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इस वजह से 'जहर' बना गंगाजल, सुनिए क्या कह रहे एक्सपर्ट - कैसे फैला गंगा में 'जहर'

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी में शैवाल (algae) का मामला अब और गंभीर हो गया है. शैवाल के कारण नाइट्रोजन और फास्फोरस (Nitrogen and phosphorus) में वृद्धि से गंगा के पानी का रंग हरा हो गया है. साथ ही पानी का ऑक्सीजन लेवल भी प्रभावित हुआ है. एक्सपर्ट के मुताबिक, आने वाले दो से तीन दिनों तक गंगा के पानी का न ही आचमन सुरक्षित है और न ही इसमें डुबकी लगाना.

गंगा में नाइट्रोजन और फास्फोरस
गंगा में नाइट्रोजन और फास्फोरस

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Published : Jun 12, 2021, 9:22 PM IST

वाराणसी : लोगों की आस्था और जलीय जीवों (Water Animals) के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली मोक्षदायिनी मां गंगा इन दिनों संकट में हैं. संकट इस बात का है कि कई दिनों से काशी में गंगा के पानी का रंग हरा दिख रहा है.

गंगाजल के रंग में हुए इस बदलाव से शासन स्तर तक हड़कंप मचा हुआ है. वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा ने गंगा की गुणवत्ता की जांच के लिए स्पेशल पांच सदस्यीय टीम बनाई. इसमें उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) भी शामिल है. टीम ने 7 से 10 जून तक गंगा के पानी का निरीक्षण किया.

गंगा के पानी में नाइट्रोजन, फास्फोरस बढ़ा

डीएम कौशल राज शर्मा द्वारा गठित टीम ने गंगा के जल की वाराणसी और मिर्जापुर तक सैंपलिंग की. जांच कमेटी ने रिपोर्ट शासन को सौंपी है. जांच में यह बात सामने आई है कि मिर्जापुर में एसटीपी (Sewage Treatment Plants) से हुई लापरवाही से शैवाल (Algae) बड़ी मात्रा में गंगा में पहुंच गए. जिससे गंगा के पानी में नाइट्रोजन, फास्फोरस (Nitrogen, phosphorus) की मात्रा अधिक हो गई है.

ये दोनों केमिकल मानव शरीर के साथ-साथ गंगा में रहने वाले जलीय जीवों के लिए भी खतरनाक हैं. पर्यावरणविद और एक्सपर्ट का कहना है कि आने वाले दो से तीन दिनों तक गंगा के पानी का न ही आचमन सुरक्षित है और न ही इसमें डुबकी लगाना. यानी श्रद्धालुओं के साथ ही गंगा में रहने वाले जीवों पर कुछ दिनों तक खतरा मंडरा रहा है.

गंगा में बढ़ी है पानी की मात्रा, जल्द खत्म होंगे शैवाल

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने लोगों से ये अपील की है कि अभी चार से पांच दिनों तक गंगा में स्नान या फिर आचमन न करें. इसे लेकर अधिकारी का दावा है कि गंगा में पानी की मात्रा बढ़ी है, इससे शैवाल जल्द खत्म हो जाएंगे. बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ इंवायरमेंटल स्टडीज के प्रोफेसर कृपा राम का भी यही मानना है कि लोगों को इस वक्त गंगा में आचमन और स्नान से बचने की आवश्यकता है.

आचमन, स्नान से परहेज ही बेहतर विकल्प

प्रोफेसर कृपा राम के मुताबिक, गंगाजल के ऊपर बना ये शैवाल सूर्य के रेडिएशन (Radiation) के खिलाफ एक कवच का काम करता है. इसकी वजह से नदी के जल में बीओडी (Biochemical oxygen demand) की सघनता (Concentration) कम होने लगती है.

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लंबे समय तक अगर ये स्थिति बनी रहती है तो निश्चित तौर पर जलीय जीवों को इससे नुकसान होगा. क्योंकि, ये शैवाल का कवच बीओडी की कॉन्सन्ट्रेशन को बढ़ने से ब्लॉक कर देंगे. रही बात पानी में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की बढ़ी मात्रा की तो इससे फिलहाल आचमन और स्नान करने से परहेज ही बेहतर विकल्प है.

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