नयी दिल्ली: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार, 20 मई को G-7 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए हिरोशिमा की यात्रा पर होंगे. जापान के G-7 प्रेसीडेंसी के तहत मुख्य एजेंडे में यूक्रेन, परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार, इंडो-पैसिफिक, आर्थिक लचीलापन और आर्थिक सुरक्षा शामिल हैं. एक विदेश नीति विशेषज्ञ और भारत के पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने ईटीवी भारत को बताया कि हिरोशिमा में हो रही G-7 बैठक भी 1945 में हुई परमाणु तबाही की भयानक याद दिलाती है और यूरेशियन युद्ध में आज के संघर्षपूर्ण संदर्भ में परमाणु विस्फोट का खतरा बहुत जीवंत है.
प्रधान मंत्री की यात्रा महत्व रखती है, क्योंकि भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. यह ध्यान रखना उचित है कि मई 1974 में पोखरण में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद पीएम मोदी की हिरोशिमा यात्रा किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली ऐसी यात्रा है. परीक्षणों के परिणामस्वरूप जापान और यू.एस. सहित कई प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे.
1957 में हिरोशिमा जाने वाले अंतिम भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू थे, जब 1945 में शहर पर परमाणु बम हमला हुआ था. इस महत्व पर टिप्पणी करते हुए, पूर्व राजदूत त्रिगुणायत ने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत वस्तुत: जी7+1 प्रारूप का अभिन्न अंग बन गया है. हमारे संबंध व्यक्तिगत और स्वतंत्र रूप से विकसित होते रहे हैं. प्रधान मंत्री किशिदा ने अपनी हाल की भारत यात्रा के दौरान G-7 शिखर सम्मेलन के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रधान मंत्री मोदी को निमंत्रण दिया था.
तथ्य यह है कि बैठक हिरोशिमा में आयोजित की जा रही है, यह भी भयावहता की याद दिलाता है कि 1945 में परमाणु तबाही हुई थी और परमाणु विस्फोट का खतरा यूरेशियन युद्ध में आज के संघर्षपूर्ण संदर्भ में बहुत जीवंत है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 19 मई को जापान के हिरोशिमा शहर पहुंचेंगे और जापानी अध्यक्षता के तहत जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे.