दीपावली की सुबह गोवर्धन पूजा का पर्व भारत के प्रमुख हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसको मनाने को लेकर एक खास तरह की कथा चर्चित है. इस कथा में भगवान कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा का संदेश दिया था और स्थानीय संसाधनों के संरक्षण का महत्व भी समझाया था. तो आइए जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत और गोवर्धन पूजा शुरू होने का वह प्रसंग जिसको लोग आज भी मानते हैं.
गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कथा (Govardhan Puja Story)
गोवर्धन पूजा को मनाने के पीछे हमारे धार्मिक शास्त्रों में एक खास कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार भगवान कृष्ण जी ने लोगों को गोवर्धन पूजा करने को सलाह कुछ खास कारणों से दी थी और अपने आसपास के लोगों को प्रकृति के संरक्षण व उसके महत्व को समझाने की कोशिश की थी. इस कथा के अनुसार, एक दिन जब कृष्ण जी की मां यशोदा जब भगवान इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रही थीं, तो उस समय कृष्ण जी ने अपनी मां से जिज्ञासा बस पूछ लिया कि वो इंद्र भगवान की पूजा क्यों करने जा रही हैं, आखिर इससे क्या फायदा होता है..? कृष्ण जी के इस सवाल के जवाब में उनकी मां ने उनको समझाते हुए बताया कि सारे गांव वाले भगवान इंद्र की पूजा इसलिए करते हैं, ताकि उनके गांव में बारिश हो और अच्छी बारिश के चलते उनके गांव में अच्छी फसल हो. आसपास के खेतों में हमारी गायों के लिए अच्छी घास की पैदावार हो और उन्हें हरा चारा मिल सके.
अपनी मां की पूरी बात सुनने के बाद भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो हमें इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस पर्वत पर ही हमारी गायों को खाने को हरी घास मिलती है. यह हमारे सामने प्रत्यक्ष रुप से विराजमान हैं और हमें हमेशा दिखायी देते हैं. कृष्ण जी की इस बात का असर उनकी मां के साथ साथ ब्रजवासियों पर भी पड़ा और ब्रजवासियों ने इंद्र देव की पूजा करने की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी.
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