हैदराबाद : आज के दौर में जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है और जलवायु परिवर्तन के लिए प्रदूषण सबसे बड़ी वजह है. जिससे धरती का तापमान बढ़ रहा है. दुनियाभर में फैल रहे प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में से एक प्लास्टिक है. जिससे हम हर पल घिरे रहते हैं. बच्चों के खिलौनों से लेकर, रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों तक में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. प्लास्टिक पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है. वैसे तो हर तरह का प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है लेकिन एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक जैसे पॉलीथीन, स्ट्रॉ और पैकिंग में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद ही खतरनाक होता है.
प्लास्टिक के निपटारे के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण कार्यक्रम के तहत दुनिया के लिए साल 2018 में एक कार्यक्रम की शुरुआत की. जिसके तहत आगामी 7 वर्षों यानि 2025 तक दुनिया से प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने का लक्ष्य है. इस कार्यक्रम में कई देशों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था लेकिन इस कार्यक्रम की अब तक रिपोर्ट बताती है कि प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए जो भी लक्ष्य इस अभियान के तहत रखे गए हैं उनसे दुनिया अभी कोसो दूर है.
अभियान के लक्ष्य
- साल 2018 में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) से जुड़ी संस्थाओं ने एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के साथ मिलकर दुनिया पर प्लास्टिक के दुष्प्रभावों और उसकी रोकथाम को लेकर काम शुरू किया.
-इस दौरान यूएनईपी और इस काम में जुटे अन्य साझेदारों ने पाया कि दुनिया भर में विकास के साथ-साथ प्लास्टिक का भी अंधाधुंध इस्तेमाल हुआ है. इसलिये प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए जो भी करना है वो जल्द और तेजी से करना होगा.
- यूएनईपी और एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के मुताबिक प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को पारदर्शी बनाना होगा. प्लास्टिक के धड़ल्ले से उप्तादन और उसके निपटारे के साथ रीसाइक्लिंग पर ध्यान देना होगा.
दुनिया में हो रहे प्लास्टिक के अंधाधुंध इस्तेमाल का सीधा असर जमीन से लेकर जल स्रोतों और वायु प्रदूषण के रूप में सामने आता है. एक अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर हर साल जितनाा प्लास्टिक कचरा निकलता है वो धरती पर रहने वाले कुल लोगों के वजन के बराबर है. ये प्लास्टिक पानी के स्रोतों से लेकर खेत खलिहानों, गलियों में हमारे चारों ओर हमेशा फैला रहता है. यही प्लास्टिक भूमि से लेकर जानवरों और इंसानों तक को नुकसान पहुंचाता है
पिछले साल के अंत में आई रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में कई मानदंडों में प्रदर्शन सुधार हुआ था:
- प्लास्टिक उत्पादकों, वित्तीय संस्थानों और सरकारों सहित हस्ताक्षरकर्ताओं की संख्या में 25 प्रतिशत से लगभग 500 तक का विस्तार हुआ है.
- दो क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है: प्लास्टिक पैकेजिंग की रीसाइकिल सामग्री में 22 प्रतिशत और व्यापार में 81 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
- इस पहल में हिस्सा लेने वाले सभी सरकारी हस्ताक्षरकर्ताओं ने सबसे खराब कैटेगरी के प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया. जिसमें एक बार इस्तेमाल (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) होने वाला प्लास्टिक और स्ट्रॉ शामिल है.
- 56 फीसदी हस्ताक्षरकर्ताओं ने पुन: उपयोग के मॉडल का परीक्षण करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर लिया है या करने वाले हैं.
इस अभियान की शुरुआत के साथ प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए दुनिया के कई देशों ने हाथ तो बढ़ाया. लेकिन इस ओर उठाए गए पूरी दुनिया के कदम लक्ष्य प्राप्ति के लिए नाकाफी साबित हो रहे हैं.
ये तो सिर्फ शुरुआत है, लक्ष्य अभी बहुत दूर है
- रिपोर्ट बताती है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
- COVID-19 ने इस मुहिम को झटका दिया जिसके कारण दुनिया की लगभग हर अर्थव्यवस्था प्रभावित हुए.
- इस दौरान खाद्य उत्पादों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक और पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले बुलबुले युक्त प्लास्टिक की मांग बढ़ी. जिसे रिसायकल नहीं किया जा सकता.
- एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक उत्पादों को सीमित करना एक बड़ी चुनौती है.
- प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता के 2025 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दुनिया को अभी बहुत कुछ करना होगा. फिलहाल निर्धारित लक्ष्यों से दुनिया कोसों दूर है.
- प्लास्टिक को रीसायकल करने पर जोर देना होगा, दुनिया को इसकी रफ्तार बढ़ानी होगी.
- एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक की जरूरत को खत्म करना होगा. मौजूदा दौर में इसकी रफ्तार बहुत कम है.
कुल मिलाकर प्लास्टिक से मुक्ति पाने के लिए दुनियाभर के देशों को नीति और नीयत भी चाहिए. दुनिया के कई देशों की आर्थिकी उन्हें प्लास्टिक बैन की इजाजत नहीं दती तो वहीं कोरोना काल में हर अर्थव्यवस्था की कमर टूटने के कारण प्लास्टिक बैन या प्रदूषण की रोकथाम जैसे मसले ज्यादातर देशों के लिए प्राथमिकता की सूची में बहुत नीचे हैं. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र से लेकर पर्यावरणविदों, पर्यावरण से जुड़े संगठनों और आर्थिक रूप से मजबूत देशों को आगे आकर प्लास्टिक बैन को लेकर दुनियाभर के देशों को जागरुक करने के साथ मदद भी करनी होगी.