नई दिल्ली : ईंधन पर उत्पाद शुल्क कटौती के बाद सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा है. ऐसे में आधिकारिक सूत्रों का मानना है कि राजकोषीय घाटे पर अंकुश के लिए सब्सिडी का प्रबंधन अधिक कड़ाई और लक्षित तरीके से करने की जरूरत है. सरकार ने 23 मई को पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में आठ रुपये प्रति लीटर और डीजल पर छह रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. इससे सरकार को सालाना एक लाख करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान का अनुमान है.
इससे पहले अप्रैल में सरकार ने डीएपी सहित फॉस्फेट और पोटाश (पीएंडके) उर्वरकों के लिए चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 60,939.23 करोड़ रुपये की सब्सिडी की मंजूरी दी थी. इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) को छह महीने के लिए सितंबर, 2022 तक बढ़ाया गया है.
सूत्रों ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कटौती के बीच खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के अतिरिक्त खर्च को पूरा करना चुनौती है. ऐसे में सब्सिडी का अधिक सख्ती और लक्षित तरीके से प्रबंधन करने की जरूरत है. पीएमजीकेएवाई के तहत सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम मुफ्त राशन देती है. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत इन लोगों को मिलने वाले सामान्य कोटा के अतिरिक्त है.
अप्रैल, 2020 से सितंबर, 2022 तक सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत 1,003 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन किया है. करीब ढाई साल में इसका लाभ 80 करोड़ आबादी को मिला है. इसके अलावा महामारी के शुरुआती महीनों में सरकार ने तीन माह तक महिला जनधन खाताधारकों के खाते में प्रतिमाह 500 रुपये डाले थे. इस तरह करीब 20 करोड़ महिला खाताधारकों को तीन महीने में 1,500 रुपये मिले थे.