहर की पहाड़ी पर स्थित दो शक्तिपीठ मां मनसा देवी और मां चंडी देवी जरूर जाते हैं. एक तरह जहां मां मनसा देवी बिल्व पर्वत पर विरजमान हैं, तो वहीं मां चंडी देवी नील पर्वत पर भक्तों को दर्शन देती हैं, लेकिन आज इन दोनों ही मंदिरों पर खतरा मंडरा रहा है.

दरअसल, कुदरत ने इन दोनों पहाड़ियों को बहुत कच्चा कर दिया है. पहले तो सिर्फ मां मनसा देवी की पहाड़ी से ही भूस्खलन की खबरें आती थी. अब नील पर्वत पर विरजमान माता चंडी देवी के पहाड़ भी दरकने लगे हैं. हाल ही में माता चंडी देवी मंदिर के पास हुए भूस्खलन के प्रशासन और आम श्रद्धालुओं की चिंता बढ़ा दी है. भूस्खलन के बाद प्रशासन ने माता चंडी देवी मंदिर की यात्रा को भी तीन घंटे के लिए रोक दिया था.

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मामले की गंभीरता को देखते हुए हरिद्वार जिला प्रशासन ने फिलहाल चंडी देवी की 20 से अधिक दुकानों को अगले निर्देशों तक बंद रखने का आदेश दिया हैं. एक अनुमान के मुताबिक रोजाना करीब 1000 से ज्यादा श्रद्धालु मां चंडी देवी के दर्शन करने आते हैं. नवरात्रों और स्पेशल आयोजन पर ये संख्या और अधिक बढ़ जाती है.

मां चंडी के देवी की पहाड़ी से हाल ही में भूस्खलन हुआ था.

पहले दोनों ही मंदिरों मां चंडी देवी और मां मनसा देवी जाने के लिए पैदल ही रास्ता होता था, लेकिन समय के साथ वहां सुविधाएं बढ़ती गई और रोपवे की व्यवस्था की गई. अब रोपवे के जरिए भी श्रद्धालु आसानी से दोनों मंदिर जा सकते हैं. जिला प्रशासन के लिए चिंता की बात ये है कि चंडी देवी मंदिर की पहाड़ी पर पहली बार भूस्खलन हुआ है.

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इससे पहले नीलेश्वर मंदिर से चंडी देवी मंदिर तक जाने के लिए एक और वैकल्पिक मार्ग बनाने की कवायद शुरू हुई थी, लेकिन चंडी देवी मंदिर की पहाड़ी पर हुए भूस्खलन की वजह से यह मार्ग चंद दिन भी नहीं चल पाया. इसके बाद से मंदिर तक पहुंचाने के लिए दक्षिण काली मंदिर के द्वार से ही श्रद्धालुओं को चंडी देवी के दर्शन करवाने के लिए भेजा जाता रहा है.

हरिद्वार में मां चंडी के देवी की पहाड़ी के नीचे बड़ी आबादी रहती है.

प्रशासन की टेंशन ये है कि यदि चंडी देवी मंदिर की पहाड़ी पर फिर से भूस्खलन हुआ तो इससे न सिर्फ मंदिर को बल्कि पहाड़ी के नीचे बसे रिहायशी इलाके को भी बड़ा नुकसान पहुंचने का अंदेशा है. इतना ही नहीं चंडी देवी मंदिर की पहाड़ी के नीचे से हरिद्वार से ऋषिकेश और चारधाम यात्रा मार्ग को जोड़ने वाला वैकल्पिक मार्ग भी है. उसे भी ख़तरा हो सकता है.

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क्या कहते हैं अधिकारी: हरिद्वार के जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल का कहना है कि वो किसी भी हालत में आस्था केंद्रों को नुकसान नहीं पहुंचाने देंगे. दोनों मंदिरों को बचाने के लिए जल्द ही कोई रास्ता निकाला जाएगा. अगर भविष्य में भी इस तरह के हालत बनते हैं, तो भक्तों की संख्या को भी सीमित किया जाएगा. जिलाधिकारी की मानें तो विशेषज्ञों की टीम जल्द इस मामले पर अपनी रिपोर्ट प्रशासन को देगी.

भू वैज्ञानिक ने मां मनसा देवी और मां देवी की पहाड़ियों पर निर्माण न करने की सलाह दी है.

बीते कुछ सालों में बदला मंदिर का स्वरूप: मनसा देवी की पहाड़ी पर भूस्खलन की वजह वहां पर पानी की निकासी का सिस्टम पूरी तरह से चोक होना है. मनसा देवी में नालियों की मरमत न होना और लोगों के बढ़ते दबाव के कारण मनसा देवी की पहाड़ी पर भूस्खलन होने लगा.
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चंडी देवी की पहाड़ी पर भूस्खलन का कारण:ऐसा ही हाल चंडी देवी का भी है. ये पर्वत मनसा देवी से अधिक ऊंचाई पर है. इसके साथ ही रोजाना यहां आने वाले भक्तों के दबाव के साथ-साथ ऊपर लगातार हो रहे साल दर साल निर्माण की वजह भी पहाड़ों पर दबाव बन रहा है, जिसका असर अब दिखने लगा है.

हरिद्वार के ही रहने वाले तीर्थ पुरोहित और स्थानीय निवासी ललित शर्मा कहते हैं कि बीते कुछ सालों में दोनों मंदिर चंडी देवी और मनसा देवी में काफी निर्माण कार्य हुआ है. इसके अलावा पैदल रास्ते पर भी अतिक्रमण हो गया है. किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, जिसका खामियाजा आज हमें भुगतना पड़ रहा है.

भू वैज्ञानिकों ने बताया बड़ा खतरा: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व भू वैज्ञानिक बीडी जोशी की मानें तो चंडी देवी मंदिर के नीचे नील धारा बह रही है. पहले ये धारा बिल्कुल पर्वत की सतह से लग कर बहती थी, लेकिन बाद में निर्माण के कारण पानी का दायरा तो कम हो गया है, लेकिन उसकी नमी लगातार बढ़ती जा रही है, जिसका असर पहाड़ पर पड़ रहा है.

इसके अलावा उन्होंने बताया कि ये पहाड़ भुरभुरे हैं, इसीलिए थोड़ी सी बारिश भी इन पहाड़ों को काफी नुकसान पहुंचाती है. इन पहाड़ों को बचाने के लिए इनकी तलहटी में ट्रीटमेंट बेहद जरूरत है. हम सिर्फ पहाड़ों के ऊपर हिस्से को देखकर ही परेशान हो रहे हैं. लेकिन इसका एक प्रॉपर अध्ययन होना चाहिए, तभी इसका कोई सामाधान निकलकर सामने आएगा.

बंद करना होगा निर्माण कार्य: भू वैज्ञानिक बीडी जोशी का कहना है कि मंदिर में चल रहे निर्माण कार्य को बंद करना होगा. दुकानों को पक्का ना बनाकर उन्हें लकड़ी आदि बनाया जाए, वो भी अगर बहुत जरूरी हो तभी. आने वाले 20 से 25 सालों में इन पहाड़ों का क्या होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि हर बारिश के बाद ये पहाड़ धीरे-धीरे नीचे आ रहे हैं. एक बार अगर ये पहाड़ खत्म हो गए तो दुबारा नहीं बनेंगे.

मंदिर से जुड़ी मान्यता: पौराणिक कथाओं के अनुसार हरिद्वार के नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी को चंडिका का रूप कहा जाता है. कहा जाता है कि शुंभ और निशुंभ राक्षसों ने स्वर्ग के देवता राजा इंद्र के साम्राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवी देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर दिया था. तब माता पार्वती ने चंडी का रूप धारण किया था.

मां की सुंदरता को देखकर शुंभ और निशुंभ ने उनसे शादी की इच्छा जताई थी. जब माता पार्वती ने इनकार किया तो शुंभ ने अपने रक्षा प्रमुख चांद और मुंडा को भेजा, लेकिन लेकिन देवी चामुंडा के हाथों दोनों मारे गए. इसके बाद शुभ और निशुंभ ने भी ऐसा ही प्रयास किया, लेकिन माता चंडिका ने उनका भी वध कर दिया.

कहा जाता है इसके बाद माता चंडिका ने इसी पर्वत पर आकर विश्राम किया था और यहां पर उनके क्रोध की ज्वाला विश्राम करने के बाद शांत हो गई थी. यहां पर माता त्रिशूल रूप में विराजमान हैं और कहा जाता है कि चंडी देवी और मां मनसा देवी ही हरिद्वार की रक्षा करती हैं.

Last Updated : Aug 26, 2023, 6:12 PM IST

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