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सब्सिडी को करना होगा मैनेज, नहीं तो सरकार के लिए हो सकती है मुश्किल

सब्सिडी को किस तरह से प्रबंधित किया जाए, सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती है. एक तरह तो उसे खर्च पर नियंत्रण लगाने हैं, वहीं दूसरी ओर जनता को आवश्यक मदद भी पहुंचानी है. राजकोषीय घाटे से आशय सरकार के कुल राजस्व और खर्च के अंतर से होता है. इससे यह भी पता चलता है कि सरकार को इस अंतर को पाटने के लिए कितना कर्ज लेने की जरूरत है.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

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Published : Jul 17, 2022, 1:55 PM IST

नई दिल्ली : ईंधन पर उत्पाद शुल्क कटौती के बाद सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा है. ऐसे में आधिकारिक सूत्रों का मानना है कि राजकोषीय घाटे पर अंकुश के लिए सब्सिडी का प्रबंधन अधिक कड़ाई और लक्षित तरीके से करने की जरूरत है. सरकार ने 23 मई को पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में आठ रुपये प्रति लीटर और डीजल पर छह रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. इससे सरकार को सालाना एक लाख करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान का अनुमान है.

इससे पहले अप्रैल में सरकार ने डीएपी सहित फॉस्फेट और पोटाश (पीएंडके) उर्वरकों के लिए चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 60,939.23 करोड़ रुपये की सब्सिडी की मंजूरी दी थी. इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) को छह महीने के लिए सितंबर, 2022 तक बढ़ाया गया है.

सूत्रों ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कटौती के बीच खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के अतिरिक्त खर्च को पूरा करना चुनौती है. ऐसे में सब्सिडी का अधिक सख्ती और लक्षित तरीके से प्रबंधन करने की जरूरत है. पीएमजीकेएवाई के तहत सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम मुफ्त राशन देती है. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत इन लोगों को मिलने वाले सामान्य कोटा के अतिरिक्त है.

अप्रैल, 2020 से सितंबर, 2022 तक सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत 1,003 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन किया है. करीब ढाई साल में इसका लाभ 80 करोड़ आबादी को मिला है. इसके अलावा महामारी के शुरुआती महीनों में सरकार ने तीन माह तक महिला जनधन खाताधारकों के खाते में प्रतिमाह 500 रुपये डाले थे. इस तरह करीब 20 करोड़ महिला खाताधारकों को तीन महीने में 1,500 रुपये मिले थे.

सूत्रों के अनुसार भारत की वृहद आर्थिक बुनियाद वैश्विक चुनौतियों से निपटने की दृष्टि से काफी मजबूत है. केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.4 प्रतिशत के स्तर पर रखने को प्रतिबद्ध है.

राजकोषीय घाटे से आशय सरकार के कुल राजस्व और खर्च के अंतर से होता है. इससे यह भी पता चलता है कि सरकार को इस अंतर को पाटने के लिए कितना कर्ज लेने की जरूरत है. पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.7 प्रतिशत रहा था. सूत्रों ने बताया कि सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आए उछाल से पैदा हुई स्थिति से निपटने को कदम उठा रही है.

उल्लेखनीय है कि भारत अपनी 85 प्रतिशत कच्चे तेल की जरूरत को आयात से पूरा करता है. रुपये के कमजोर होने से आयात महंगा बैठता है. सूत्रों ने कहा कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से चालू खाते का घाटा या कैड ऊंचे स्तर पर रहने का अनुमान है. सूत्रों ने हालांकि स्वीकार किया कि वैश्विक स्तर पर कई अड़चनें हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए देश की वृहद आर्थिक बुनियाद काफी मजबूत है.

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