भूवैज्ञानिक सुशील कुमार की राय देहरादून/हरिद्वार (उत्तराखंड):उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा में निर्माणाधीन टनल में भूधंसाव होने से 40 लोग अंदर ही फंसे हुए हैं. इस घटना के बाद से राहत बचाव का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है, लेकिन इस टनल हादसे के बाद से तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह घटना कैसे हो गई? ऐसे में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि यह प्राकृतिक आपदा है, लेकिन उत्तराखंड जैसे क्षेत्र में निर्माण कार्य करने के दौरान कार्यदायी संस्थाओं को तमाम अहम पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए.
दरअसल, यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और पोलगांव (बड़कोट) के बीच करीब 4,531 मीटर की लंबी सुरंग बनाई जा रही है. इस टनल निर्माण से यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के बीच की दूरी 25 किलोमीटर कम हो जाएगी. हालांकि, अभी तक सिल्कयारा की तरफ से 2340 मीटर और बड़कोट की तरफ से 1750 मीटर टनल का निर्माण हो चुका है, लेकिन सिलक्यारा की तरफ से करीब 270 मीटर अंदर करीब 30 मीटर क्षेत्र में मलबा गिरने से सुरंग ब्लॉक हो गया. जिसके चलते इस टनल में काम रहे लोग फंस गए हैं. जिन्हें सुरक्षित निकालने के लिए राहत व बचाव का काम जारी है.
वहीं, उत्तरकाशी टनल हादसे की वजह के सवाल पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने अपनी राय रखी. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि देश में कोई पहली टनल बनाई जा रही हो, लेकिन उत्तराखंड का हिमालय क्षेत्र सॉफ्ट रॉक (नरम चट्टान) से बना हुआ है. जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के कार्यों पर विशेष ध्यान देना होता है.
मुख्य रूप से अन्य जगहों पर जब टनल निर्माण करते हैं तो पासेस ब्लॉक पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगर कोई टनल बनाई जाती है तो यहां पासेस ब्लॉक पर ध्यान देने की जरूरत है. ताकि, अगर कोई घटना होती है तो काम करने वाले को तत्काल सुरक्षित बाहर निकाला जा सके.
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भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने कहा कि अगर कोई टनल बनाते हैं तो उस दौरान खास कर सॉफ्ट रॉक जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में तो कुछ ऐसे स्पॉट भी मिलते है, जो किसी सपोर्ट पर रुके होते हैं. ऐसे में जैसे ही कोई स्पोर्ट हटता है तो सारा मलबा नीचे आ जाता है. जिससे टनल ब्लॉक हो जाती है. ऐसा ही कुछ घटना उत्तरकाशी के इस टनल में देखने को मिली है.
हालांकि, यह एक प्राकृतिक हादसा है. क्योंकि, जब टनल का निर्माण किया जाता है तो तमाम जरूरी एहतियात बरते जाते हैं, लेकिन हर स्टेप पर स्ट्रेस लेवल को चेक करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है. इस हादसे से तमाम सीख भी मिलेंगे, जिसे भविष्य में बनने वाले टनल के दौरान सुधारने की जरूरत होगी.
वहीं, सुशील कुमार ने कहा कि उत्तराखंड का हिमालय सॉफ्ट रॉक से बना हुआ है. लिहाजा, सड़क कटिंग या फिर टनल निर्माण के दौरान जो अनस्टेबलिटी की जा रही है, उसे स्टेबल करते हुए काम करना होगा. इसके साथ ही कार्यदायी संस्थाओं को और ज्यादा सावधानी बरतने के साथ ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि, जल्दबाजी में यह काम नहीं होगा.
हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी ने किया आगाह:उत्तरकाशी के यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग हादसे के बाद तमाम प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. खासकर हैवी प्रोजेक्ट को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार उत्तराखंड के पहाड़ों पर ऐसे प्रोजेक्ट सुरक्षित है या नहीं. इसी पर चर्चा करने के लिए ईटीवी भारत ने हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की राय जानी.
हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की सलाह
हादसे पर क्या बोले भूवैज्ञानिक: भूवैज्ञानिक बीडी जोशी का कहना है कि यह हादसा कोई आश्चर्यजनक हादसा नहीं है, उनके अनुसार उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि कोई न कोई हादसा अवश्य पहाड़ों से छेड़छाड़ करने के दौरान होगा. उन्होंने बताया कि इसके पीछे की वजह उत्तराखंड के पहाड़ों की युवा अवस्था है. उनकी आयु अन्य राज्यों के पहाड़ों के मुकाबले कम है.
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इतना ही नहीं उत्तराखंड के क्लाइमेट में भी अन्य राज्यों के अनुसार काफी चेंज है. यहां पर बारिश, बर्फ और धूप जैसे मौसम लगातार बने रहते हैं. इन पहाड़ों पर पहले की अपेक्षा से ज्यादा अब लोगों की आवाजाही भी बढ़ी है. उत्तराखंड के पहाड़ अभी सही तरह से स्थिर नहीं हुए हैं, यही वजह है कि लगातार इस तरह के हादसे से हो रहे हैं.
कहां हुई चूक और क्या है वजह? भूवैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि किसी भी काम को करने से पहले कई तरह के प्लान और कई तरह के उस प्रोजेक्ट पर वर्क करने होते हैं. जिसमें ये भी देखना होता है कि जहां इस तरह की टनल बनाई जा रही है, वो जगह उस टनल के अनुरूप है या नहीं. वहां की मिट्टी और उस पहाड़ की क्रियाएं किस तरह की है, यह भी अध्ययन करना बेहद जरूरी होता है.
इसके अलावा जियोलॉजिकल स्टेबिलिटी कितनी है?पहाड़ की मिट्टी कितनी लूज है या टाइट है? यह जानना भी अहम होता है. जब टनल का कार्य शुरू होता है तो पहाड़ पर चल रहे वॉटर रिसोर्सेस सिस्टम का दबाव भी पड़ता है. वहीं, टनल निर्माण के लिए जो मिट्टी या पदार्थ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वो किसी नदी या फिर इस पहाड़ के तो नहीं है? यह भी जानना जरूरी होता है. इतना ही नहीं पहाड़ के अनुरूप ही टनल का आकार के साथ उसका स्वरूप भी होना चाहिए.
हादसे का कारण जानना बेहद जरूरीः इस हादसे पर बोलते हुए बीड़ी जोशी ने कहा कि हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि हमारी चूक कहां पर हुई है? क्या जिओ टेक्निकल लेवल पर कोई भूल इस हादसे में हुई है या फिर अनुभवी भूल या वर्तमान समय में अचानक भू बदलाव हुआ? इस कारणों को जानना होगा.
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अन्य प्रोजेक्ट्स पर खतरा: वहीं, उत्तराखंड में चल रहे हैवी प्रोजेक्ट्स पर प्रोफेसर बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में इस तरह की घटनाएं और ज्यादा होने की संभावनाएं हैं. क्योंकि, जिस तरह के उत्तराखंड के मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं, उसका मूल कारण हिमालय का क्षेत्र ज्यादा सेंसिटिव होना है. इसके अलावा भूस्खलन की दृष्टि हो या भूगर्भीय या फिर भूकंप की दृष्टि से इस तरह की घटनाएं देखी जा सकती है.