नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुर्घटनावश मिसाइल चलने की घटना पर इस वर्ष 15 मार्च को लोकसभा में आश्वासन दिया था कि भारत अपनी शस्त्र प्रणाली की सुरक्षा और संरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है और इस घटना की जांच के बाद कमी पाए जाने पर उसे दूर किया जाएगा. बाद में इस आश्वासन को 'लंबित' श्रेणी में डाल दिया गया. सरकारी आश्वासनों को लंबित श्रेणी में डालने का यह अकेला मामला नहीं है. संसदीय कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 'सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों में से इस वर्ष अगस्त तक लोकसभा में 1005 और राज्यसभा में 636 आश्वासन लंबित हैं.'
सदन में कोई आश्वासन दिए जाने के बाद उसे तीन महीने के अंदर पूरा करना अपेक्षित होता है. भारत सरकार के मंत्रालय या विभाग आश्वासनों को निर्धारित तीन महीने की अवधि के अंदर पूरा करने में असमर्थ रहने की स्थिति में समय विस्तार की मांग कर सकते हैं. निचले सदन में 10 वर्ष से अधिक पुराने 38 सरकारी आश्वासन लंबित हैं जबकि पांच वर्ष से अधिक पुराने 146 तथा तीन वर्ष से ज्यादा समय से 185 आश्वासन लंबित हैं. इस प्रकार, लोकसभा में 18 प्रतिशत से अधिक सरकारी आश्वासन तीन वर्ष से अधिक समय से और 14 प्रतिशत आश्वासन पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं.
लोकसभा में सबसे अधिक 82 आश्वासन विधि एवं न्याय मंत्रालय के लंबित हैं जबकि रेल मंत्रालय के 61, शिक्षा मंत्रालय के 56, रक्षा मंत्रालय के 50, सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय के 48, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के 47, वित्त मंत्रालय के 39, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के 35,पर्यटन मंत्रालय के 32, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के 31 आश्वासन लंबित हैं.
आश्वासन को छोड़ने की संसदीय व्यवस्था?
संसदीय व्यवस्था में निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र है. इसके तहत सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति मंत्रियों द्वारा सभा में समय-समय पर दिए गए आश्वासनों, वादों आदि की जांच करती है और प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है कि ऐसे आश्वासनों, वादों आदि को किस सीमा तक कार्यान्वित किया जा सकता है. जहां मंत्रालय या विभाग किसी आश्वासन को कार्यान्वित करने में असमर्थ हों, वहां उन्हें आश्वासन को छोड़ने के लिए समिति से अनुरोध करना होता है. समिति ऐसे अनुरोध पर विचार करती है और यदि वह इस बात से संतुष्ट होती है कि बताया गया आधार तर्कसंगत है तो आश्वासन को छोड़ने की स्वीकृति देती है.
आंकड़ों के अनुसार, लोकसभा में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के 10 आश्वासन दस वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं. इसमें एक महत्वपूर्ण आश्वासन सांसद सुप्रिया सुले और मनोहर तिर्की द्वारा 17 दिसंबर 2009 को समान अवसर आयोग के गठन से संबंधित विधेयक को लेकर पूछे गए प्रश्न के उत्तर से जुड़ा है. इस प्रश्न के जवाब में तत्कालीन अल्पसंख्यक कार्य मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि समान अवसर आयोग गठित करने का विषय मंत्रालयों/विभागों के साथ अंतर मंत्रालयी विचार विमर्श की प्रक्रिया से गुजरा है. विधि एवं न्याय मंत्रालय के साथ प्रस्तावित विधेयक तैयार किया गया है और प्रस्ताव सरकार के समक्ष विचाराधीन है.
हिरासत में प्रताड़ना से संबंधित आश्वासन लंबित
लोकसभा में पिछले 10 सालों से अधिक समय से लंबित सरकारी आश्वासनों में एक अश्वासन 28 जुलाई 2009 को आनंद राव अडसूल द्वारा हिरासत में प्रताड़ना से संबंधित प्रश्न के उत्तर में दिया गया था. अडसूल ने प्रश्न किया था कि क्या विधि आयोग ने अपनी 113वीं रिपोर्ट में साक्ष्य अधिनियम में संशोधन की सिफारिश की है जिसमें हिरासत में अरोपी को प्रताड़ित करने पर सुनवाई अदालत द्वारा पुलिसकर्मी को दोषी मानने से जुड़ा विषय शामिल है. इस प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री एम रामचंद्रन ने कहा था, 'हां, मैडम.' यह आश्वासन अभी भी लंबित श्रेणी में है.