नई दिल्ली : 'जो कुछ भी होता है, अच्छे के लिए होता है.' तीन साल पहले टोक्यो ओलंपिक क्वालीफायर ट्रायल हारने के बाद निकहत ज़रीन खुद से यही कहती रहीं. वह 'ठीक' होने के लिए घर गईं. जब बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दिग्गज एमसी मैरी कॉम को सीधे 2019 में टोक्यो ओलंपिक खेलों के क्वालीफायर के लिए भेजने का फैसला किया तो जरीन ने तत्कालीन खेल मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर निष्पक्ष चयन ट्रायल की मांग की थी.
नई बॉक्सिंग चैंपियन ने 'पीटीआई' को बताया, 'ट्रायल के बाद मैं दिमाग को आराम देने घर गई थी. फिर COVID-19 लॉकडाउन भी हुआ, इसलिए मुझे पूरा 2020 अपने परिवार के साथ बिताने का मौका मिला.' 'मैं उस लॉकडाउन के दौरान खुद को ठीक करने के साथ ही उस जोन से बाहर निकल सकी. मुझे अपनी भतीजी के साथ समय बिताने का मौका मिला. मां का बनाया खाना खाने में मज़ा आया. मुझे विश्वास था कि जो कुछ भी होता है, अच्छे कारण के लिए होता है.' दरअसल मुकदमा एक उलझे हुए मामले में बदल गया था जिसमें गुस्से में मैरी कॉम ने पूछा था कि कौन निकहत जरीन?
जरीन अंततः ट्रायल के दौरान अनुभवी मुक्केबाज से 1-9 से हार गई थी, जिसने मैच के बाद युवा प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिलाने से भी इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा कि 'लॉकडाउन खत्म होने के बाद मैं कैंप में वापस गई और ट्रेनिंग शुरू की.' उन्होंने कहा कि विश्व चैंपियन से मिली हार ने मुझे आत्मविश्वास दिया. कैंप से थोड़ा समय दूर रहकर अपने परिवार के साथ वक्त बिताने के दौरान जरीन को देश के लिए पदक जीतने के अपने जुनून को फिर से जगाने में मदद मिली. लॉकडाउन के बाद जरीन ने पर्पल पैच एन्जॉय किया.
उन्होंने पिछले मार्च में इस्तांबुल में बोस्फोरस बॉक्सिंग टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीता था.उन्होंने रूस की विश्व चैंपियन पाल्टसेवा एकातेरिना और कजाकिस्तान की नाज़िम काज़ैबे को हराया था. इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीता, प्रतिष्ठित स्ट्रैंड्जा मेमोरियल और विश्व चैंपियनशिप में फ्लाईवेट (52 किग्रा) में उन्होंने थाईलैंड की जितपोंग जुतामास को हराया. पिछले कुछ वर्षों में की गई कड़ी मेहनत का लाभ इस 25 वर्षीय खिलाड़ी को मिल रहा है. 'नई निकहत बहुत मैच्योर होने के साथ आत्मविश्वास से लबरेज है.उसमें पदक जीतने और ओलंपिक में पदक जीतने के अपने सपने को पूरा करने की भूख है.
फिटनेस और पंच पर काम किया :निकहत का कहना है कि 'पिछले कुछ सालों में मैंने अपनी फिटनेस और पंच पर काम किया है. कैसे दूर से मुक्का मारा जाए, अटैक कैसे किया जाए, डिफेंस करने के बाद फिर से कैसे अटैक किया जाए.' यही पंच मारने का उसका कॉम्बिनेशन ही था जिसने उसे जुतामा को मात देने में मदद की. जरीन को लगता है कि करियर की शुरुआत में लगी चोट ने उसे बहुत कुछ सिखाया. मुक्केबाजी के प्रति उनके नजरिए को भी बदला.
उनका कहना है कि 'चोट ने मेरे करियर में प्रमुख भूमिका निभाई, मुझे बहुत सी चीजें सीखने को मिलीं. मैं चोट मुक्त होने के बारे में अधिक सतर्क और सावधान हो गई. मैंने कुछ पंच से परहेज किया है, इसलिए मैं फिर से घायल नहीं हुई.' उन्होंने कहा कि 'उसके बाद मैंने अपनी स्ट्रेंथ पर काम किया. वह मेरे जीवन की पहली चोट थी और मुझे सर्जरी करानी पड़ी. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. मुझे चिंता थी कि क्या होगा.'
जीवन के हर पड़ाव पर विरोधियों के ताना मारने पर जरीन का कहना है कि बाहर का शोर उन्हें प्रभावित नहीं करता. निजामाबाद के एक रूढ़िवादी इलाके से आने वाली, युवा ज़रीन को उसके समुदाय के सदस्यों ने बॉक्सिंग करने और शॉर्ट्स और बनियान पहनने पर ताना मारा था. कुछ साल बाद जब उसके कंधे में चोट लगी तो उससे कहा गया 'तुझसे नहीं होगा, छोड दे, इतनी प्रतियोगिता जीतने के लिए खेल कोटा में नौकरी मिल जाएगी.' ज़रीन को उनकी निष्पक्ष सुनवाई की अपील के लिए सोशल मीडिया पर भी जमकर ट्रोल किया गया था.