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परिवहन विभाग की चूक से सामान्य वाहन मालिक बन गए वीवीआईपी नंबरधारी, अब हो रही भूल सुधार की तैयारी

परिवहन विभाग की एक चूक से राजकीय वाहनों के लिए जारी होने वाले "जी" सीरीज के नंबर सामान्य नागरिकों को मिल गए. ऐसा मामला गैंगस्टर विकास दुबे के भाई के घर से मिली गाड़ियों की वजह से सामने आया. इसके बाद वाराणसी में जी सीरीज के वाहन नंबर एलाट करने की भी भूल हुई.

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Published : Aug 4, 2023, 2:22 PM IST

परिवहन विभाग की चूक से सामान्य वाहन मालिक बन गए वीवीआईपी नंबरधारी. देखें खबर

लखनऊ : परिवहन विभाग की एक बड़ी चूक से राजकीय वाहनों के लिए जारी "जी" सीरीज के नंबर प्राइवेट कार मालिकों को आवंटित हो गए. इससे आम गाड़ी मालिक वीवीआईपी हो गए. नंबर पोर्टेबिलिटी सिस्टम के तहत ऐसा हुआ है. दरअसल, जी नंबर सीरीज की सरकारी गाड़ियों की नीलामी में आम लोगों ने खरीद लिया. इसके बाद ये वीआईपी नंबर अपनी नई प्राइवेट कार पर पोर्ट करा लिया. जिससे सरकारी वाहनों के नंबर प्राइवेट कार पर "जी" सीरीज के साथ दर्ज हो गए. इस नंबर के साथ लोग भौकाल टाइट कर रहे हैं. प्रदेश भर में ऐसे "जी" सीरीज के तमाम नंबर प्राइवेट कार मालिकों को आवंटित हुए. अब परिवहन विभाग जी सीरीज को लॉक कर अपनी भूल सुधार की तैयारी में जुट गया है.

परिवहन विभाग की गलती.



परिवहन विभाग की तरफ से "जी" सीरीज का आवंटन राजकीय गाड़ियों के लिए किया गया है. A से लेकर से जेडयू तक "जी" सीरीज का आवंटन अन्य किसी प्राइवेट वाहन के लिए नहीं हो सकता है, लेकिन परिवहन विभाग ने जब नंबर पोर्टेबिलिटी की सुविधा शुरू की तो उसमें जी सीरीज को लॉक करना ही भूल गया. ये क्लॉज ही नहीं लगाया कि "जी सीरीज" का नंबर पोर्टेबल नहीं हो सकता. इसी का फायदा तमाम वाहन स्वामियों ने सरकारी वाहनों को नीलामी के दौरान खरीद कर उठा लिया. जी नंबर की सरकारी गाड़ी को प्राइवेट कार पर पोर्टिबिलिटी सिस्टम के तहत 25 हजार रुपए चुकाकर पोर्ट करा रेजिस्ट्रेशन करा लिया और बिना सरकारी कार के हकदार हुए वीवीआईपी हो गए.

परिवहन विभाग की गलती.





मुख्यालय से जुटाया जा रहा है ब्यौरा : जी सीरीज के ऐसे सरकारी वाहनों के नंबरों को प्राइवेट कार स्वामियों ने अपने वाहन पर पोर्ट करा लिया हो इसका ब्यौरा प्रदेश के सभी जिलों के विभागीय कार्यालयों से परिवहन आयुक्त कार्यालय की तरफ से जुटाया जा रहा है. सभी आरटीओ और एआरटीओ कार्यालय से यह डाटा मांगा गया है कि वह सूचना भेजें कि उनके यहां कितने नंबर सरकारी से प्राइवेट में पोर्टेबल हुए हैं. लखनऊ आरटीओ कार्यालय में भी ऐसा नंबर दर्ज हुआ है इसकी भी जानकारी एआरटीओ प्रशासन से मांगी गई है.

परिवहन विभाग की गलती.





परिवहन विभाग के एडिसन ट्रांसपोर्ट कमिश्नर (राजस्व) राजीव श्रीवास्तव का कहना है कि वर्तमान में व्यवस्था है कि जी सीरीज के नंबर जो राजकीय नंबर हैं. इन गाड़ियों के ऑक्शन की एलिजिबिलिटी 10 साल के बाद है, लेकिन वाहनों की उम्र 15 वर्ष होती है. 10 वर्ष के बाद इनकी सार्वजनिक नीलामी की जाती है. उस नीलामी में जब कोई व्यक्ति इन्हें खरीद लेता है तो उस व्यक्ति के नाम ये गाड़ी कर दी जाती है. ऐसे जी सीरीज के नंबर को लॉक करने की फिलहाल अभी परिवहन विभाग की कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन इस तरह की शिकायतें आई हैं. हम उसका संज्ञान लेते हुए जो भी समुचित कार्रवाई होगी और जो भी आवश्यक होगा वह किया जाएगा. जी सीरीज को प्रतिबंधित करने की कार्रवाई करेंगे.





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