नई दिल्ली :केंद्र सरकार के द्वारा गन्ना पेराई सत्र 2022-23 के लिए घोषित गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) नाकाफी है, इसे और बढ़ाया जाना चाहिए. उक्त बातें राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह (VM Singh) ने मीडिया से बातचीत में कहीं. उन्होंने आंकड़ों को दिखाते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि मौजूदा सत्र के लिए गन्ने की घोषित एफआरपी 305 रुपये क्विंटल तय की गई है, उससे किसानों का फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा.बता दें कि पिछले सत्र गन्ना की एफ़आरपी 290 रुपये प्रति क्विंटल थी जिसे बढ़ा कर केंद्र सरकार ने 305 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है लेकिन किसान संगठन इससे संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि एक ओर गन्ने की खेती में लागत मूल्य लगातार बढ़ा है वहीं महंगाई दर भी बढ़ रही है. ऐसे में 15 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़त ऊंट के मुंह में जीरा समान ही है.
किसान नेता वीएम सिंह ने कहा है कि जहां एक तरफ पंद्रह रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोतरी का खूब प्रचार किया जा रहा है वहीं ये भी ध्यान रखना चाहिए कि देश में महंगाई दर इस समय 7 प्रतिशत है. वहीं गन्ने की खेती पर खर्च 25-30 प्रतिशत तक बढ़ा है. वास्तविकता में यह बढ़ोतरी मात्र 2.5 प्रतिशत है जो 7.75 रुपये प्रति क्विंटल होता है. आंकड़ों को विस्तार से समझाते हुए किसान नेता ने बताया कि जब एफआरपी ₹290 प्रति क्विंटल थी तब किसान को एफआरपी के हिसाब से 290 के बाद 0.1 प्रतिशत अधिक रिकवरी पर 2.90 रुपए अधिक मिलते थे यानी कि 10.25 प्रतिशत रिकवरी पर ₹297 25 पैसे मिलते थे. अब इस बार अगर 305 रुपये के दाम के बाद 10 प्रतिशत रिकवरी होती तो आज किसान को 312.62 रुपए मिलते. यही नहीं जब रिकवरी 9.5 प्रतिशत से ऊपर होगी और 10.25 प्रतिशत में से कम होगी तो इसी आधार पर कटौती होगी. अगर 9.6 प्रतिशत की रिकवरी भी हुई तो किसान को ₹285 मिलेगा जो पिछले वर्ष के ₹290 से भी कम है, इसलिए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन केंद्र सरकार से मांग करती है कि सिर्फ पूरे विषय पर फिर से विचार करे और किसान के उत्पादन की बढ़ोतरी के हिसाब से एफआरपी तय करें.