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लैंगिक समानता से बहुत दूर है दुनिया, कई मोर्चों पर व्यापक कार्य करने की जरूरत - आर्थिक भागीदारी में लैंगिक अंतर

विश्व के तमाम क्षेत्रों में महिलाएं आगे आ रही हैं और निर्णायक भूमिका अदा कर रही हैं. यह देखकर भ्रम हो सकता है कि दुनिया ने लैंगिक समानता हासिल कर ली है. इसका एक पक्ष यह है कि यदि हम व्यापक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखें तो पता चलता है कि अब भी हमारी दुनिया लैंगिक समानता से बहुत दूर है.

GLOBAL GENDER GAP REPORT 2021
GLOBAL GENDER GAP REPORT 2021

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Published : Apr 2, 2021, 6:54 PM IST

Updated : Apr 2, 2021, 7:11 PM IST

हैदराबाद :ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स चार प्रमुख आयामों के आधार पर लिंग आधारित असमानता के बारे में जानकारी देता है और समय के साथ इन अंतरों को खत्म करने की दिशा में हो रही प्रगति पर भी नजर रखता है. इंडेक्स के प्रमुख आयामों में आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण शामिल हैं.

इस वर्ष ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स ने 156 देशों से जुड़ी रिपोर्ट निकाली है, जिससे यह समझने में मदद मिलेगी कि लिंग आधारित अंतर को खत्म करने के लिए किन योजनाओं की जरूरत पड़ेगी. सबसे पहली बार वर्ष 2006 में यह रिपोर्ट निकाली गई थी. ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 0 से 100 के पैमाने पर स्कोर को मापता है. जिसमें 0 लैंगिक असमानता और 100 संपूर्ण लैंगिक समानता दर्शाता है.

रिपोर्ट का 14वां संस्करण दिसंबर 2019 में आया था. कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण 15वें संस्करण की रिपोर्ट को कुछ माह देरी से 2021 में निकाला गया. प्रारंभिक आंकड़े दर्शाते हैं कि कोरोना वायरस से फैली महामारी के परिणामस्वरूप व्याप्त स्वास्थ्य आपातकाल और आर्थिक मंदी से पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा प्रभावित हैं. इससे लिंग आधारित असमानता और बढ़ गई है.

2021 की रिपोर्ट के निष्कर्ष नीचे सूचीबद्ध हैं
पूरी दुनिया के औसत की बात करें तो फिलहाल दुनिया में लैंगिक समानता का स्कोर 68 प्रतिशत है. यह 2020 से -0.6% कम है. इन आंकड़ों को विकसित देशों का प्रदर्शन प्रभावित करता है. 2021 में व्याप्त असमानता को दूर करने में 135.6 वर्ष लगेंगे.

सभी आयामों में राजनीतिक सशक्तिकरण में हम सबसे कम समानता हासिल कर पाए हैं. आज तक यह सिर्फ 22% है. 2020 के बाद समानता 2.4% प्रतिशत घट गई है. सूचकांक में शामिल 156 देशों में 35,500 संसद की सीटें हैं. इनमें महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 26.1% है और विश्व भर के 3,400 मंत्रालयों में उनकी भागीदारी सिर्फ 22.6% है. 15 जनवरी 2021 तक 81 देशों की प्रमुख एक महिला कभी नहीं रही है. प्रगति की वर्तमान दर से राजनीति में समानता पाने में महिलाओं को 145.5 वर्ष का समय लगेगा.

आर्थिक भागीदारी और अवसर में राजनीतिक सशक्तिकरण के बाद सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता है. इस वर्ष की रिपोर्ट के अनुसार इस आयाम में 58% समानता हासिल कर ली गई है. 2020 की रिपोर्ट के बाद इसमें थोड़ी प्रगति हुई है. अनुमान लगाया जा रहा है कि असमानता को पूरी तरह से दूर करने में 267.6 वर्ष का समय लगेगा.

आर्थिक भागीदारी और अवसर में समानता हासिल करने के दिशा में धीमी गति के दो विपरीत कारण हैं. कुशल और पेशेवर महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, वहीं वेतन समानता की दिशा में प्रगति तो हो रही है, लेकिन इसकी दर निराशाजनक है.

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमनें 95% लैंगिक समानता हासिल कर ली है. 37 देशों में यह शत् प्रतिशत है. हालांकि, 95% को 100% करने की दर कम हो गई है. रिपोर्ट के मुताबिक इसको हासिल करने में 14.2 वर्ष का समय लगेगा. अन्य आयामों की तुलना में यहां पर प्रगति ज्यादा है, हालांकि महामारी ने इसको प्रभावित किया है.

लैंगिक असमानता, कोविड-19 और भाविष्य की कार्यशैली
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, लिंक्डइन और इप्सोस से चिन्हित अर्थव्यवस्थाओं का हाई फ्रीक्वेंसी डेटा आर्थिक भागीदारी में लैंगिक अंतर पर कोविड-19 के प्रभाव का विश्लेषण करता है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के मुताबिक महामारी के दौरान नौकरी खोने वाली महिलाओं का आंकड़ा 5% है और पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 3.9% है. लिंक्डइन का डेटा दर्शाता है कि शीर्ष पदों पर महिलाओं की नियुक्ति में कमी आई है.

सॉफ्टवेयर व आईटी सेवा, वित्तीय सेवा, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल और विनिर्माण जैसे उद्योगों में यह नहीं देखा गया है. वहीं उपभोक्ता क्षेत्र, गैर-लाभकारी, और मीडिया और संचार क्षेत्र में यह सबसे ज्यादा है. जनवरी 2021 का इप्सोस का डेटा दिखाता है कि उचित प्रणाली नहीं होने के कारण महिलाओं को मनसिक तनाव का भी सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना वायरस से फैली महामारी ने ऑटोमेशन और डिजिटाइजेशन को बढ़ावा दिया है. इससे श्रम बाजार प्रभावित हो रहा है. व्यावसायिक लिंग-अलगाव के चलते आने वाले दिनों में भविष्य की नौकरियों में लैंगिक समानता हासिल कर पाना मुश्किल होगा. जॉब्स फॉर टूमॉरो की श्रेणी में आने वाली नौकरियों में आठ नौकरियों में से सिर्फ दो नौकरियां ऐसी हैं, जिनमें लैंगिक समानता है.

लैंगिक असमानता क्लाउड कमप्यूटिंग, इनजीनियरिंग, डेटा और एआई जैसे क्षेत्रों में ज्यादा है. ऑटोमेशन, व्यावसायिक अलगाव और महामारी के संयुक्त प्रभाव के कारण महिलाओं के लिए भविष्य के आर्थिक अवसरों पर एक गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है. इससे निपटने के लिए जेंडर पॉजिटिव रिकवरी पॉलिसी एंड प्रैक्टिस जैसी योजनाओं को लागू किया जा सकता है. रिपोर्ट में इन दुष्प्रभावों से निपटने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं.

देश और क्षेत्र के आधार पर लैंगिक असमानता
आइसलैंड में दुनिया में सबसे ज्यादा लैंगिक समानता है. शीर्ष 10 देशों की सूची इस प्रकार है:-

इस साल पांच देशों लिथुआनिया, सर्बिया, तिमोर-लेस्ते, टोगो और संयुक्त अरब अमीरात ने सबसे अधिक प्रगति की है. इन देशों में लैंगिक असमानता में 4.4% या उससे अधिक की कमी आई है. तिमोर-लेस्टे और टोगो भी चार देशों (कोटे डी आइवर और जॉर्डन सहित) में शामिल हैं जहां असमानता को दूर करने में एक प्रतिशत की सफलता मिली है. इस साल पहली बार तीन नए देशों का आकलन किया गया है: अफगानिस्तान (लैंगिक समानता 44.4%, 156 वां), गुयाना (72.8%, 53 वां) और नाइजर (62.9%, 138 वां).

विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर गंभीर असमानताएं हैं. पश्चिमी यूरोप वह क्षेत्र बना हुआ है जिसने लैंगिक समानता (77.6%) की ओर सबसे अधिक प्रगति की है और वह तेजी से आगे बढ़ रहा है. उत्तरी अमेरिका दूसरा सबसे प्रगतिशील देश (76.4%) है, वहां इस वर्ष भी सुधार हुआ है, जिसके बाद लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (71.2%) और पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया (71.1%) हैं.

पढ़ें-क्या कहती है विश्व आर्थिक मंच पर लिंग समानता की रिपोर्ट, पढ़ें खबर

इन सबसे थोड़ा पीछे पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र (68.9%) हैं, जो कि उप-सहारन अफ्रीका (67.2%) से आगे और दक्षिण एशिया (62.3%) से आगे और सबसे-बेहतर क्षेत्रों में से एक है. मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र सबसे बड़ा अंतर (60.9%) वाला क्षेत्र है.

वर्तमान गति से पश्चिमी यूरोप में लैंगिक असमानता को दूर करने में 52.1 वर्ष लगेंगे. वहीं उत्तरी अमेरिका को 61.5 वर्ष और लैटिन अमेरिका व कैरेबियन में 68.9 वर्ष लगेंगे. अन्य सभी क्षेत्रों में 100 वर्ष लगेंगे: उप-सहारा अफ्रीका में 121.7 वर्ष, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में 134.7 वर्ष, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 165.1 वर्ष, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 142.4 वर्ष और दक्षिण एशिया में 195.4 वर्ष लगेंगे.

Last Updated : Apr 2, 2021, 7:11 PM IST

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