गोरखपुर:शस्त्र यानी की असलहा. इसकी श्रेणी में रिवाल्वर, पिस्टल, बंदूक, राइफल सब आते हैं. यह सब एक समय में लोगों की शानो-शौकत का हिस्सा थे. लेकिन, बदलते दौर में सार्वजनिक स्थल और खुशियों वाले स्थान पर भी इसके प्रयोग पर पाबंदी, इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़ा कर रहा है. आत्म रक्षार्थ को लिए गए यह असलहे लोगों के लिए अब बेकार से लगते हैं. यही वजह है कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब यह असलहे थाने और शस्त्र की दुकानों पर लोगों के द्वारा जमा किए गए तो, इनको बाहर निकालने के लिए बहुतों में रुचि नहीं दिखाई दे रही है.
बात करें गोरखपुर की तो करीब 10 हजार ऐसे शस्त्र हैं, जो थानों में बरसों से कैद हैं. इसी प्रकार दुकानदारों के यहां भी हजारों की संख्या में असलहे पड़े हुए हैं. लोग इसका किराया चुकता करते हैं. कुछ किराया भी चुकाना भूल गए हैं. दुकानदारों के फोन का भी इन पर असर नहीं पड़ता. अब यह दुकानदारों के लिए बोझ साबित हो रहे हैं. नए दौर में लाइसेंस भी नहीं मिल रहा. ऐसे में दुकानदारों की पीड़ा पुराने के साथ नए असलहों को भी लेकर है, जिनकी बिक्री नहीं होने से उनका व्यापार चौपट हो रहा है. आंकड़े कुछ ऐसी ही गवाही दे रहे हैं.
गोरखपुर में शस्त्र की 20 दुकानें
गोरखपुर में शस्त्र की करीब 20 दुकानें हैं. यहां पर बंदूक या कोई भी शस्त्र जमा करने का प्रतिमाह शुल्क 200 रुपये निर्धारित है. लेकिन, जिन्होंने अपने शस्त्र जमा किए हैं, वह फिर भी यहां से निकालते नहीं और किराया भी उनका बढ़ता जाता है. शस्त्र विक्रेता ईस्टर्न एंपोरियम के प्रोपराइटर मोहम्मद तारिक का कहना है कि तमाम जमाकर्ता शस्त्र ले नहीं जा रहे. कुछ ऐसे हैं, जो कोई न कोई प्रभाव लेकर आते हैं तो बिना शुल्क के भी उनको जमा शस्त्र देना पड़ता है. कुछ असलहे सालों से दुकानों में और थानों में पड़े हैं. जिन्हें अब इसकी उपयोगिता किसी भी कारण से नहीं लगती, उन्हें इसे सरेंडर कर देना चाहिए. इसके लिए जिलाधिकारी को सिर्फ एक आवेदन देना ही पर्याप्त है. इतने से भी दुकानदारों को राहत मिल जाएगी. क्योंकि, जब भी दुकान का ऑडिट होता है तो इन शस्त्रों के कागजात और शस्त्र सभी कुछ संभालकर रखना पड़ता है.
थानों में करीब 10 हजार शस्त्र जमा