लखनऊ :जब चले जाएंगे हम लौट के सावन की तरह, याद आयेंगे प्रथम प्यार के चुंबन की तरह... प्रेम में डूबी ये पंक्तियां लिखने वाली कलम जब जिंदगी के दर्शन को समझाते हुए लिखे कि जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा, जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा... तो ये कलम सिर्फ गोपालदास नीरज की ही हो सकती है. उनकी कलम कभी खुद पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूकी. इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में...लिखकर गोपालदास नीरज हमेशा के लिए अपने चाहने वालों के दिलों में अमर हो गए.
गोपालदास नीरज का जन्म इटावा जिले के पुरावली गांव में 4 जनवरी 1925 को कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम ब्रजकिशोर था. जन्म के बाद से ही नीरज का जीवन संघर्ष शुरू हो गया. वह जब छह साल के थे तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया. परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई. शुरुआत में उन्होंने सड़कों पर सामान बेचा, लेकिन इससे गुजारा नहीं हो पा रहा था, तो उन्होंने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया. इसके साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी.
पढ़ाई खत्म होते ही गोपालदास नीरज को मेरठ कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता की नौकरी मिल गईस, लेकिन कॉलेज में कुछ आरोपों के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसी के बाद नीरज का एक नया जीवन शुरू हुआ. 1954 में उनकी भांजी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. इस घटना ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया. दुखी मन से उन्होंने कविता की कुछ पंक्तियां लिखीं. उनमें से एक पंक्ति यह भी है...
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे, कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
मुंबई में गाकर हुए मशहूर
नीरज जब मुंबई पहुंचे तो वहां कवि सम्मेलन में अपनी प्रस्तुतियां दीं, जिसके बाद उनकी किस्मत ने करवट ली. नीरज की पक्तियां सुनकर संगीतकार रोशनलाल नागरथ ने अपनी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' में गीत लिखने का मौका दिया. इस फिल्म के लिए नीरज ने 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' गीत लिखकर रातों-रात लोकप्रियता हासिल की. इसके बाद उन्हें सिलसिलेवार कई सुपरहिट फिल्मों के गाने लिखने का मौका मिला. नीरज ने शर्मीली, पहचान, चंदा और बिजली, तेरे मेरे सपने, कन्यादान, गैंबलर, प्रेम पुजारी फिल्मों के गाने लिखे. हालांकि बाद में उनका मन मुंबई से उचटने लगा और वह अलीगढ़ लौट आए.
उनके मशहूर गीत की कुछ पंक्तियां
पांच सालों में नीरज ने 130 गाने लिखे. 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं' फिल्म 'पहचान' के लिए नीरज ने यह मशहूर गीत लिखा. जिसने उन्हें सगीत की दुनिया में एक अलग पहचान दी. इस गाने को मशहूर गायक मुकेश ने गाया, जबकि संगीतकार शंकर-जयकिशन थे. उनके गीतों से राज कपूर इस कदर प्रभावित हुए कि1970 में आई 'मेरा नाम जोकर' के लिए उनके गीत 'ए भाई जरा देख के चलो...' को मन्ना डे से गवाया.
ए भाई जरा देखकर चलो आगे ही नहीं पीछे भी
दाएं ही नहीं बाएं भी ऊपर ही नहीं नीचे भी
तू जहां आया है वो तेरा घर नहीं गांव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रास्ता नहीं बस्ती नहीं
दुनिया है और प्यारे दुनिया ये सर्कस है...
नीरज का लिखा यह गाना सुपरहिट हुआ और लोगों की जुबान पर छा गया. उनकी कलम से निकले गीतों के लिए उन्हें तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला. नीरज को भारत सरकार ने 1991 में पद्मश्री, 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया. जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती पुरस्कार से नवाजा.
इन कवियों की यादों में जिंदा हैं नीरज
मशहूर हास्य कवि सर्वेश अस्थाना को आज भी वह दिन याद है, जब उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा नीरज के साथ की थी. अमेरिका में काव्य पाठ के लिए भारत से केवल दो लोगों को बुलाया गया था. उन्होंने उनके साथ 80 दिन बिताए. जो उन्हें आज भी याद हैं. सर्वेश अस्थाना ने बताया कि गोपालदास नीरज एक अच्छे गीतकार ही नहीं, बल्कि ज्योतिष के भी ज्ञाता थे. वह दर्शन और अध्यात्म के भी अनुभवी थे. उन्होंने उसपर किताबें भी लिखीं हैं.
हाथरस के रहने वाले मशहूर कवि और गीतकार विष्णु सक्सेना बताते हैं कि नीरज के साथ उन्होंने कई काव्य पाठ किए हैं. नीरज को लेकर उन्होंने कहा कि उनके कुछ गीत आज भी गुनगुनाने का मन करता है, जिनमें यह गीत विशेष है...
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