दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

National tribal dance festival 2022 : छत्तीसगढ़ समेत देश के आदिवासी नृत्य की झलक - Glimpses of tribal dance of country

Glimpses of tribal dance of country छत्तीसगढ़ में आदिवासी नृत्य महोत्सव चल रहा है. इस महोत्सव में छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों से आदिवासी नृत्य कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा केरल, तमिलनाडू, असम, झारखंड, मध्यप्रदेश समेत दूसरे राज्यों के आदिवासी अपने अपने नृत्य का प्रदर्शन कर रहे हैं.

National tribal dance festival 2022
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

By

Published : Nov 2, 2022, 9:50 PM IST

रायपुर : राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आज दूसरा दिन है. जहां छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों के कलाकार अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं. इस आयोजन में विदेश से भी कलाकार भाग लेने पहुंचे हैं. जो अपने यहां के पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का यह तीसरा साल है, जिसमें आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक कला और संस्कृति की छटा बिखेर रहे है.


आज हम आपको राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान होने वाले कुछ खास नृत्यों से जुड़ी जानकारी यहां दे रहे हैं

छत्तीसगढ़ का आदिवासी नृत्य माओ पाटा नृत्य - बस्तर के मुरिया जनजाति में कई प्रदर्शनकारी कलाएं प्रचलित हैं. माओ पाटा मुरिया जनजाति का एक ऐसा ही नृत्य है, जिसमें नाटक के भी लगभग सभी तत्व हैं. इस नृत्य को गौर मार नृत्य भी कहा जाता है. माओ पाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है, जिसमें युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं. नर्तक विशाल आकार के ढोल बजाते हुए घोटुल में प्रवेश करते हैं. इस नृत्य में गौर पशु है और पाटा का अर्थ कहानी है, जिसमें गौर के पारंपरिक शिकार को प्रदर्शित किया जाता है. पोत से बनी सुंदर माला, कौड़ी और भृंगराज पक्षी के पंख की कलगी जिसे जेलिंग कहा जाता है, युवक अपने सिर पर सजाए रहते हैं. युवतियां पोत और धातुई आभूषण कंघियां और कौड़ी से श्रृंगार किए हुए रहती हैं. एक व्यक्ति गौर पशु का स्वांग लिए रहता है, जिसका नृत्य के दौरान शिकार किया जाता है.

हुलकी नृत्य -हुलकी नृत्य बस्तर के कोंडागांव और नारायणपुर जिले में निवास करने वाली मुरिया जनजाति का पारंपरिक नृत्य है. इसमें स्त्री-पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं. हुलकी नृत्य के बारे में यह मान्यता है कि यह नृत्य आदि देवता लिंगोपेन को समर्पित है. इस नृत्य में सवाल-जवाब की शैली में गीत गाये जाते हैं, जिसमें दैवीय मान्यताओं, किंवदंतियों और नृत्य की अवधारणाओं से संबंधित प्रसंग पर सवाल-जवाब होते हैं. इस नृत्य का मुख्य वाद्य यंत्र डहकी पर्राय है, जिसका वादन पुरूष नर्तक करते हैं. महिलाएं चिटकुलिंग का वादन करती है. इस नृत्य में इसके अलावा कोई और वाद्य यंत्र निषिद्ध है. पारंपरिक रूप से हुलकी नृत्य का आरंभ हरियाली त्यौहार के बाद प्रारंभ होता है, जो क्वांर महीने तक चलता है.

देसी कलाकारों का अंदाज
नृत्य का महोत्सव

दंडामी माड़िया नृत्य -बस्तर के दंडामी माड़िया नृत्य को गौर माड़िया नृत्य के नाम से जाना जाता है. इस नृत्य में युवक अपने सिर पर गौर नामक पशु के सींग से बना मुकुट, कोकोटा पहनते हैं, जो कौड़ियों और कलगी से सजा रहता है. युवकों के साथ नृत्य करने वाली युवतियां अपने सिर पर पीतल का मुकुट (टिगे) पहनती हैं और हाथ में लोहे की सरिया से बनी एक छड़ी, गूजरी बड़गी रखती हैं, जिसके ऊपर घुंघरू लगे रहते हैं, जिसे जमीन पर पटकते हुए आकर्षक ध्वनि उत्पन्न करते हैं.

छत्तीसगढ़ समेत देश के आदिवासी नृत्य की झलक
डांस करते कलाकार

झारखण्ड का आदिवासी पाइका नृत्य -मुंडा झारखंड की एक प्रमुख जनजाति है. मुंडा जनजाति झारखंड के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम में भी निवास करती है. वर्तमान में मुख्यतः कृषि पर आधारित जीविकोपार्जन करने वाले मुण्डा लोगों को प्रदर्शनकारी कलाओं में पाइका नृत्य का विशेष स्थान है. पाइका युद्ध कला से संबंधित नृत्य है जिसे मुण्डा, उरांव, खड़िया आदि आदिवासी समाजों के नर्तकों द्वारा किया जाता है. इस नृत्य में केवल पुरूष ही हिस्सा लेते हैं. नर्तक योद्धाओं के पोषाक धारण करते हैं और अपने हाथों में ढाल, तलवार आदि अस्त्र लिए रहते हैं. नृत्य के अवसर पर प्रयोग होने वाले वाद्य ढाक, नगाड़ा, शहनाई, मदनभैरी है. पाइका नृत्य विवाह उत्सवों के साथ ही अतिथि सत्कार के लिए सामान्यतः किया जाता है.

डांस के रंग
आदिवासी नृत्य की झलक

छाऊ नृत्य -छाऊ नृत्य भारत के तीन पूर्वी राज्यों में लोक और जनजातीय कलाकारों द्वारा किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य रूप है, जिसमें मार्शल आर्ट और करतबों की भरमार रहा करती है. छाऊ नृत्य का नामकरण संबंधित क्षेत्र के आधार पर किया जाता है. पश्चिम बंगाल में पुरूलिया छाऊ, झारखंड में सराइकेला छाऊ और ओडिशा में मयूरभंज छाऊ. इसमें से पहले दो प्रकार के छाऊ नृत्यों में प्रस्तुति के अवसर पर मुखौटों का उपयोग किया जाता है, जबकि तीसरे प्रकार के मयूरभंज छाऊ में मुखौटे का प्रयोग नहीं होता है. इस नृत्य में रामायण, महाभारत और पुराण की कथाओं को कलाकारों द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है. इसमें गायन और संगीत का प्रमुख स्थान है, लेकिन प्रस्तुति के समय लगातार चल रही वाद्य संगीत की विशेषता प्रधान रहती है. नृत्य में प्रत्येक विषय की शुरूआत एक छोटे से गीत से होती है, जिसमें उस विषय वस्तु का परिचय होता है. छाऊ नृत्य केवल पुरूष कलाकारों द्वारा ही किया जाता है. छाऊ ने अपने कथावस्तु, कलाकारों की ओजस्विता, चपलता और संगीत के आधार पर न सिर्फ भारतवर्ष बल्कि विदेश में भी अपनी खास पहचान बनाई है.

एक से बढ़कर एक डांस

दमकच नृत्य -दमकच झारखंड राज्य के आदिवासी और लोक समाजों का एक लोकप्रिय नृत्य है. यह नृत्य मुख्यतः विवाह के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है, जिसमें महिलाएं और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं. पुरूष वर्ग इस नृत्य में गायक वादक और नर्तक के रूप में महिलाओं का साथ देते हैं. इस नृत्य में कन्या और वर को भी पारंपरिक रूप से सम्मिलित किया जाता है. दमकच नृत्य में उपयोग किए जाने वाले वाद्य में ढोल, नगाड़ा, ढाक, मांदर, बांसुरी, शहनाई और झांझ सम्मिलित है. यह नृत्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के देवउठनी एकादशी से शुरू होकर आषाढ़ मास के रथयात्रा तक किया जाता है.

असम का आदिवासी नृत्यबाघरूम्बा नृत्य - बाघरूम्बा असम की बोडो जनजाति का एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय नृत्य है. बोडो असम का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है, जो वहां की कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत है. बोडो जनजाति की ज्ञान परंपराओं में अनेक सर्जनात्मक और प्रस्तुतिकारी कलाएं सम्मिलित हैं, जिनमें बाघरूम्बा नृत्य का उल्लेखनीय स्थान है. बाघरूम्बा नृत्य महिलाओं द्वारा त्यौहारों के परिधान धारण करती है. इस नृत्य में ढोल जिसे स्थानीय भाषा में खाम कहा जाता है, प्रमुख वाद्य है, जिसे सिफुंग अर्थात् बांसुरी और बांस में बने गोंगवना और थरका वाद्यों के साथ बजाया जाता है. बोडो लोगों का प्रकृति प्रेम इस नृत्य में भी मुखरित होता है, जिसे इस नृत्य में पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, तितली, बहती हुई नदी की धारा, वायु आदि को दर्शाती नृत्य रचनाओं में देखा जा सकता है.

केरल का आदिवासी नृत्य मरयूराट्टम नृत्य -मरयूराट्टम केरल की माविलन जनजाति का एक नृत्य है, जिसे केरल और तमिलनाडू के सीमा क्षेत्र में स्थित मरायूर नामक स्थान में निवास करने वाली माविलन जनजाति के लोगों के द्वारा किया जाता है. मरायूर केरल के पल्ल्ककाड़ जिले में स्थित है, जहां इस नृत्य को मुख्यतः विवाह समारोहों और उत्सवों के अवसर पर किया जाता है. इस नृत्य में स्त्री और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं. Glimpses of tribal dance of country

ABOUT THE AUTHOR

...view details