रांची/पटना: कभी चपरासी क्वार्टर में रहने वाले लालू यादव ने अपना राजनीतिक सफर पटना विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति से शुरू किया. उसके बाद लगातार वह आगे बढ़ते रहे. पहले सांसद बने और उसके बाद राजनीतिक परिस्थिति बदली. विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाते हुए लालू यादव बिहार के सीएम बन बैठे. आइए जानते हैं उनसे जुड़े कई रोचक तथ्य.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में पीछे रहने वालों को आगे करने के लिए चपरासी के क्वार्टर से बाहर निकलकर सीएम की कुर्सी तक पर बैठने वाले लालू यादव को चारा घोटाले में सजा दी गई. वर्तमान समय में वह जेल से ही राजनीति हालात पर नजर बनाए रखते हैं. समस-समय पर केंद्रीय और क्षेत्रीय नेता उनसे मिलकर देश और राज्य के मौजूदा हालात पर चर्चा करते रहे और फिर आगे की रणनीति बनाते रहे हैं.
पटना यूनिवर्सिटी से राजनीति की शुरुआत
लालू यादव ने 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) के महासचिव के रूप में छात्र राजनीति में प्रवेश किया. 1973 में वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने. बाद में 1974 में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ जेपी के नेतृत्व वाले छात्र आंदोलन में शामिल हुए. यह उस समय था जब लालू कई वरिष्ठ नेताओं के करीब आए और 1977 के लोकसभा चुनाव में पहली बार छपरा से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में संसद में प्रवेश किया. 29 साल की उम्र में वह उस समय भारतीय संसद के सबसे कम उम्र के सदस्यों में से थे, लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव में हार गए.
1980 पहली बार पहुंचे विधानसभा
1980 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद लालू राज्य की राजनीति में सक्रिय हो गए और उसी वर्ष विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए. उन्होंने 1985 में फिर से चुनाव जीता. पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद कई पसंदीदा विपक्षी नेताओं को दरकिनार करते हुए वे 1989 में विधानसभा में विपक्षी दल के नेता बने, लेकिन उसी वर्ष उन्होंने फिर से लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाई जिसमें वे सफल रहे. 1989 के भागलपुर दंगों के बाद लालू प्रसाद यादव जाति के एकमात्र नेता बन गए, जिन्हें कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है. उन्हें मुसलमानों का भी व्यापक समर्थन था. फिर उन्होंने वीपी सिंह के साथ मिलकर मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना शुरू कर दिया.
हेमा मालिनी पर विवादित टिप्पणी
लालू की एक विशेषता है कि वह हर एक काम अनोखी स्टाइल में करते हैं. इसी स्टाइल के चलते संसद में उनका भाषण भी चर्चा में रहता है. चाहे वो हेमा मालिनी के गाल की तरह बिहार की सड़कें बनाने का वादा हो या रेलवे में कुल्हड़ की शुरुआत. लालू हमेशाा से ही खबरों में बने रहते हैं. इस अवधि के दौरान इंटरनेट पर लालू के जीवन का जो दौर शुरू हुआ, वह आज तक नहीं रुका.
1990 में सीएम बने, आडवाणी का रोका रथ
1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने. 23 सितंबर 1990 को उन्होंने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया और खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में पेश किया. उस दौरान राजनीति में पिछड़े समाज को साधने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. उसी समय मंडल आयोग की सिफारिशें भी लागू की गईं और राज्य में अगड़े-पिछड़े की राजनीति अपने चरम पर पहुंच गई. तब से लालू प्रसाद की पहचान एक उच्च जाति के रूप में की जाती है. पिछड़ा वर्ग 'लालू का जिन्न ’बन गया, इसी वजह से 1995 में उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीता और बिहार में फिर से सीएम बने. इस बीच जुलाई 1997 में शरद यादव के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने जनता दल से अलग राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया.
पत्नी राबड़ी को बनाया सीएम
लालू प्रसाद यादव के सत्ता में लौटते ही चारा घोटाला सामने आया. अदालत के आदेश पर मामला सीबीआई के पास गया और सीबीआई ने 1997 में उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की. इसके बाद लालू को सीएम पद से हटना पड़ा. उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंप दी और चारा घोटाले में जेल चले गए. 3 अक्टूबर 2013 को सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने लालू प्रसाद को लगभग 17 साल तक चले चारा घोटाले मामले में पांच साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई.