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गांधीजी की मूर्ति को वापस मिलेगा चश्मा - सुपरसाइक्लोन अम्फान

मेयो रोड जंक्शन (mayo road junction) पर लगाई गई गांधी जी की प्रतिमा (Gandhiji statue) का उद्धाटन 1958 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी. यह कांस्य प्रतिमा देवी प्रसाद रॉयचौधरी द्वारा बनाई गई थी. यह प्रतिमा अभी भी है लेकिन महात्मा गांधी के चश्मों के बिना. जानें क्या है कारण?

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Published : Apr 11, 2022, 7:54 PM IST

कोलकाता:मई 2020 में आये सुपरसाइक्लोन अम्फान (supercyclone amphan) की वजह से गांधी जी की प्रतिमा बुरी तरह प्रभावित हुई. उस वक्त तूफान में चश्मा भी खो गया. सब कुछ ठीक रहा तो करीब अब करीब दो साल बाद गांधी प्रतिमा को चश्मा वापस मिल जाएगा.

राज्य के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अनुसार ऐतिहासिक गांधी प्रतिमा के चश्मे के लिए पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं. कालीघाट के पटुआपारा कलाकार पिंटू पाल को चश्मा बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. जाने-माने कलाकार पाल लंबे समय से ऐसा काम कर रहे हैं. कलाकार ने कहा कि उन्होंने प्रतिमा के लिए कांस्य के ग्लास की एक जोड़ी बनाई है और इसे पीडब्ल्यूडी की मंजूरी के लिए भेजा गया है.

विभाग की अंतिम मंजूरी मिलने के बाद इस चश्मे को लगाया जाएगा. जानकारी के अनुसार इस चश्मे का वजन करीब 2 किलोग्राम है. यह कान से आंख तक 18 इंच लंबा है. प्रतिमा का ऐतिहासिक महत्व भी है. लेखक कमल सरकार ने अपनी कलकत्ता आइडल पुस्तक में लिखा है कि मेयो रोड पर इस स्थान पर गांधी की मूर्ति कैसे बनाई गई थी. आज जो गांधी प्रतिमा मौजूद है, उसे अतीत में पार्क स्ट्रीट-चौरंगी चौराहे पर रखा गया था.

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पहले इस जगह पर लेफ्टिनेंट जनरल जेम्स आउट्राम की मूर्ति थी लेकिन पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय ने आउट्राम की प्रतिमा को हटाकर वहां गांधी की प्रतिमा लगाई. प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 30 नवंब 1958 को प्रतिमा का उद्घाटन किया था. 11 फीट 4 इंच लंबी प्रतिमा को उस समय 13 फुट ऊंचे बलुआ पत्थर से तैयार किया गया था. उस दौरान इसकी लागत लगभग 60000 रुपये थी.

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