नई दिल्ली : रबी विपणन वर्ष 2022-23 के लिये मोदी सरकार ने एमएसपी घोषित की तो यह स्पष्ट करने का प्रयास एक बार फिर किया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं और नये कृषि कानूनों में एमएसपी को खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है.
एक तरफ जहां एमएसपी पर खरीद की अनिवार्यता के लिये कानून की मांग के साथ किसान आंदोलन कर रहे हैं. वहीं नये घोषणा के अनुसार दलहन और तेलहन के एमएसपी में रिकॉर्ड 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है. हालांकि अनाज की बात करें तो गेहूं और जौ के एमएसपी में केवल 35-40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि ही की गई जो कई किसान संगठनों को नाकाफ़ी लग रही है, लेकिन कुछ किसान संगठन और नेता ऐसे भी हैं जो नये एमएसपी का स्वागत कर रहे हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि नई घोषणा में सरकार का संदेश स्पष्ट है. जिस तरह से किसानों को गुमराह किया जा रहा था कि सरकार एमएसपी को खत्म कर देगी और मंडियां बंद हो जाएंगी ऐसा कुछ नहीं होगा.
भारतीय कृषक समाज और कई अन्य किसान संगठनों की हमेशा से यह मांग रही है कि फसल की बुआई से पहले उसकी एमएसपी घोषित की जाए. इस बार सरकार ने आगामी रबी की बुआई के लिये जो एमएसपी घोषित किया उसमें स्पष्ट संकेत है कि सरकार किसानों को दलहन और तेलहन की ओर आकर्षित करना चाहती है. जिस प्रकार से देश में खाद्य तेलों और दाल का आयात बढ़ रहा है उसे कम करने के उद्देश्य से सरकार ने किसानों को दलहन और तेलहन के उत्पाद को बढ़ाने में सहयोग करने का प्रयास किया है.
सरसों की एमएसपी को 4650 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5050 रुपये किया गया है, जबकि मसूर दाल की एमएसपी को 5100 से बढ़ाकर 5500 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है. इसी प्रकार चने में भी 130 रुपये की वृद्धि की गई है. 5100 से बढ़ाकर 5230 किया गया है. इसी प्रकार सूरजमुखी में भी 113 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है.
कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि अनाज के मामले में देश पहले ही आत्मनिर्भर है और आज देश के भण्डार अनाज से भरे हुए हैं. जन वितरण प्रणाली के तहत देश की 80 करोड़ जनता को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है और इसके बावजूद अनाज के भंडार क्षमता से कहीं ज्यादा ऊपर हैं.