हमीरपुर : ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय में ग्लेशियर से बनी झीलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. पिछले चार दशक में उच्च हिमालय और पीर पंजाल की रेंज में ग्लेशियर के झीलों की संख्या में लगभग दोगुना इजाफा हुआ है. इस बात का खुलासा हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले में मौजूद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सिविल विभाग के प्रोफेसर डॉ. चंद्र प्रकाश के शोध में हुआ हैं.
प्रो. चंद्र प्रकाश का बयान. प्रो. चंद्र प्रकाश ग्लेशियर से बनने वाली झील के विषय पर कई सालों से शोध कर रहे हैं. उनका शोध उच्च हिमालय और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला की अभी चार नदी घाटियों पर केंद्रित है. ग्लेशियर झीलों का यह अध्ययन इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटलाइट डाटा और अमेरिका द्वारा साल 1971 में की गई कोरोना एरियल फोटोग्राफ की मदद से किया गया है.
शोध के मुताबिक, साल 1971 में उच्च हिमालय और पीर पंजाल रेंज की चंद्रा, भागा, ब्यास, और पार्वती नदी घाटी में 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल से बड़ी कुल 77 ग्लेशियर झील मौजूद थी, जबकि साल 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 155 हो गई है. इतना ही नहीं पहले से मौजूद झीलों के आकार में दो से तीन गुना बढ़ोतरी भी देखने को मिली है.
कश्मीर, नेपाल, भूटान, तिब्बत और भारत के सिक्किम, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर व हिमाचल के क्षेत्रों में लगातार इन झील की संख्या बढ़ रही है. झीलों के आकार और संख्या के बढ़ने से इस क्षेत्र में इन झीलों के अत्यधिक बारिश, ग्लेशियर टूटने अथवा भूस्खलन से झीलों के फटने से होने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है.
ग्लेशियर की सैटेलाइट तस्वीर. चंद्र और भागा बेसिन को ब्यास और पार्वती बेसिन से अलग करने वाली पीर पंजाल रेंज भी इस अध्ययन का केंद्र बिंदु रहा है, हालांकि, उच्च हिमालय रेंज में पीर पंजाल रेंज के बजाया अधिक ग्लेशियर झील का निर्माण पिछले चार दशक में देखने को मिला है. चंद्रा बेसिन में ही पिछले चार दशक में तीन गुना इजाफा इन झील में देखने को मिला है. साल 1971 में कुल 14 झील इस बेसिन में मौजूद थी जो कि अब बढ़कर 48 हो गई है. इस बेसिन में उच्च हिमालय क्षेत्र की सबसे बड़ी दो ग्लेशियर झील मौजूद है.
शोध में तैयार किया गया ग्राफ. समुद्र टापू ग्लेशियर से बनी झील का आकार 1.35 वर्ग किलोमीटर है. इसके अलावा गेपांगघट ग्लेशियर झील का आकार भी पिछले 4 दशक में कई गुना बढ़ गया है. साल 1971 में इसका आकार 0.17 वर्ग किलोमीटर था, जो कि साल 2003 में 0.5 वर्ग किलोमीटर और साल 2011 में 0.84 वर्ग किमी हो गया. लगातार आकार के बढ़ने से जहां निकट भविष्य में इन झीलों के फटने से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, लेकिन यहां पर प्राकृतिक रूप से ही पानी की निकासी से खतरा कुछ हद तक टल गया है. हालांकि, यहां पर खतरे की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है.
उच्च हिमालय के बेसिन की अगर बात की जाए तो यहां पर चंद्रा और भागा दो बेसिन में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि चंद्रा बेसिन में 1971 में 14 झीलें थीं, जोकि 2011 में बढ़कर 48 हो गई हैं और भागा बेसिन में 1971 में 26 झीलें थीं जो कि साल 2011 तक बढ़कर 46 हो गई हैं. पीर पंजाल रेंज की अगर बात की जाए तो पार्वती बेसिन में 1971 में 15 झीलें 2011 में बढ़कर 29 हो गई हैं और ब्यास बेसिन में साल 1071 में 22 झीलें जो साल 2011 में बढ़कर 31 हो गई हैं. इन सभी झीलों का आकार 1000 वर्ग मीटर से अधिक है, जबकि इससे छोटे आकार की भी बहुत से झीलें इन नदी घाटियों में हैं.
ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघलते ग्लेशियर मानवता के लिए बड़ा खतरा हैं. विश्वभर में 2016 से पहले 1348 ग्लेशियर झील के फटने की घटनाएं घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इन घटनाओं में 13000 लोगों की मौत हुई है. हिमालय क्षेत्र की अगर बात की जाए तो कुल 45 घटनाएं इस तरह की सामने आई हैं, जिसमें नेपाल भूटान तिब्बत और भारतीय क्षेत्र में खासा नुकसान देखने को मिला है. वहीं, अब लगातार बढ़ रही ग्लेशियर की झील एक बड़ा खतरा हिमालय पर्वत श्रृंखला के देशों के लिए माना जा रहा है.
2011 तक के आंकड़ों के आधार पर किया गया अध्ययन चौंकाने वाला है, लेकिन इससे अधिक चौंकाने वाले खुलासे अगले 10 वर्षों के अध्ययन में हो सकते हैं. इस अध्ययन में भी एनआईटी हमीरपुर के प्रो. चंद्र प्रकाश अपने शोधार्थियों के साथ जुटे हुए हैं. एक अनुमान है कि इन झील में पिछले एक दशक में उम्मीदों से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है.
यह भी माना जा रहा है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग पर विश्वभर के संगठन और देश कदम नहीं उठाते हैं तो आने वाले दिनों में चमोली और केदारनाथ जैसी कई घटनाएं देखने को मिल सकती हैं. लगातार ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इन से बनने वाली झील भी आगामी दिनों में हिमालय क्षेत्र से जुड़े देशों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है. समुद्राटापू और गेपांगघट जैसे ग्लेशियर और इनसे बनी झील आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं.
प्रो. चंद्र प्रकाश इस विषय पर कहते हैं कि जाहिर तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही यह चुनौती देखने को मिल रही है. उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में अगले एक दशक के अध्ययन पर भी वह और उनके शोधार्थी कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उच्च हिमालय और पीर पंजाल के कुछ ग्लेशियर का उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर भी दौरा और निरीक्षण किया है. हमें इस दिशा में और अधिक सजग होने की जरूरत है.