चंडीगढ़: हर साल 5 सितंबर की तारीख का भारत के इतिहास में खास महत्व होता है. दरअसल, ये दिन शिक्षकों को समर्पित (5 September teachers day) होता है. देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का इस दिन जन्मदिन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Birthday) होता है. उन्हीं के सम्मान में इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. जब बात शिक्षक की हो रही है तो हम आपको ऐसे शिक्षक से मिलवाते हैं, जिन्होंने दूसरों के लिए मिसाल पेश की है.
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को नहीं दिया जाता महत्व
चंडीगढ़ सेक्टर-22 स्कूल की टीचर अनुपम सिंह (Anupam Singh Improving Future Of Students) ने बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करने और उनके व्यक्तित्व को निखारने का जिम्मा उठाया, ताकि बच्चे किसी भी क्षेत्र में जाएं तो वो दूसरे बच्चों से खुद को कम ना समझे, बल्कि हर क्षेत्र में उनकी बराबरी करें या उनसे भी आगे निकलें. ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में अध्यापिका अनुपम सिंह ने बताया कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर बच्चे गरीब तबके से आते हैं. उनके माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं होते कि वो बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा सकें.
सरकारी स्कूल के बच्चों का ऐसे संवर रहा जीवन एक मानसिकता ये भी है कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूलों के बच्चों के मुकाबले ज्यादा समझदार माना जाता है. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को उतना महत्व नहीं दिया जाता. कई बार अच्छे नंबर लाने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों के बच्चों को कम ही आंका जाता है. जिस वजह से बच्चे भी हीन भावना का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में है जरूरी है कि उनके मन से हीन भावना को निकाला जाए और आत्मविश्वास को भरा जाए, ताकि बच्चे हर क्षेत्र में जाकर अपना लोहा मनवा सके.
आत्मविश्वास से इतने भरे हों बच्चे
अध्यापिका अनुपम सिंह ने बताया कि वह बच्चों के लिए पढ़ाई के साथ अलग से कई ऐसे कार्यक्रम आयोजित करवाती हैं, जिनमें बच्चों के व्यक्तित्व में निखार लाया जा सके. जैसे कई तरह के सेमिनार, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, बच्चों की भाषा को सुधारने और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए भी कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. ताकि जब बच्चे स्कूल से बाहर यूनिवर्सिटी या फिर कॉलेज में जाएं तो वो आत्मविश्वास से इतने भरे हों कि किसी काम में पीछे ना रहें और हर जगह बढ़ चढ़कर हिस्सा लें.
यहां तक कि जब वो अपनी प्रोफेशनल लाइफ भी शुरू करें, तब भी कोई ये ना कहे कि ये बच्चा सरकारी स्कूल से पढ़ कर आया है. अनुपम सिंह के मुताबिक बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का काम किया जाता है. जैसे बच्चों से पेड़-पौधे लगवाना. उन पेड़-पौधों की जिम्मेदारी बच्चों को ही दी जाती है, ताकि बच्चे पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य और प्रकृति के महत्व को समझ सके. इसके अलावा बच्चों से साफ-सफाई और सजावट का काम भी करवाया जाता है. ताकि वो दूसरों पर निर्भर ना रहें.
बच्चों के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया
ईटीवी भारत के साथ छात्रा सिमरन और इशमीत ने बातचीत में कहा कि उन्हें यहां पर कई बातें सिखाई जाती हैं. हमें पर्यावरण का महत्व समझाया जाता है और बताया जाता है कि आस-पास सफाई रखनी चाहिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए खूब पेड़ पौधे लगाने चाहिए. 12वीं क्लास के छात्र कृष्णा ने बताया कि सरकारी स्कूलों के बच्चों को हमेशा कम आंका जाता है. जबकि सरकारी स्कूल के बच्चे भी बहुत अच्छा परिणाम ला रहे हैं. इस सब का नतीजा शिक्षकों की कड़ी मेहनत है. अब यहां पर जिस तरह से बच्चों के आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम करवाए जा रहे हैं, उससे बच्चों के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया है. बच्चे इतने आत्मविश्वास से भर चुके हैं कि वो कहीं भी जाएंगे तो अपनी प्रतिभा बेहिचक दिखा सकते हैं.
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